बासवराज बोम्मई कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं. 61 साल के बावसवराज राज्य के 23वें मुख्यमंत्री हैं.
कर्नाटक में बीजेपी ने लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा को पद से हटाकर बासवराज को मुख्यमंत्री चुनने में कोई जोख़िम मोल नहीं लिया है. ऐसा लगता है कि पार्टी ने 2014 के बाद से महाराष्ट्र और झारखंड के अपने अनुभवों से सबक लिया है.
अब ये स्पष्ट है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व नुक़सान की भरपाई का प्रयास कर रहा है. पार्टी ने 2014 के चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ऐतिहासिक जीत के बाद महाराष्ट्र और झारखंड में जो रुख़ अख़्तियार किया था, अब पार्टी उससे पीछे हट गई है क्योंकि इन दोनों ही प्रांतों में अगले चुनावों में पार्टी सत्ता से बाहर हो गई थी.
उन दोनों राज्यों के ठीक उलट, कर्नाटक में पार्टी ने बीएस येदियुरप्पा को ख़ुश करने के लिए उनके वफ़ादार रहे बासवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया है. बोम्मई भी लिंगायत समुदाय से ही आते हैं. राज्य में उच्च जाति के लिंगायत वर्ग की 17 फ़ीसदी आबादी है. बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने अपने इस सामाजिक आधार को मज़बूत रखा है.
दूसरे राज्यों का अनुभव
महाराष्ट्र में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने ब्राह्मण देवेंद्र फणनवीस को मुख्यमंत्री बनाया था जबकि चुनावों में मराठा लोगों ने पार्टी को खुलकर वोट दिया था. वहीं आदिवासी बहुल झारखंड में पार्टी ने ग़ैर आदिवासी रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनाया था. हालांकि जाटों के प्रभाव वाले हरियाणा में पार्टी के पंजाबी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर सत्ता में वापसी करने में कामयाब रहे थे.
मैसूर यूनिवर्सिटी में आर्ट्स संकाय के डीन प्रोफ़ेसर मुसफ़्फ़िर असादी कहते हैं, ‘ये स्पष्ट है कि बीजेपी लिंगायत समुदाय में अपना आधार कमज़ोर नहीं करना चाहती है. लिंगायत मठ पिछले कुछ समय से येदियुरप्पा के समर्थन में खुलकर आए थे, ऐसा लगता है उनका दबाव भी काम कर गया है. कांग्रेस के साथ जो 1990 के दशक में हुआ, उसकी याद भी बीजेपी को आई होगी.’
जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और चर्चित राजनीतिक टिप्पणीकार प्रोफ़ेसर संदीप शास्त्री कहते हैं, ‘बोम्मई हाई कमान की ही पसंद हैं, बस उन पर येदियुरप्पा ने मुहर लगाई है (उनके पास कोई और विकल्प भी नहीं था), उन्हें लाने का मक़सद येदियुरप्पा परिवार का प्रभाव कम करना है.’
1990 के दौर की यादें
येदियुरप्पा का रोते हुए वीडियो वायरल हुआ है जिसमें वो बता रहे हैं कि कैसे उन्होंने साइकिल पर चलकर राज्य में पार्टी को मज़बूत किया. तब उनके पास कार ख़रीदने लायक पैसे नहीं थे. इस वीडियो के बाद सोशल मीडिया पर जो प्रतिक्रियाएं आईं, उनसे स्पष्ट है कि लिंगायत समुदाय गुस्से में है और इससे पार्टी को संदेश मिला होगा कि लिंगायत बीजेपी के साथ भी वही कर सकते हैं जो उन्होंने 1990 में कांग्रेस के साथ किया था.
लगभग 31 साल पहले कद्दावर लिंगायत नेता वीरेंद्र पाटिल रोए तो नहीं थे, लेकिन जब वो दिल का दौरा पड़ने के बाद टीवी चैनल (तब दूरदर्शन) पर सामने आए थे तो उन्हें बोलने में मुश्किल आ रही थी. उससे एक दिन पहले कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने एयरपोर्ट पर मीडिया को दिए बयान में पाटिल को पद से हटाने जाने की जानकारी दी थी. पाटिल ने टीवी पर कहा था कि पद से हटाए जाने पर वो बेहद दुखी हैं.
बात सिर्फ़ इतनी ही नहीं है. तुनक मिज़ाज येदियुरप्पा ने आठ साल पहले 2013 के विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष के ज़रिए 10 प्रतिशत वोट हासिल करके बीजेपी को सबक सिखा दिया था. 2008 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने वाली बीजेपी सिर्फ़ 40 सीटें लेकर विपक्ष में बैठ गई थी.
