आम आदमी पार्टी ने सोमवार को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपकर राष्ट्रीय उद्यान कान्हा से लगे ग्रामों को विस्थापित करने मांग की है। सोमवार को लोकसभा प्रभारी विवेक सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय उद्यान कान्हा से लगे ग्राम खटिया के टोपीटोला, लसरेटोला, खटिया, बटवार, छपरी में जंगली जानवरों का विचरण लगातार बना हुआ है। आये दिन जंगली जानवर वाहनों की चपेट में आ रहे हैं, साथ ही अन्य कारणों से मौत के मुंह में जा रहे हैं। ग्राम सोंतिया में दो साल पहले दो भालू को जहर देकर मारा गया था। उनके पैरों में फंदा लगा हुआ था। दोषियों का पता आज तक नहीं चल पाया। अधिकारियों के द्वारा क्या कार्यवाही की गई आज तक पता नहीं चल पाया। इसी तरह ग्राम मानेगांव में दो बाघ विचरण कर रहे थे। मानेगांव के मजदूर यहां से मोचा काम के लिये जा रहे थे। एक बाघ ने मजदूर पर हमला कर दिया, जिसे जिला चिकित्सालय इलाज के लिये लाया गया। बफर जोन क्षेत्र से लगे इन ग्रामों में सोलर फैंसिंग भी लगाई गई थी, जिसका लाभ नहीं मिल पाया और अनेक जानवर इस फैंसिंग की चपेट में आये।
लसरेटोला, सोंतिया, टोपीटोला जैसे अन्य वनग्रामों में निवासरत् लोगों की संख्या काफी कम हैं, जिन्हें विस्थापित किया जाना उचित होगा ताकि बफर जोन क्षेत्र की सीमा बढ़े, साथ ही जंगली जानवरों की सुरक्षा नियमित हो सके। इन ग्रामों में चीतल, हिरण बड़ी संख्या में विचरण करती हैं। जनहित में इन ग्रामों को विस्थापित करने मांग की गई। लंबे समय से इन ग्रामों को विस्थापित करने की मांग उठती रही है।
जंगली जानवरों का आतंक स्पष्ट दिखाई देता है। छोटे-मौटे हादसे आम बात हैं। यह भारत का एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान है। मप्र अपने राष्ट्रीय पार्कों और जंगलों के लिए प्रसिद्ध है।
यहां की प्राकृतिक सुन्दरता और वास्तुकला के लिए विख्यात कान्हा पर्यटकों के बीच हमेशा ही आकर्षण का केन्द्र रहा है। कान्हा जीव-जन्तुओं के संरक्षण के लिए विख्यात है। यह अलग-अलग प्रजातियों के पशुओं का घर है। जीव-जन्तुओं का यह पार्क 940 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।
रूडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध किताब और धारावाहिक जंगल बुक की भी प्रेरणा इसी स्थान से ली गई थी। पुस्तक में वर्णित यह स्थान मोगली, बगीरा, शेरखान आदि पात्रों का निवास स्थल है। सन् 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत इस उद्यान का 917.43 वर्ग किमी का क्षेत्र कान्हा व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया। यह राष्ट्रीय पार्क 1945 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
यह क्षेत्र घोड़े के पैरों के आकार का है और यह हरित क्षेत्र सतपुड़ा की पहाडिय़ों से घिरा हुआ है। कान्हा को सन् 1933 में अभ्यारण्य के तौर पर स्थापित कर दिया गया और इसे सन् 1955 में राष्ट्रीय पार्क घोषित कर दिया गया। यहां अनेक पशु पक्षियों को संरक्षित किया गया है। कान्हा एशिया के सबसे सुरम्य और खूबसूरत वन्यजीव रिजर्वों में एक है।
टाइगरों का यह देश परभक्षी और शिकार दोनों के लिए आदर्श जगह है। यहां की सबसे बड़ी विशेषता खुले घास का मैदान हैं जहां काला हिरन, बारहसिंहा, सांभर और चीतल को एक साथ देखा जा सकता है। बांस और टीक के वृक्ष इसकी सुन्दरता को और बढ़ा देते हैं। इस दौरान दयाशंकर जोशी, रमादेवी धुर्वे, शकुन उद्दे, केहर उइके, रामगोपाल सहित अनेक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।