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क्या वाकई भारत के लिए बहुत बड़ा और अहम है नाासा का आर्टिमिस समझौता?

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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा के दौरान कई तरह से द्विपक्षीय समझौते होने जा रहे हैं. इनमें से एक अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान, इसरो के बीच आर्टिमिस अकॉर्ड नाम का समझौता है.

इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष सहयोग को बढ़ावा देना होगा. इससे भारत उन देशों में शामिल हो जाएगा जो अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमेरिका के सहयोगी हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत को आर्टिमिस समझौते से बहुत फायदा हो सकता है. लेकिन ऐसा नहीं है कि इस समझौते से केवल फायदे ही फायदे हैं. इसके गहराई से विश्लेषण करना होगा और देखना होगा कि नुकसान पर फायदे भारी ही पडें.

कौन है आर्टिमस समूह में शामिल

समझौते का मकसद दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष सहयोग को बढ़ाना और आपस में अंतरिक्ष संबंधी सूचनाओं का आदान प्रदान करना होगा. अभी तक 23 देश आर्टिमिस समझौते के तहत अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा से जुड़ चुके हैं जिसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, बहरीन, कनाडा, कोलंबिय., फ्रांस, जर्मनी, इजराइल, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, लक्जमबर्ग, मैक्सिको न्यूजीलैंड, पोलैंड, रोमानिया, सऊदी अरब, सिंगापुर, यूक्रेन, संयुक्त अरब अमीरात, और यूके शामिल हैं.

क्या है आर्टिमिस समझौता

आर्टिमिस समझौता अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के आर्टमिस कार्यक्रम का हिस्सा है जिसमें नासा का प्रमुख लक्ष्य चंद्रमा पर इंसान को पहुंचाना है. इसमें नासा चंद्रमा पर इंसान की स्थायी उपस्थिति के लिए काम कर रहा है. इस समझौते में भविष्य के मंगल ग्रह के लिए अभियानों को भी शामिल किया है. आर्टिमिस का हिस्सा बनने के बाद भारत और अमेरिका चंद्रमा पर सुरक्षित और संधारणीय अन्वेषण को सुनिश्चित करने के लिए आंकडे, तकनीक और संसाधय साझा कर एक दूसरे के सा काम करेंगे.

चंद्र अभियानों के मदद होगी

दोनों देशों के बीच यह समझौता भारत के लिए बहुत बड़ा फायदे का सौदा हो सकता है. यह ऐसे समय पर हो रहा है जब भारत का इसरो अपने चंद्रयान 3 अभियान का प्रक्षेपण करने जा रहा है. दोनों देश पहले ही चंद्रमा के अभियानों को लेकर एक दूसरे से सहयोग कर रहे हैं. लेकिन यह सहयोग केवल जानकारी साझा करने तक ही सीमित था. लेकिन अब दोनों देश चंद्रमा के लिए संसाधन और तकनीक आदि भी साझा करेंगे.

पहले से ही हो रहा है सहयोग

नासा और इसरो के बीच पहले भी अभियान विशेष पर आधारित परस्पर सहयोग होता रहा है. दोनों पहले ही प्राकृतिक संकटों, बर्फ पिघलने जमीन के पानी की आपूर्ति आदि पर्यावरणीय और जलवायु परिवर्तन संबंधी समस्याओं को लेकर एक दूसरे को सहयोग कर रहे हैं. इसके अलवा नासा इसरो सिंथेटिक अपर्चर राडार (निसार) अभियान पर काम दोनों की साझेदारी की ही तरह हो रहा है.

और ये फायदा भी होगा

अमेरिका और भारत इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में भारतीय अंतरिक्ष यात्री भेजने पर सहमत हो गए हैं. इसमें अभी समय लगेगा लेकिन अंतरिक्ष यात्रा पर सहयोग का फायदा गगन यान अभियान में जरूर मिल सकता है. इसके अलावा नासा के चार अंतरिक्ष यात्री अगले साल चंद्रमा की कक्षा का चक्कर लगाएंगे और उसके अगले साल दो यात्री लंबे समय तक चंद्रमा पर रुकेंगे. इसका फायदा भी भारत को जरूर मिलेगा.

एक बड़ा सवाल?

आर्टिमिस समझौते मे रूस और चीन जैसे देश शामिल नहीं हैं. लेकिन भारत के लिहाज अहम रूस है क्या इससे भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय अंतरिक्ष सहयोग पर असर होगा. यह देखने वाली बात है क्योंकि रूस शुरू से ही आर्टिमिस अभियान का विरोध कर रहा है और अब तक गगनयान अभियान में रूस का बहुत बड़ा सहयोग है.

लेकिन देखने वाली बात यह है कि भारत को रूस की तुलना में अमेरिका से अंतरिक्ष सहयोग में ज्यादा फायदा होगा. वहीं आज जब चीन अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा में अमरेका से आगे निकलने पर तुला हुआ है, भारत को नासा का सहयोग बहुत फायदा पहुंचाने वाला साबित होगा. वहीं अमेरिका ने भी भारत को अपने आर्टिमिस समूह में शामिल कर अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा में एक बड़ी छलांग लगाई है. उसके खेमे में भारत का होना उसके अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा में एक और ताकत प्रदान करने का काम करेगा.