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चामुंडा देवी मंदिर नहीं पहुंच पाईं इंदिरा गांधी तो पुजारी ने दे दिया था शाप, सही साबित हो गई थी वो भविष्यवाणी|

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Indira Gandhi Chamunda Devi temple priest cursed sanjay gandhi death – चामुंडा देवी मंदिर नहीं पहुंच पाईं इंदिरा गांधी तो पुजारी ने दे दिया था शाप, सही साबित हो गई थी वो भविष्यवाणी |

चामुंडा देवी मंदिर नहीं पहुंच पाईं इंदिरा गांधी तो पुजारी ने दे दिया था शाप, सही साबित हो गई थी वो भविष्यवाणी

जनवरी 1980 में जब इंदिरा गांधी चुनाव जीतीं तो अनिल बाली ने उन्हें सुझाव दिया था कि प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उन्हें व्यक्तिगत रूप से चामुंडा देवी का दर्शन करना चाहिए और देवी का आशीर्वाद लेना चाहिए।

संजय गांधी की मौत से एक दिन पहले इंदिरा गांधी चामुंडा देवी मंदिर जाने वाली थीं, लेकिन दो दिन पहले अचानक कार्यक्रम रद्ध हो गया।

13 दिसंबर, 1980 को इंदिरा गांधी को लेकर एक हेलीकॉप्टर कांगड़ा के योल कैंप में उतरा। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री राम लाल अपने मंत्रिमंडल के साथ प्रधानमंत्री की आगवानी के लिए वहां मौजूद थे। इंदिरा पालमपुर में देवी दुर्गा का अवतार मानी जाने वालीं चामुंडा देवी के मंदिर में प्रार्थना करने पहुंची थीं। सोलहवीं शताब्दी के इस मंदिर में हर साल हजारों भक्त आते थे। इंदिरा गांधी की देवी में बहुत आस्था थी।

द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने अपनी नई किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में बताया है कि 1984 में इंदिरा गांधी की मृत्यु होने तक मंदिर में उनके नाम पर नियमित रूप से प्रार्थना की जाती थी और प्रसाद दिल्ली में उनके आवास पर भेजा जाता था।

किताब में लिखा है कि मोहन मीकिन ग्रुप के कपिल मोहन के भतीजे अनिल बाली को इंदिरा गांधी हर दो महीने में एक लिफाफा देती थीं, जिसमें 101 रुपया होता था। बाली यह पैसा चामुंडा देवी मंदिर तक पहुंचाते थे।

चामुंडा मंदिर और संजय की मौत

23 जून, 1980 को एक हवाई दुर्घटना में इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की मौत हो गई थी। नीरजा चौधरी ने अपनी किताब में बताया है कि इस दुर्घटना से ठीक एक दिन पहले 22 जून को इंदिरा गांधी चामुंडा देवी मंदिर जाने वाली थीं।

दरअसल, जनवरी 1980 में जब इंदिरा गांधी चुनाव जीतीं तो अनिल बाली ने उन्हें सुझाव दिया था कि प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उन्हें व्यक्तिगत रूप से चामुंडा देवी के दर्शन करने चाहिए और देवी का आशीर्वाद लेना चाहिए। 14 जनवरी, 1980 को जिस दिन उन्होंने शपथ ली, उन्होंने 12, विलिंग्डन क्रिसेंट स्थित अपने आवास पर कीर्तन का आयोजन किया था। राष्ट्रपति भवन में शपथ ग्रहण समारोह के तुरंत बाद वह कीर्तन में शामिल होने के लिए घर आ गई थीं।

