वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण से भले ही कोई भी वर्ग अछूता न रहा हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के कोरबा में रहने वाले पहाड़ी कोरवा आदिवासियों को कोरोना छू भी नहीं सका। राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले 3450 पहाड़ी कोरवा व बिरहोर आदिवासी इस बीमारी की चपेट में न आ जाएं इस चिंता से स्वास्थ्य विभाग ने कैंप लगाकर जांच की।
इनमें एक वर्ष से अधिक आयु के बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक की सैंपलिंग हुई, पर एक भी कोरोना संक्रमित नहीं मिला।आदिवासी बाहुल्य जिला कोरबा में 30 से अधिक वनांचल गांव में संरक्षित पहाड़ी कोरवा व बिरहोर आदिवासी रहते हैं। इनमें मुख्यत: फुटका पहाड़, भुडुमाटी ,चिरईझुंज, काटाद्वारी, लामपहाड़ आदि शामिल हैं। खास बात यह है कि सुदूर गांवों में बसने वाले इन कोरवाओं के घर भी दूर-दूर हैं।
घर के जरूरी सामान व सरकारी सोसायटी से मिलने वाले सस्ता राशन लेने के लिए इनका हाट बाजार और आसपास के शहरी इलाकों में आना-जाना भी लगा रहता है। कोविड-19 के जिला नोडल अधिकारी डा. कुमार पुष्पेश का कहना है कि वनोपज संग्रहण व अन्य कार्य के लिए समूह के बजाय इनका आवागमन एकाकी होता है। इस तरह का जीवन उन्हें संक्रमण से दूर रखने के आदर्श प्रोटोकाल के अनुरूप बनाता है। प्रकृति की गोद में रहने से प्रतिदिन की मेहनत, खाना-पान व रहन-सहन के तरीके से विकसित रोग प्रतिरोधी क्षमता ने इन संरक्षित जनजातियों को महामारी से दूर रखा है।
आहार में कंदमूल, जडी-बूटियों का उपयोग
सामान्य रोगों के लिए वे जड़ी-बूटियों पर ही भरोसा करते हैं। जंगल में मिलने वाले पताल कोहड़ा, भुई नीम, ढेई भाजी, बुंदेला, चेठारू-पेठारू कांदा, हर्रा- बहेरा का सेवन करते हैं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार हैं।
कठिन वातावरण में अनुुकूलन विकसित
शासकीय मिनीमाता कन्या कालेज के प्राध्यापक व जीवशास्त्री प्रो. एके केशरवानी ने कहा कि पारिस्थिति की तंत्र में अनुकूलन अहम कारक है। जिस तरह प्रकृति के बीच रहने वाले वन्य प्राणी, पक्षी या पेड़-पौधों को बारिश में छतरी व ठंड में कंबल की जरूरत नहीं होती, वैसे ही कोरवा व बिरहोरों में भी अनुकूलन विकसित है जो उन्हें अधिक रोग प्रतिरोधी बनाता है। हमारी अपेक्षा उनमें रोगों से लड़ने की क्षमता 80 से 90 प्रतिशत अधिक होती है। पहाड़ के कठिन वातावरण में दूरी बनाकर रहना उन्हें महामारी के संक्रमण से दूर रख रहा है।
इन्होंने कहा
विशेष संरक्षित जनजातियों तक संक्रमण न फैले इसलिए पहाड़ के गांव, पारा-टोले में शिविर लगाकर सैंपलिंग की गई। जिले में लगभग सभी बिरहोर व पहाड़ी कोरवा आदिवासियों की कोरोना जांच हो चुकी है। अब तक एक भी महामारी से संक्रमित नहीं मिला है।