हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का काफी महत्व है. भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होने वाला पितृ पक्ष अश्विनी माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक माने जाते हैं. इस दौरान पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.
मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान तीन पीढ़ियों के पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. इन तीन पीढ़ियों की आत्मा मृत्यु के बाद स्वर्ग और पृथ्वी के बीच पितृ लोक में ही रहती हैं और पितृ पक्ष के दौरान पृथ्वी पर आती है.
इस साल पितृ पक्ष 29 सितंबर यानी शुक्रवार से शुरू हो रहे हैं जो 14 अक्टूबर तक चलेंगे. पितृ पक्ष को लेकर आपने अब तक तमाम जानकारी हासिल की होगी, लेकिन क्या आपको पता है कि पहली बार श्राद्ध किसने किया था और ये परंपरा कैसे शुरू हुई. पितृ पक्ष का इतिहास क्या है, आइए जानते हैं-
किसने शुरू किया श्राद्ध
श्राद्ध की परंपरा कब और कैसे शुरू हुई, इसकी मान्यताओं को लेकर मतभेद हैं. हालांकि महाभारत के अनुशासन पर्व की एक कथा के मुताबिक माना जाता है कि महर्षि निमि ने सबसे पहले श्राद्ध की शुरुआत की थी और उन्हें श्राद्ध का उपदेश अत्रि मुनि ने दिया था. महर्षि निमि के बाद दूसरे महर्षि भी श्राद्ध कर्म करने लगे जिसके बाद धीरे-धीरे इसका प्रचलन शुरू हो गया.
रामायण में श्राद्ध को लेकर क्या उल्लेख?
एक मान्यता ये भी है कि महाभारत के युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने ही कौरव और पांडवों की तरफ से युद्ध में मारे गए सभी लोगों का श्राद्ध किया था. इस पर जब श्री कृष्ण ने कर्ण का श्राद्ध करने के लिए कहा तो युधिष्ठिर ने कहा कि वो हमारे कुल का नहीं था ऐसे में वो कैसे उनका श्राद्ध कर सकते हैं. इस पर कृष्ण ने पहली बार इस राज पर से पर्दा उठाया था कि कर्ण और कोई नहीं बल्कि युधिष्ठिर का बड़ा भाई है. रामायण की मानें तो भगवान श्री राम ने भी उनके पिता दशरज का श्राद्ध किया था.