कीर्तन के दौरान ही बाली ने इंदिरा गांधी को याद दिलाया कि मैडम, आपको चामुंडा देवी जाना है। इंदिरा गांधी ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा कि मुझे चार-पांच महीने का समय दीजिए। मई 1980 के पहले सप्ताह में बाली को आरके धवन का एक पत्र मिला। इसमें कहा गया कि प्रधानमंत्री 22 जून (1980) को चामुंडा का दौरा करना चाहती हैं। धवन ने पत्र में लिखा था, वह (प्रधानमंत्री) शाम 4:45 बजे वहां उतरेंगी। उन्होंने बाली से कार्यक्रम आयोजित करने को कहा है। धवन का पत्र पाकर बाली चामुंडा मंदिर पहुंचे। उन्होंने प्रधानमंत्री के आने और पूजा की व्यवस्था शुरू की।

20 जून की शाम को चामुंडा में संदेश गया कि प्रधानमंत्री का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है। उनके आगमन के इंतजार में मुख्यमंत्री राम लाल समेत हिमाचल प्रदेश की पूरी सरकार वहां डेरा डाले हुए थी। जब पुजारी ने सुना कि वह नहीं आ रही है, तो उसने तीखी प्रतिक्रिया दी, “आप इंदिरा गांधी से कहिए, यह चामुंडा हैं। यदि कोई साधारण प्राणी नहीं आ सकेगा तो माँ क्षमा कर देगी। लेकिन यदि शासक अपमान करेगा तो देवी माफ नहीं करेंगी।”

बाली ने पुजारी को शांत करने की कोशिश की। उन्होंने कहा देखिए पंडितजी, जरूर कोई कारण होगा, जिसकी वजह से वह नहीं आ पा रही हैं। बाली ने 22 जून को तय कार्यक्रम के तहत चामुंडा मंदिर में कीर्तन और प्रार्थना आदि करवाया। 23 तारीख की सुबह बाली का पूरा ग्रुप वहां से निकल गया। नीरजा की किताब के मुताबिक, बाली याद करते हैं कि हम 50 किलोमीटर दूर ज्वाला मुखी मंदिर पहुंचे थे, तभी मेरा सचिव दौड़ता हुआ मेरे पास आया।’ उसने कहा, ‘संजय गांधी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है। पाकिस्तान रेडियो यह खबर प्रसारित हो रही है।’

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मेनका गांधी ने इंदिरा गांधी को किया था आगाह

तैंतीस वर्षीय संजय ने विमान से नियंत्रण खो दिया था, जिससे उनकी मौत हुई। संजय अपने छोटे विमान से खतरनाक स्टंट करने के लिए जाने जाते थे। दुर्घटना से एक दिन पहले संजय ने मेनका को अपने इस विमान में बैठाया था। वह याद करती हैं, ‘मुझे लगता है कि विमान में मैं दो घंटे तक चीखती-चिल्लाती रही।’

विमान से नीचे उतरते ही वह सीधे अपनी सास इंदिरा गांधी के पास पहुंची। उन्होंने उनसे कहा, “मैंने जिंदगी में आपसे कभी कुछ नहीं मांगा। अब मैं चाहती हूं कि आप संजय से कहें कि वह ‘इस’ विमान को दोबारा न उड़ाएं।”

क्या इसका चामुंडा से कोई कनेक्शन है?

संजय की मौत की खबर ने देश को सदमे में डाल दिया। अनिल बाली और कपिल मोहन का परिवार (जो चामुंडा मंदिर में था) वापस दिल्ली लौट आया। बाली सीधे इंदिरा गांधी के आवास की ओर चल पड़े। जब वह पहुंचे तो रात के 2.30 बज रहे थे। इंदिरा शव के पास बैठी थीं। वह बाली को देख बातचीत करने के लिए उठीं।

इंदिरा गांधी ने बाली से पूछा ‘क्या इसका मेरे चामुंडा न जाने से कोई संबंध है?’ बाली ने इंदिरा को शांत करने की कोशिश करते हुए कहा, ‘मैडम, अभी इस बारे में बात करने का सही समय नहीं है। मैं बाद में बताऊंगा।’

संजय गांधी की मौत के चार दिन बाद बाली 1, अकबर रोड पहुंचे। इंदिरा गांधी के बगल में सुनील दत्त और उनकी अभिनेत्री पत्नी नरगिस थीं। इंदिरा ने बाली को इशारा किया और एक तरफ ले गईं। उन्होंने फिर पूछा, ‘अब बताओ क्या हुआ?’

