जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति की बहाली एक बार फिर चर्चा में है क्योंकि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य की अलग-अलग पार्टियों के नेताओं से मुलाकात की. इसे केंद्र की पहली राजनीतिक पहल के तौर पर देखा जा रहा है. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि धारा 370 को बहाल किया जाएगा, लेकिन राज्य के एक पूर्व उप-मुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग ने सुझाव दिया कि केंद्र जम्मू-कश्मीर में विशेष प्रावधानों का विस्तार करने के लिए अनुच्छेद 371 का इस्तेमाल कर सकता है, जो कि राज्य के स्थायी निवासियों पर भी लागू होगा.
हालांकि भारत में जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति अद्वितीय थी, लेकिन अनुच्छेद 371 में 11 अन्य राज्यों के लिए विशेष प्रावधान शामिल हैं, इनमें से ज्यादातर पूर्वोत्तर में हैं. जानें कैसे भारतीय संविधान ने विभिन्न राज्यों में विशेष प्रावधानों का विस्तार किया है.
अनुच्छेद 371 क्या है? यह अनुच्छेद 370 से कैसे अलग है?
अनुच्छेद 370 और 371 दोनों भारत के संविधान के भाग XXI में शामिल हैं, जो ‘अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रावधानों’ से संबंधित है. हालांकि, अनुच्छेद 370 विशेष तौर पर जम्मू-कश्मीर के लिए था, जबकि अनुच्छेद 371 के विभिन्न खंड महाराष्ट्र से मिजोरम और असम से आंध्र प्रदेश तक अलग-अलग राज्यों के लिए हैं.
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1950 में संविधान के अस्तित्व में आने के बाद से ही अनुच्छेद 370 इसका एक हिस्सा था. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला की अगुवाई वाले कश्मीरी नेताओं और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच बातचीत के परिणामस्वरूप अनुच्छेद 370 को संविधान में शामिल किया गया था. इसके प्रमुख प्रावधानों में जम्मू-कश्मीर के लिए अपना स्वयं का संविधान होना और इसके परिणामस्वरूप, अनुच्छेद 35A के माध्यम से राज्य के स्थायी नागरिकों के संबंध में अपने स्वयं के नियम बनाना शामिल था.
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लेकिन अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के साथ ही जम्मू-कश्मीर ने अपना विशेष दर्जा खो दिया और भारतीय संविधान के सभी अनुच्छेद अब राज्य पर लागू होते हैं. इतना ही नहीं, अनुच्छेद 35A द्वारा प्रदत्त विशेषाधिकार भी समाप्त हो गए हैं. अनुच्छेद 371 का दायरा उतना व्यापक नहीं है जितना कि जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद ३70 में था और इसमें केवल विशिष्ट प्रावधान शामिल हैं जो मुख्य रूप से विभिन्न राज्यों में सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं को मान्यता देते हैं.
अनुच्छेद 371 पर क्या है मोदी सरकार का रुख?
अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया था कि अनुच्छेद 371 में निहित अन्य राज्यों के लिए विशेष प्रावधानों को हटाने की कोई योजना नहीं है. धारा 370 को हटाना भाजपा का एक लंबे समय से चला आ रहा लक्ष्य था और 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी के घोषणा पत्र में भी इसका उल्लेख किया गया था. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के हफ्तों बाद अमित शाह ने गुवाहाटी में कहा था, ‘मैंने संसद में स्पष्ट किया है कि यह (अनुच्छेद 371 को समाप्त करना) होने वाला नहीं है और मैं इसे फिर से कह रहा हूं कि केंद्र अनुच्छेद 371 को नहीं छूएगा.’ जबकि अनुच्छेद 371 स्वयं महाराष्ट्र और गुजरात के लिए विशेष प्रावधानों से संबंधित है और इसकी स्थापना के समय से ही यह संविधान का हिस्सा था. वहीं, अन्य राज्यों से संबंधित शेष खंडों को बाद में संशोधनों के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया.
किन राज्यों में लागू हैं अनुच्छेद 371 के तहत विशेष प्रावधान?
इस अनुच्छेद के तहत सबसे पहले विशेष प्रावधानों का विस्तार महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों में किया गया था. यह भारत के राष्ट्रपति को अन्य बातों के अलावा, राज्यों के राज्यपाल से यह कहने की अनुमति देता है कि वह “विदर्भ, मराठवाड़ा (या, शेष महाराष्ट्र) या सौराष्ट्र, कच्छ और गुजरात के बाकी जिलों के लिए अलग विकास समितियों की स्थापना के मद्देनजर एक विशेष आदेश जारी करें और यह सुनिश्चित करें कि संबंधित क्षेत्रों में विकास की लागत के लिए धन का समान आवंटन हो.
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अनुच्छेद 371ए में नागालैंड के लिए विस्तृत प्रावधान हैं. इसकी खास विशेषता यह है कि भारत की संसद “नागाओं की धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं, नागा प्रथागत कानून और प्रक्रिया, नागरिक और आपराधिक न्याय के प्रशासन से संबंधित किसी भी मामले पर कानून नहीं बना सकती है, जिसमें नागा प्रथागत कानून के अनुसार निर्णय शामिल हैं. इसके साथ ही संसद को प्रदेश की भूमि एवं उसके संसाधनों के स्वामित्व व हस्तांतरण से जुड़े मामलों में भी दखल देने का अधिकार नहीं है जब तक कि नागालैंड विधानसभा इसे स्वीकार करने के लिए वोट नहीं देती.
अनुच्छेद 371बी असम राज्य में लागू है और यह राष्ट्रपति को विशिष्ट जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों से मिलकर एक विधानसभा समिति, या कई समितियों के गठन का आदेश देने की अनुमति देता है. अनुच्छेद 371सी में कहा गया है कि राष्ट्रपति ‘राज्य की विधान सभा की एक समिति बनाने की मांग कर सकते हैं जिसमें उस राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्य हों.’ साथ ही, पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में मणिपुर को ‘निर्देश देने के लिए केंद्र सरकार की कार्यकारी शक्ति में विस्तार होगा.’ इसी तरह से अनुच्छेद 371डी के तहत आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना, अनुच्छेद 371एफ सिक्किम, अनुच्छेद 371जी मिजोरम, अनुच्छेद 371एच अरुणाचल प्रदेश, अनुच्छेद 371आई गोवा और अनुच्छेद 371जे में कर्नाटक के लिए विशेष प्रावधान निहित हैं.