छत्तीसगढ़ में सूचना प्रौद्योगिकी में दक्षता के बड़े-बड़े दावे और सुशासन में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल करने के दावों के साथ पिछली सरकार के दौरान चिप्स के अधीन शुरू हुए दर्जनभर प्रोजेक्ट को आखिरकार बंद कर दिया है।
वजह यही है कि इन प्रोजेक्ट के नाम पर बड़ा ताना-बाना बुना गया, यह बताया गया कि इनसे सूचना-प्रौद्योगिकी के मामले में राज्य की दशा-दिशा बदल जाएगी। लेकिन हकीकत ये थी कि इतने खर्च के बावजूद इन प्रोजेक्ट के जरिए एक ई-क्लासरूम या लैब डेवलप नहीं की जा सकी। यहां तक कि सीएम डैशबोर्ड के नाम से शुरू किया गया एक प्रोजेक्ट मानीटरिंग नहीं होने के कारण धराशायी हो गया है।
यही नहीं, इन्हीं सपनों के साथ चालू किए गए प्रोजेक्ट रेवड़ी की तरह बांटे गए, लेकिन इनसे कोई लाभ नहीं हुआ। इसलिए 24 करोड़ रुपए के बजट वाले इन प्रोजेक्ट की राशि 2020-2021 के बजट में घटाकर केवल प्रतीकात्मक तौर पर सिर्फ 9 हजार रुपए कर दी गई।
अब कहा जा रहा है कि इन प्रोजेक्ट का बजट जीरो कर दिया जाएगा, अर्थात ये प्रोजेक्ट इस साल बंद किए जा रहे हैं। चिप्स के अधीन चलने वाले इन प्रोजेक्ट को पिछली सरकार के कार्यकाल में रेवड़ी की तरह बांटा गया। इन पर खर्च के लिए 2018-19 में लगभग 24 करोड़ का बजट रखे गए थे।
तब योजना यह थी कि यह बजट हर साल बढ़ाया जाएगा। लेकिन पिछले साल समीक्षा हुई तो पता चला कि इन प्रोजेक्ट से कुछ काम ही नहीं हुआ। इस आधार पर 2020-21 में इनके लिए महज 9 हजार रुपए रखे गए हैं। विभागीय अफसरों का कहना है कि ये राशि भी केवल प्रतीकात्मक रूप में ही रखी है। अगले साल इन योजनाओं के लिए बजट शून्य कर दिया जाएगा। यही नहीं, इस बार नवाचार निधि और आधार डाटा वाल्ट योजना का बजट जीरो कर दिया गया है। आधार डाटा वाल्ट योजना को छग लोक वित्त प्रबंधन परियोजना में मर्ज कर दिया गया है।
कार्पोरेट शैली की मानीटरिंग ही नहीं
इस परियोजना के तहत विभागों के तहत चलने वाली राष्ट्रीय व राज्य की योजनाओं के साथ ही एग्रीकल्चर, हार्टिकल्चर, शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग और जल संसाधन जैसे विभागों की जिला स्तर तक की कार्यप्रणाली पर नजर रखने का प्रावधान था। नई सरकार ने सीएम डैश बोर्ड को बंद करने का निर्णय लिया है। पिछली सरकार ने इसे यह कहते हुए प्रचारित किया था कि सीएम अब कार्पोरेट कंपनी के सीईओ की तरह काम करेंगे और अपने मोबाइल से ही योजनाओं की निगरानी करेंगे। नई सरकार में मुख्यमंत्री ई-समीक्षा का नया सिस्टम शुरू किया गया है।
एमएलए-कर्मचारियों को ट्रेनिंग नहीं
कौशल विकास एवं अनुदान प्रोजेक्ट के तहत राज्य के सभी विधायकों व हर वर्ग के कर्मचारियों को कंप्यूटर की बेसिक ट्रेनिंग दी जानी थी। स्टेट कैबिनेट के लिए आईटी के संबंध में स्पेशलाइज्ड वर्कशाप और कर्मचारियों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाना था। आईसीटी का प्रयोग कर महिलाओं, लड़कियों और एससी- एसटी समुदाय को कौशल विकास करना था, लेकिन न तो एमएलए और कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी गई और न ही महिलाओं और युवतियों का कौशल विकास हुआ।