जवाब में बाली ने इंदिरा गांधी से पूछा कि जिस दिन वह चामुंडा मंदिर में आने वाली थी, उस दिन क्या हुआ था? इंदिरा गांधी ने दिमाग पर जोर डालते हुए याद किया, ‘मुझे नहीं पता कि मेरा कार्यक्रम किसने रद्द कर दिया। मुझे जम्मू से चामुंडा आना था। संजय मेरे साथ गया था। मुझे उसके साथ मंदिर में दर्शन के लिए आना था। मुझे बताया गया कि मौसम खराब हो गया है और चामुंडा में बहुत तेज़ बारिश हो रही है। आने वाले कुछ घंटों में हेलीकॉप्टर वहां नहीं उतर पाएगा। इसलिए, उन्होंने एक दिन पहले ही दिल्ली लौटने का फैसला किया।”

इंदिरा गांधी की बात सुन बाली चकित थे। उन्होंने इंदिरा को बताया कि चामुंडा में मौसम खराब नहीं था। न ही बारिश हो रही थी। किसी और ने इंदिरा के लिए तय किया कि वह चामुंडा न जाएं।

जब रोते हुए चामुंडा पहुंचीं इंदिरा

संजय की मौत के कई महीनों बाद इंदिरा गांधी के राजनीतिक सहयोगी एमएल फोतेदार ने बाली को फोन किया। फोतेदार ने कहा, ‘प्रधानमंत्री आपसे मिलना चाहती हैं। सुबह साढ़े सात बजे अवश्य पहुंचें।’ बाली, इंदिरा के आवास पर पहुंचे। बाली याद करते हैं कि प्रधानमंत्री ने अपने बाल रंगे हुए थे। वह तुरंत मुद्दे पर आ गईं, उन्होंने कहा- मैं चामुंडा जाना चाहती हूं।  

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बाली से आवश्यक व्यवस्था करने को कहा। 13 दिसंबर, 1980 को वह चामुण्डा गयीं। जैसे ही उन्होंने पूजा शुरू की, पंडित के हाथ कांपने लगे।’ इंदिरा ने कहा- मैं एक कट्टर हिंदू हूं…। उन्होंने पूर्णाहुति के लिए मंत्र पढ़े और गर्भगृह में माथा टेका।

इस दौरान वह लगातार रो रही थीं। बाली को याद आया कि ‘पंडित ने उनसे कहा था कि वह यहां रोते हुए आएगी।’ पुजारी ने इंदिरा को सांत्वना देने की कोशिश करते हुए कहा, ‘अब आपके पास 60 करोड़ बेटे और बेटियां हैं। आप उनको देखिये। और आज के बाद रोना नहीं।’

इंदिरा गांधी ने प्रसाद लिया और मंदिर की परिक्रमा की। उनके साथ गृह मंत्री बूटा सिंह और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री राम लाल भी थे। मंदिर के बाहर उन्होंने पेड़ लगाए। यह आपातकाल के दौरान संजय के पांच सूत्री कार्यक्रम के प्रमुख तत्वों में से एक था।

इंदिरा अपने साथ जगन्नाथ शर्मा को भी ले गई थी, जो एक समय उनके पति फिरोज के लिए माली का काम करते थे। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि चामुंडा में संजय के नाम पर एक घाट का निर्माण किया जाए। बाली ने याद करते हैं, ‘इसकी लागत 80 लाख रुपये थी, जिसे कांग्रेस नेता सुखराम ने वहन किया, जो बाद में केंद्रीय संचार मंत्री बने।’