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धमाकों की नहीं…घंटी की गूंज: बस्तर में फैल रहा शिक्षा का उजियारा, न बंदूक न बुलेट, अब हाथों में कागज, कलम और किताब, 14 साल बाद बच्चे बुन रहे सुनहरे सपने…

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रंजन दास, बीजापुर। बस्तर अब बदल रहा है. लाल आतंक का साया हटने के साथ प्रभावित इलाकों में तस्वीरे बदल रही हैं. इसकी बानगी देखनी हो तो बीजापुर जिला मुख्यालय से लगभग 14 किलोमीटर दूर मनकेली पहुंचे. जहां 14 साल के लंबे इंतजार के बाद एक बार फिर स्कूल की घंटी बजी है.

भले ही मनकेली गांव अब भी मूलभूत सुविधाओं से दूर है, लेकिन शिक्षा विभाग की कोशिश ने इलाके में शिक्षा के जरिये विकास का उजियारा फैलाने में सफलता पाई है. गत दिनों यहां शेड नुमा ढांचे में स्कूल शुरू हुआ. गांव में जश्न सा माहौल नजर आया. बच्चों को अच्छी तालीम देने माओवाद के डर को दरकिनार कर अभिभावक बच्चों को साथ लेकर स्कूल पहुंचे. रोली टिका लगाकर बच्चों का स्वागत हुआ. पेन, पेंसिल, स्लेट, कापियां, पुस्तक देकर बच्चों को शाला प्रवेश कराया गया. बता दें कि बीजापुर का मनकेली गांव कहने को जिला मुख्यालय का करीबी गांव है, लेकिन माओवाद की तगड़ी पैठ ने इस गांव को दशकों तक विकास से विमुख रहा. बहरहाल, देर आये दुरुस्त आये की तर्ज पर शिक्षा विभाग की कोशिश ने मनकेली वासियों में नई उम्मीद जगाई है. अब बच्चे यहां सुनहरे कल के सपने बुन रहे हैं. बुलेट की जगह ककहरा से इनका नाता जुड़ चुका है. बदलते बीजापुर की यह तस्वीर वाकई सुखद नजर आ रही है.