श्राद्ध पक्ष की अंतिम तिथि यानी पितृ मोक्ष अमावस्या के मौके पर धर्मनगरी कहे जाने वाले हरिद्वार में लाखों श्रद्धालु तर्पण के लिए जुटे और कोविड नियमों की धज्जियां उड़ गईं. उत्तराखंड में इस तिथि को पितृ विसर्जन अमावस भी कहा जाता है और इस दिन तर्पण का विशेष महत्व माना जाता है. हरिद्वार ही नहीं, ऋषिकेश में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ संगम पर तर्पण के लिए उमड़ी. श्रद्धालुओं के जमघट से एक तरफ स्थानीय स्तर पर उत्साह का माहौल देखा गया, तो वहीं कोविड संबंधी गाइडलाइन्स को लेकर स्थिति गंभीर दिखाई दी.
हरिद्वार के प्रसिद्ध घाट हर की पौड़ी समेत कई घाटों पर बुधवार को लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की पहुंचने की बात कही गई. टीओआई की एक खबर के मुताबिक श्राद्ध पक्ष के अंतिम दिन उमड़ी लाखों की इस भीड़ के चलते स्थानीय बाज़ारों और घाट के पंडों पुरोहितों के बीच उत्साह देखा गया, लेकिन कोविड संबंधी आचार संहिता का पालन न होने से स्थिति गंभीर दिखती रही.
त्रिवेणी संगम पर लगा श्रद्धालुओं का मेला
श्राद्ध पक्ष के अंतिम दिन पितृ विसर्जन अमावस्या पर त्रिवेणी संगम पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पितरों का तर्पण करने पहुंचे. तीर्थ पुरोहित पंडित रविंद्र मिश्रा ने कहा कि अमावस के दिन किसी भी पितर को तर्पण दिया जा सकता है, जिसकी तिथि याद न हो. त्रिवेणी संगम पर पितृ विसर्जन का विशेष महत्व है, जिसके चलते दूर-दूर से श्रद्धालुओं ने ऋषिकेश और हरिद्वार का रुख किया. अमावस के बाद नवरात्रों की शुरुआत होती है और इसी के साथ शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. श्राद्ध के 15 दिनों तक मांगलिक कार्यक्रमों पर रोक लगी होती है. फिर नवरात्रि से शादी ब्याह और अन्य शुभ कार्यों का शुभारंभ माना जाता है.