प्रोजेक्ट और दो साल का बजट
परियोजना | 2018-19 | 2020-21 |
सामान्य सेवा केंद्र परियोजना | 3 करोड़ | 1000 रुपए |
उद्यम पूंजी निधि | 2 करोड़ | 1000 रुपए |
कार्पस निधि के लिए अनुदान | 2 करोड़ | 1000 रुपए |
कौशल विकास एवं प्लेसमेंट | 0 रुपए | 1000 रुपए |
स्वान प्रोजेक्ट का विस्तार | 2 करोड़ | 1000 रुपए |
प्रोद्यौगिकी नवाचार प्रयोगशाला | 10 हजार | 1000 रुपए |
छत्तीसगढ़ नवाचार निधि | 1 करोड़ | 0 रुपए |
मुख्यमंत्री डैश बोर्ड योजना | 1.26 करोड़ | 1000 रुपए |
मुख्यमंत्री सुशासन फैलोशिप | 6.31 करोड़ | 1000 रुपए |
आधार डाटा वाल्ट प्रोजेक्ट | 50 लाख | 0 रुपए |
वर्चुअल एजुकेशन योजना | 5. 47 करोड़ | 1000 रुपए |
इन प्रोजेक्ट्स को किया गया बंद
वर्चुअल एजुकेशन योजना, सीएम डैश बोर्ड, सीएम सुशासन फैलोशिप, छत्तीसगढ़ नवाचार निधि, कौशल विकास एवं प्लेसमेंट अनुदान, स्वान परियोजना का विस्तारीकरण, सामान्य सेवा केंद्र परियोजना, उद्यम पूंजी निधि, उद्यमियों को ऋण के लिए कार्पस निधि अनुदान, आधार डाटा वाल्ट परियोजना।
वर्चुअल एजुकेशन में बड़ी नाकामी
वर्चुअल एजुकेशन के तहत सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्कूलों में ऑनलाइन एवं ऑफलाइन लर्निंग प्लेटफार्म तैयार करना था। लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम से इन स्कूलों को जोड़ना था। इसके लिए 1246 स्कूलों में कंप्यूटर लैब स्थापित करना था। इसमें से 25 लैब को लैपटॉप/ क्रोमबुक लोकल एलएमएस सर्वर से जोड़े जाने थे। एलएमएस द्वारा स्टेट करिकुलम के अनुसार ई- कंटेंट उपलब्ध कराया जाना था। इसके अलावा स्मार्ट (आईसीटी) क्लासरूम भी बनाना था, जिसमें एक प्रोजेक्टर, टीचर लैपटॉप और स्टूडेंट रिस्पांस सिस्टम और एलएमएस प्लेटफार्म होता। तब 9वीं से 12वीं क्लास के ऐसे 4 स्मार्ट क्लास रूम बनाए जाने थे, लेकिन हकीकत में कुछ भी नहीं हुआ।
ये सब योजनाएं फिजूलखर्ची थी
“सरकार ने आईटी विकास के नाम पर चल रही इन योजनाओं की गहन रिव्यू किया था। इसमें यह पाया कि शासन के सभी विभागों में कंसल्टेंट्स काम कर रहे थे। ऐसे में एक ही काम के लिए डबल एजेंसियां या कंसल्टेंट्स फिजूलखर्ची ही थी। जैसे सीएम फैलोशिप के नाम पर 3-5 लाख तक के सलाहकारों को नियुक्त किया गया था, जो कलेक्टरों के काम पर निगरानी कर रहे थे। इसे ठीक नहीं माना गया। और आईटी के लिए चिप्स और एनआईसी जैसी सरकारी एजेंसियां काम कर रही थीं। सीएम साहब ने पूरे रिव्यू के बाद इन्हें बंद करने के निर्देश दिए थे। इस फैसले से सरकार के सालाना 20 करोड़ से अधिक की बचत हो रही है।