जगदलपुर। दो सप्ताह बाद बिंता घाटी के आठ मतदान केंद्रों में भी करीब 10 हजार मतदाता मतदान करेंगे। मतदान कराने के लिए जाने वाले चुनाव दल अभी से घबरा रहे हैं। दरअसल, इस पूरी घाटी में दूर- दूर तक संचार सुविधा नहीं है। घाटी में जाने के बाद बाहरी दुनिया से संपर्क करने का कोई माध्यम नहीं है।
घाटी में इंद्रावती नदी के किनारे बसी अधिकांश बस्तियों के लिए पहुंच मार्ग भी नहीं है और यह इलाका पूरी तरह से संवेदनशील है। जिला मुख्यालय से लगभग 60 किमी दूर बिंता घाटी चित्रकोट विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। घाटी में एरपुंड, ककनार, बिंता, हर्राकोडेर, सतसपुर, भेजा, करेकोट तथा चंदेला नामक आठ ग्राम पंचायतें हैं।
यहां के हर पंचायत में एक- एक मतदान केंद्र हैं। बताया गया कि इस बार यहां करीब 10 हजार मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। बिंता घाटी की बस्तियों में सड़कों का अभाव तो है वहीं संचार सुविधा से जुड़ नहीं पाया है। यहां से सबसे निकट का मोबाइल टॉवर 30 किमी दूर मर्दापाल में है।
इसके चलते ग्रामीणों को भी अक्सर परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों की मांग पर ककनार और बिंता में दो टावर लगाना प्रस्तावित है। सुरक्षा कारणों से यहां टावर लगाने नहीं दिया जा रहा है, इसलिए ग्रामीण नाराज हैं। 12 नवंबर को बिंता घाटी के जिन आठ मतदान केंद्रों में मतदान होना है, वहां संचार समस्या को देखते हुए चित्रकोट क्षेत्र के मतदान अधिकारी चिंतित हैं।
इसके अभाव में विषम परिस्थिति में मतदान दल के सदस्य संकट में पड़ सकते हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर पिछले चुनाव में यहां मतदान करा चुके चार शिक्षकों ने बताया कि मतदान क्षेत्र का सौ मीटर का एरिया सुरक्षित करने, मतदाताओं की अंगुली अमिट स्याही लगाने और दोपहर तीन बजे तक मतदान कराने तक स्थिति तनावपूर्ण रहती है। इधर संपर्क नहीं होने के कारण परिजन भी संशय में रहते हैं।
बीजापुर में भी हाल बेहाल
संभाग के बीजापुर जिले में मोबाइल नेटवर्क की उपलब्धता पांच फीसद से भी कम है। नारायणपुर में भी यह आंकड़ा आठ फीसद से कम है। बस्तर, कोंडागांव व कांकेर में ही आंकड़ा 30 फीसद के आसपास है।
बस्तर के सात जिलों में अभी कुल 841 टॉवर हैं। इनमें से करीब 644 अकेले बीएसएनएल के हैं। इनमें से ज्यादातर पुरानी तकनीक या कम फ्रिक्वेंसी के हैं। इसकी वजह से हमेशा नटवर्क की समस्या बनी रहती है। निजी कंपनियों के करीब 197 टॉवर हैं। इनमें से अधिकांश वहां के शहरी क्षेत्रों में हैं।
841 में 644 बीएसएल के टॉवर
मोबाइल कंपनियों के लिए घाटे का सौदा
राज्य बनने के बाद से बस्तर संभाग में उद्योगों का विस्तार हुआ है। माइंस की वजह से कई बड़े कारखाने स्थापित हुए हैं, इसके बावजूद मोबाइल कंपनियों को वहां व्यापार घाटे का सौदा लगता है। यह भी सच्चाई है कि मोबाइल टॉवरों को नक्सलियों से भी खतरा रहता है। नक्सली टॉवरों को कई बार क्षतिग्रस्त कर चुके हैं। यही वजह है कि बस्तर में ज्यादार टॉवर केवल बीएसएनएल के ही हैं।
बिछा रहे ओएफसी का जाल
बस्तर नेट परियोजना के तहत सरकार बस्तर संभाग में करीब 836 किमी ऑप्टिक फाइवर केबल (ओएफसी) बिछा रही है। नक्सली खतरे को देखते हुए डब्ल सर्किट लाइन बिछाई जा रही है, ताकि सेवा निबार्ध रहे। अब तक 600 किमी का काम हो गया है। इसके पूरा होने से बस्तर में इंटरनेट नेटवर्क का विस्तार होगा।