वातावरण प्रदान करने के लिए इंद्रावती टाइगर रिजर्व का गठन हुआ, लेकिन बाघों का विकास दूर की बात, अब यहां बाघ ही नहीं मिल रहे हैं। यानि इस रिजर्व में बाघ नहीं रहते हैं। इसका खुलासा उस समय हुआ जब एरिया में बाघों की मौजूदगी का पता लगाने के लिए भेजे गए मल के नमूने फेल हो गए की जानकारी प्राप्त हुई। इसका तात्पर्य यह हुआ की इंद्रावती टाइगर रिजर्व में बाघ के बजाय थोड़े बहुत दूसरे जानवर हैं। अब बाघों के अस्तित्व को प्रमाणित करने रिजर्व में लगे कैमरों की तस्वीरों को देखा जाएगा।
उल्लेखनीय है कि मल के जरिए बाघों की मौजूदगी का पता लगाने का यह सबसे पुराना और सटीक तरीका है। इसमें लैब में मल की जांच के बाद बाघ के होने या न होने की पुष्टि की जाती है। इंद्रावती टाइगर रिजर्व में बाघों के मौजूदगी की पुष्टि के लिए जंगल के अलग-अलग इलाकों से मल के नमूने लेकर देहरादून लैब भेजे गये थे। ये सभी नमूने बाघ के मल के नहीं वरन् अन्य जानवरों के हैं।
तात्पर्य यह कि सभी नमूने फेल हो गए है। अब यहां बाघों की मौजूदगी जानने के लिए दूसरे उपायों पर विचार किया जा रहा है। बाघों की मौजूदगी जानने का सबसे आधुनिक तरीका कैमरे हैं। इंद्रावती टाइगर रिजर्व में नक्सली खौफ के चलते अफसर कैमरे भी नहीं लगवा पा रहे हैं। अफसरों के मुताबिक बाघों की गिनती की प्रक्रिया लंबी है, कई चरण होते हैं। स्थानीय स्तर के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर भी काम होता है। राष्ट्रीय स्तर पर एनटीसीए काम करती है, जो ज्वाइंट सेंसेक्स के हिसाब से गणना करती है।
टाइगर रिजर्व के सीएफ डॉ डीपी मनारे ने बताया कि मल के नमूने फेल होने के बाद अन्य तरीकों से मौजूदगी के साक्ष्य जुटाए जा रहे हैं। इस क्षेत्र में बाघों की गणना के पीछे सर्वाधिक परेशानी नक्सली आंतक की है और गणना करने वाले कर्मचारी रिजर्व में जाने में डरते हैं।