Home History संविधान में प्रावधान के बाद भी संघभाषा नहीं बन पाई हिंदी!

संविधान में प्रावधान के बाद भी संघभाषा नहीं बन पाई हिंदी!

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भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची के मुताबिक हिंदी भारत की राजभाषा है. इसे यह दर्जा देश की 21 भाषाओं के साथ दिया गया है. लेकिन क्या हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है या संघीय भाषा है. तो ऐसा नहीं हैंऐसा नहीं है कि हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने का प्रयास नहीं किया गया.

आजादी के बाद संविधान सभा में देश की भाषा बनाने को लेकर हिंदी पर खूब बहस हुई थी. इसे राजकीय भाषा के तौर पर अपनाया भी गया था. और तय किया कया था कि 15 साल बाद हिंदी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलवाया जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और बार बार यह मुद्दा उठाता है लेकिन इस पर कुछ हो नहीं पाया.

हिंदी अभी नहीं है राष्ट्रभाषा

दरअसल भारत की कोई एक भाषा नहीं है या कोई एक राष्ट्रीय भाषा नहीं है, बल्कि राजकीय या आधिकारिक भाषाएं हैं और उनकी संख्या कुल 22 है. संविधान के निर्माण के समय यह धर्म संकट खड़ा हुआ था कि भारत की एक राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए जिसके लिए सबसे मजबूत दावेदारी हिंदी की थी. लेकिन भारत की विविधता के कारण कोई भी एक भाषा ऐसी नहीं थी जो देश के हर कोने में स्वीकार्य हो.

एक समिति बनी थी भाषा के लिए

जब भारत का संविधान का निर्माण हो रहा था. उस समय संविधान सभा में दोसदस्यों की समिति बनी थी. इसमें से एक कन्हैयालाल मुंशी जो बंबई की सरकार में गृहमंत्री रह चुके थे और दूसरे तमिलभाषी भारतीय सिविल सेवक नरसिम्हा आयंगर, जो 1937 से 1943 तक जम्मूकश्मीर के प्रधानमंत्री भी रह चुके थे. तीन साल चली बहस के बाद अंततः मुंशी आयंगर फॉर्मूले पर सहमति बनी और 1949 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तैयार हुआ.

राष्ट्रभाषा नहीं राजभाषाएं

मुंशी आयंगर फॉर्मूले के तहत भारत की एक नहीं बहुत सारी राजभाषाएं जोड़ी गई. इन 14 भाषाओं में हिंदी को शामिल गया लेकिन किसी एक भाषा को भारत की राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं मिल सका. इस तरह हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि राजभाषा का दर्जा मिला गया. हैरत की बात लग सकती है, लेकिन उस समय हालात को देखते हुए अंग्रेजी को भी राजभाषा के तौर पर शामिल किया गया था.

क्यों नहीं चुनी गई थी तब राष्ट्रभाषा

जब संविधान सभा में राष्ट्रभाषा को लेकर चर्चा हो रही थी. उस समय राष्ट्रभाषा होने के लिए हिंदी ही सबसे योग्य और प्रबल दावेदार थी. हिंदी को आधिकारिक भाषा चुनने के बाद ही गैर हिंदी भाषी राज्यों में विरोध शुरू हो गया था जिसमें दक्षिण भारतीय राज्य सबसे आगे थे. इस विरोध को देखते हुए संविधान लागू होने के बाद के 15 सालों तक अंग्रजी को ही भारत की राजभाषा बना दिया गया जिससे सरकारी कार्यों को होने में समस्याएं ना आएं.

15 साल के बाद के लिए

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के शुरू में स्पष्ट उल्लेख है कि “संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी”, उसके आगे के अनुच्छेदों में बताया गया था हालांकि हिंदी भारत की राजभाषा होगी, सभी आधिकारिक कार्यों का निष्पादन अंग्रेज़ी में किया जाता रहेगा. लेकिन यह व्यवस्था 15 साल तक लागू रखने की बात कही गई. उम्मीद थी तब तक हिंदी को आसानी से राष्ट्रीय भाषा के रूप में लागू किया जा सकेगा.

विरोध नहीं थमा

जैसे जैसे 15 साल का वक्त बीतने का समय नजदीक आया, एक बार फिर दक्षिण भारतीय राज्यों में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ आंदोलन जोर पकड़ने लगा और 1963 में सरकार ने एक अधिनियम जारी किया जिसमें 1965 के बाद भी अंग्रेजी को कामकाज की भाषा कायम रखने के प्रवाधान बनाए रखा गया. राज्यों को अधिकार दिए गए कि वे अपनी मर्जी के मुताबिक किसी भी भाषा में सरकी कामकाज कर सकते हैं.

लेकिन भाषा को लेकर एकरूपता की समस्या खत्म नहीं हुई हिंदी भाषा राजनीति की शिकार होती रही है और भारत को अभी तक एक राष्ट्रभाषा नहीं मिली. आज भारतीय संविधान में 14 से 22 राजभाषाएं हो गई हैं. हिंदी का उपयोग अधिकांश हिस्सों में सुचारू रूप से चलता है. हिंदी को राष्ट्रीय भाषा घोषित करने की मांग भी होती है. लेकिन अभी तक देश को उसकी राष्ट्रभाषा का इंतजार है.