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बच्चों की शिक्षा के लिए न भटकें कोरोना पीड़ित परिवारों के स्वजन

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रायपुर।  कोरोना के दोनों चरणों में मौत के आंकड़ों में बहुत खेल हुए। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों से जिला प्रशासन के आंकड़े अलग हैं। इस पर मीडिया से लेकर संसद और विधानसभा तक में हंगामे हुए, लेकिन आज तक आंकड़ों का मिलान नहीं किया जा सका। अब इसका खामियाजा वे परिवार भुगत रहे हैं, जिनके स्वजनों की कोरोना से मौत हुई। शुरुआती दिनों में जब स्वास्थ्य विभाग पर कोरोना से हुई मौतों के आंकड़े छिपाने के आरोप लग रहे थे, तब मामले की गंभीरता समझी जानी थी।

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े और नगरीय प्रशासन के श्मशान घाट के आंकड़े मेल नहीं खा रहे थे। विभिन्न विभागों के प्रयासों के बाद दोनों आंकड़ों के बीच अंतर कुछ कम जरूर हुआ, लेकिन समान नहीं हो पाया। जब कोरोना पीड़ितों की मौत हो रही थी, तब उनके स्वजनों की भागदौड़ कम से कम समय में कोरोना से मौत का प्रमाण-पत्र लेकर अंतिम संस्कार करने की थी। उस समय प्रमाण-पत्र मिलने के बाद भी श्मशान घाट में कतार लगाने की नौबत थी।

ऐसी विकट स्थिति में प्रभावित परिवारोें की प्राथमिकता में यह बात थी ही नहीं कि उनके प्रमाण-पत्र का उपयोग कहां-कहां और कैसे-कैसे हो सकेगा। ऐसे परिवारों की संख्या कम नहीं है, जिन्हें अपने दिवंगत स्वजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए कोरोना से मौत का प्रमाण-पत्र तो मिला, लेकिन उन्हें प्राकृतिक आपदा प्रबंधन के नियमानुसार मुआवजा और छत्तीसगढ़ सरकार की महतारी दुलार योजना जैसी सुविधा नहीं मिल रही है।

ऐसे कोरोना प्रभावित परिवार अपने मृतक स्वजन का प्रमाण-पत्र लेकर स्वास्थ्य विभाग पहुंच रहे हैं तो उन्हें अपने मृत स्वजन का नाम उनकी सूची में नहीं मिल रहा है। इसी तरह कई परिवार महतारी दुलार योजना के तहत अपने बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा दिलाने के लिए स्कूलों से लौटाए जाने के बाद अब स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम, पालिका, नगर पंचायत व ग्राम पंचायतों के चक्कर लगा रहे हैं। यह स्थिति अनाथ हुए बच्चों के लिए तो अत्यंत दुखद है।

अब जरूरत इस बात की है कि स्वास्थ्य विभाग नगरीय प्रशासन विभाग के साथ मिलकर कोरोना से हुई मौतों की सूची का गंभीरता से मिलान करें । साथ ही पहली और दूसरी लहर में मृतकों की इंट्री सही तरीके से नहीं करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को चिन्हित कर उन पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि कोरोना की तीसरी लहर में ऐसी लापरवाही सामने न आए।

जिन मृतकों की मौत के दस्तावेजों की जांच करने की बात कही जा रही है, उसमें यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि यह काम आखिर कितने दिनों में होगा, तय सीमा क्या है? शासन की जिम्मेदारी है कि कोराना पीड़ित परिवार के लोग किसी भी हाल में दर-दर न भटकें, उन्हें उनके हक का मुआवजा मिले व अन्य सुविधाएं भी।