बस्तर सहित झारखंड और ओडिशा के वन्य क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध महुआ के पेड़ों से प्राप्त महुआ के उपयोग से देशी शराब तो बनाई ही जा रही है अब इस देशी शराब का परीक्षण कर शराब बनाने वाली कंपनियां परीक्षण व अनुसंधान केन्द्र कर इसे नया रूप देने की कोशिश कर इसे अंग्रेजी शराब के रूप में बाजार में उपलब्ध कराना चाहती हैं। बस्तर की बनने वाली महुआ से देशी शराब को इंग्लैण्ड की रॉयल आर्मी ने इसे रम के रूप में अपना लिया है और जवानों को आवश्यक मात्रा में यह भी वहां दी जाती है।
इंग्लैण्ड में स्थानीय स्प्रीट के रूप में मान्यता देकर डीजे महुआ के नाम से प्रचलित किया गया है। उल्लेखनीय है कि भारत वर्ष में आदिवासियों के द्वारा शराब का सेवन पुराने समय से ही किया जाता है और अलग-अलग प्रदेशों में रहने वाली जनजातियों द्वारा विभिन्न सामाग्री का उपयोग कर शराब बनाई जाती है। बस्तर सहित उडि़सा और झारखण्ड प्रदेश में तथा देश के कई अन्य क्षेत्रों में महुआ से शराब बनाई जाती है। यह देशी शराब के रूप में प्रसिद्ध होती है। इस शराब का सेवन प्रचुरता से इन प्रदेशों में होता है।
महुआ के बारे में विशेषज्ञों द्वारा यह भी कहा गया है कि यह प्राकृतिक रूप से शक्कर से भरपूर वनोपज है। जिसे जनजातिय जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक विभिन्न रूपों में उपयोग कर अपना रही है। वैसे महुआ का मुख्य उपयोग शराब बनाने के लिये होता है और बस्तर में उपलब्ध महुआ मादकता फैलाने के साथ-साथ शराब बनाने में अधिक उपयोग होता है। वैसे महुआ के प्रति ग्रामीण अत्यधिक उत्साहित रहते हैं और इसका उपयोग कर इसे पौष्टिक आहार के रूप में भी ग्रहण करते हैं। इस प्रकार अब विदेशी शराब बनाने वाली कंपनियों के द्वारा इसका उपयोग किये जाने से ग्रामीणों को एक अतिरिक्त आय का साधन भी प्राप्त हो सकता है।