इन्हीं यादों ने संभव है कि बीजेपी नेताओं को कर्नाटक में कोई नया प्रयोग करने से रोका होगा और ब्राह्मण, वोक्कालिगा (दक्षिण कर्नाटक में प्रभावशाली जाति समूह) और लिंगायतों में से मुख्यमंत्री चुनने के बजाए उनके विकल्प को सिर्फ़ लिंगायत तक ही सीमित किया होगा.
बोम्मई पर कैसे लगी मुहर ?
जब तक पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षक धर्मेंद्र प्रधान और किसन रेड्डी (दोनों ही केंद्रीय मंत्री हैं) कर्नाटक में पार्टी प्रभारी अरुण सिंह से मिलने बेंगलुरू पहुंचे, नए मुख्यमंत्री का विकल्प सिर्फ़ बोम्मई और अरविंद बेल्लाड़ ही रह गए थे. बेल्लाड़ लिंगायतों के सबसे बड़े वर्ग पंचमशालीस से आते हैं.
केंद्रीय पर्यवेक्षक जब येदियुरप्पा से मुलाक़ात करके पार्टी नेताओं से मिलने होटल की तरफ़ गए, तब ही ये स्पष्ट हो गया था कि बोम्मई ही राज्य के मुख्यंत्री बनेंगे और बेल्लाड़ को किनारे कर दिया गया है.
इसका पहला संकेत येदियुरप्पा की मुस्कान और उनके चर्चित विक्टरी साइन में मिला जब वो होटल पहुंचे. उन्होंने जब हाथ से ‘V’ बनाया तो लोग समझ गए कि बोम्मई ही सीएम होंगे. बेल्लाड़ ने ही सबसे पहले येदियुरप्पा के तौर-तरीकों और प्रशासन में उनके बेटे बीवाई विजेंद्र के दख़ल की शिकायत केंद्रीय नेतृत्व से की थी.
प्रोफ़ेसर असादी कहते हैं, ‘इससे ये तर्क ही मज़बूत हुआ है कि कर्नाटक में लिंगायत ही एकमात्र राजनीतिक शक्ति हैं. उनका कार्यकाल येदियुरप्पा की विरासत को ही आगे बढ़ाएगा बस वैसा भ्रष्टाचार नहीं होगा.’
बोम्मई के सामने क्या हैं चुनौतियां?
बीजेपी विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद बोम्मई ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, ‘मैं इसे बड़ी ज़िम्मेदारी के तौर पर ले रहा हूं. मैं सभी का विश्वास हासिल करके सभी के साथ मिलकर काम करूंगा. हमारी सरकार ग़रीबों के लिए, किसानों के लिए और दबे-कुचले लोगों के लिए येदियुरप्पा के निर्देशन में काम करेगी. ‘
उत्तरी कर्नाटक में फैले लिंगायत समुदाय में अपना आधार बनाने के लिए बोम्मई को हावेरी ज़िले की अपनी शिगगांव सीट से बाहर निकलकर अपना प्रभाव बढ़ाना होगा ताकि आगे चलकर वो येदियुरप्पा के 2023 में पार्टी को फिर से सत्ता में लाने के प्रयासों में सहयोग कर सकें.
हुब्बली में रहने वाले वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार मदन मोहन कहते हैं, ‘वो हमेशा से येदियुरप्पा के नज़दीक थे. अब उन्हें प्रशासन में अपनी क़ाबिलियत साबित करनी है. संक्षेप में कहा जाए तो उन्हें अपने पिता की तरह प्रतिभाशाली होना होगा और साथ ही येदियुरप्पा जैसा नरम मिज़ाज होना होगा. ‘
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण ये है कि उन्हें बीजेपी के भीतर हिंदुवादी वर्ग को ख़ुश रखना होगा जो कि तटीय ज़िलों मैंगलुरु, उडुपी, उत्तर कन्नड़, चिकमंगलुर और कोडागू में प्रभावशाली हैं. ये इसिलए भी अहम हो जाता है क्योंकि वो आरएसएस की पृष्ठभूमि से नहीं हैं. बोम्मई जनता दल में थे और 2008 में बीजेपी में शामिल हुए थे.
प्रोफ़ेसर असादी कहते हैं, ‘उन्हें येदियुरप्पा की समावेश की विरासत को भी संभालकर रखना होगा.’
प्रोफ़ेसर असादी तब्लीगी जमात पर येदियुरप्पा के बयान के संदर्भ में ये बात कह रहे हैं. कोविड महामारी की पहली लहर के दौरान बीजेपी के कई नेताओं ने तब्लीगी जमात पर निशाना साधा था, लेकिन येदियुरप्पा ने यह कहकर सभी को चौंका दिया था कि किसी एक समुदाय को वायरस के संक्रमण के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, वो भी तब जब वायरस ने सभी पर बराबर हमला किया हो. इस बयान को लेकर येदियुरप्पा के आलोचकों ने उन पर निशाना साधा था.
