देश के किसानों को ऐसे ही नहीं अन्नदाता कहा जाता है. उनकी हिम्मत, जज्बे और जुनून के आगे प्रकृति को भी घुटने टेकने पड़े. बीते साल देश में अल नीनो और लू के थपेड़ों की वजह से गेहूं की फसल पर काफी असर पड़ा था. इससे किसान के साथ-साथ सरकार पर भी जलवायु का दबाव साफ दिख रहा था. लेकिन, अन्नदाताओं ने इसका तोड़ निकाला और ऐसा दांव चला है कि इस बार न तो मौसम कुछ बिगाड़ पाएगा और न ही अल नीनो का प्रभाव फसल के उत्पादन पर दिखेगा.
दरअसल, पिछले साल गेहूं पकने के समय लू के कारण नुकसान का सामना करने के बाद, इस बार ज्यादातर किसानों ने जलवायु अनुकूल गेहूं की किस्मों की खेती की है. यह नई किस्म बुवाई के कुल रकबे के 60 प्रतिशत से अधिक हिस्से में बोई गई है. कृषि आयुक्त पीके सिंह का कहना है कि जलवायु अनुकूल गेहूं की बुवाई का रकबा अब तक तीन करोड़ 8.6 लाख हेक्टेयर पहुंच गया है. गेहूं रबी (सर्दियों) की मुख्य फसल है, जिसकी बुवाई आम तौर पर नवंबर में शुरू होती है और कटाई मार्च-अप्रैल में की जाती है.
क्या हैं वर्तमान हालात
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, चालू रबी सत्र में 22 दिसंबर तक गेहूं की बुवाई रकबा 3.86 करोड़ हेक्टेयर था. यह एक साल पहले की अवधि के 3.14 करोड़ हेक्टेयर के रकबे से थोड़ा कम है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि उन कुछ हिस्सों में गेहूं की बुवाई में देरी हुई है, जहां धान की कटाई में विलम्ब हुआ. इसको छोड़ दें तो गेहूं की बुवाई इस बार काफी अच्छी चल रही है.