बोम्मई जब गृहमंत्री थे तब उन्हें भी पार्टी के भीतर आरएसएस से जुड़े लोगों की आलोचना का सामना करना पड़ा था, उदाहरण के तौर पर ‘लव जिहाद’ जैसे मुद्दे पर.
बीबीसी से बात करते हुए पार्टी के एक नेता ने कहा, ‘जैसी उनसे उम्मीद की गई थी उन्होंने वैसा काम नहीं किया.’
बोम्मई जो कुछ भी करेंगे, पार्टी के एक वर्ग की उस पर नज़दीकी नज़र होगी.
येदियुरप्पा शायद सबसे बड़ी चुनौती
हालांकि बोम्मई के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के सभी वर्गों को अपने साथ लेकर चलने की होगी. उन्हें येदियुरप्पा के प्रशासनिक तरीके की आलोचना करने वालों को भी साथ लेना होगा और एक ऐसी साफ़ सरकार देनी होगी जो येदियुरप्पा की भ्रष्ट सरकार वाली छवि को बदल सके. जैसाकि पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री और विधानसभा में विपक्ष के नेता सिद्धारमैया येदियुरप्पा सरकार पर ‘तीस प्रतिशत सरकार’ होने का आरोप लगाते रहे हैं.
इसका मतलब ये होगा कि बोम्मई को अपने मार्गदर्शक येदियुरप्पा की तरफ़ से आने वाले दबाव को भी दूर करना होगा. जैसाकि येदियुरप्पा के साथ रहे मंत्री बताते हैं कि उनके साथ काम करना आसान नहीं है, उनकी तुनकमिज़ाजी हालात को और मुश्किल कर देती है. 2011 में येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार के आरोपों पर इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया गया था, लेकिन तब भी उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व को दरकिनार करते हुए अपनी पसंद के सदानंद गौड़ा को मुख्यमंत्री बनवा दिया था. गौड़ा बाद में केंद्रीय मंत्री भी बने.
कुछ महीने बाद ही येदियुरप्पा सदानंद गौड़ा से नाराज़ हो गए थे क्योंकि उन्होंने उनकी भेजी एक फ़ाइल पर काम नहीं किया था. इसके कुछ समय बाद ही जगदीश शेट्टार सदानंद गौड़ा की जगह मुख्यमंत्री बन गए.
मदन मोहन कहते हैं, ‘ये एक बेहद जटिल स्थिति होगी क्योंकि बोम्मई को सिर्फ़ विधायकों को ही नहीं बल्कि येदियुरप्पा को भी संभालना होगा. हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि येदियुरप्पा बहुत तुनकमिज़ाज आदमी हैं.’
संयमित व्यक्तित्व
लेकिन बोम्मई अपने पिता सोमप्पा रायप्पा बोम्मई की तरह ही एक संयमित व्यक्ति हैं.
बोम्मई ने येदियुरप्पा को बीजेपी छोड़कर कर्नाटक जनता पक्ष पार्टी न बनाने के लिए बहुत समझाया था. उन्होंने केजीपी का दामन नहीं थामा, लेकिन जब नरेंद्र मोदी ने 2013 में अपना चुनावी अभियान शुरू किया तो उन्होंने ही येदियुरप्पा को फिर से बीजेपी में शामिल होकर मोदी का पार्टी में शामिल होने का निमंत्रण स्वीकार करने के लिए उन्हें समझाया.
कर्नाटक लोकायुक्त के येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के बाद जब येदियुरप्पा पर इस्तीफ़ा देने का दबाव बन रहा था तब बोम्मई ने ही जुलाई 2011 की एक सुबह उन्हें पार्टी के दिशानिर्देश मानने के लिए समझाने का प्रयास किया. रिपोर्टों के मुताबिक़ तब तुनकमिज़ाज येदियुरप्पा ने उन्हें थप्पड़ मार दिया था.
जब मैंने एक बार उनसे पूछा कि क्या कभी उनके पिता ने उन्हें थप्पड़ मारा था जब वो युवा थे, बोम्मई ने भीगी आंखों से कहा था, ‘मेरे पिता ने कभी थप्पड़ नहीं मारा, लेकिन उन्होंने (येदियुरप्पा) मारा.’
सब्र का फल अब बोम्मई को मिल गया है.
लेकिन सवाल ये है कि मुख्यमंत्री बोम्मई येदियुरप्पा को लेकर अब सब्र रख पाते हैं या नहीं.