छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थल मैनपाट में अब सफेद चंदन की खुशबू बिखरेगी। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ वूड साइंस एंड टेक्नोलाजी बेंगलुरु की मदद से मैनपाट के एक कृषक द्वारा डेढ़ एकड़ में चंदन के पौधे लगाए गए।
किसान का प्रयोग सफल होने के बाद कृषि विज्ञानियों ने किसानों को चंदन के पौधे लगाने प्रोत्साहित करना शुरू किया है। कृषि विज्ञान केंद्र मैनपाट द्वारा तीन एकड़ में लगाने हेतु चंदन की नर्सरी तैयार की गई है। चंदन का पौधा दस साल में तैयार होता है। यहां की जलवायु भी चंदन के पौधे के लिए काफी अनुकूल है।
औषधीय एवं वाणिज्यिक फसलों में चंदन एक ऐसा पेड़ है, जिसकी लकड़ी भारतीय संस्कृति व सभ्यता से जुड़ी है। पूजा-पाठ में तो इसका महत्व और बढ़ जाता है। ऐसा कोई घर नहीं है, जहां चंदन की लकड़ी न हो। इसका महत्व यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि इसकी लकड़ी से औषधीय व सुगंधित इत्र बनाया जाता है, इसलिए इसकी मांग देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में है। उत्पादन कम रहने के कारण चंदन की लकड़ी की कीमत बहुत ज्यादा है।
चंदन की महत्ता को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र मैनपाट के वरिष्ठ वैज्ञानिक व प्रभारी डॉ. संदीप शर्मा के मार्गदर्शन में डॉ. सीपी राहंगडाले द्वारा सरगुजा के पहाड़ी क्षेत्र मैनपाट में कृषकों के प्रक्षेत्र में सफेद चंदन के लगभग 435 पौधे लगवाए जा रहे हैं। एक किसान के खेत मे लगे चंदन के पौधे की बढ़वार बहुत अच्छी है। कृषि विज्ञानियों को मैनपाट में चंदन लगाने की प्रेरणा इसी किसान से मिली है, जिसने बेंगलुरु से पौधे लाकर लगाया और पौधे स्वस्थ हैं। भविष्य में यहां चंदन के अधिक से अधिक पेड़ लगाने की योजना भी कृषि विज्ञानियों ने बनाई है। प्रयोग के तौर पर फिलहाल कम रकबे में ही इसकी शुरुआत की जा रही है।
मैनपाट की जलवायु चंदन के लिए बेहतर : डॉ. राहंगडाले
वरिष्ठ कृषि विज्ञानी डॉ. सीपी राहंगडाले ने बताया कि मैनपाट की जलवायु चंदन के लिए बेहतर है। कृष्णा नामक किसान ने अपने खेत मे इसे लगाया है, जिसकी अच्छी बढ़वार है। इसे देखते हुए क्षेत्र के अन्य किसान सफेद चंदन को लगाने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं। इसको देखते हुए किसानों को तकनीकी सलाह विज्ञानी दे रहे हैं। कृषकों के प्रक्षेत्र में ही चंदन के पौधे तैयार किए जा रहे है, जिसके लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज बेंगलुरु से मंगवाया गया है, जिसे आगामी वर्ष में कृषक के प्रक्षेत्र में लगाया जाएगा।
पूरी दुनिया में चंदन की मात्र 16 प्रजातियां हैं
कृषि विज्ञानियों का कहना है पूरे विश्व में चंदन की 16 प्रजातियां हैं। इनमे सेंत्लम एल्बम प्रजातियां सबसे सुगंधित व औषधीय गुणों वाला है। इसके अलवा सफेद चंदन, सेंडल अबेयाद, श्रीखंड, सुखद संडालो प्रजाति का चंदन होता है। इसकी खेती सभी तरह की मिट्टी में हो सकती है, लेकिन रेतीली मिट्टी, चिकनी मिट्टी, लाल मिट्टी, काली दानेदार मिट्टी चंदन के पौधे की लिए ज्यादा उपयुक्त है। यह मिट्टी मैनपाट में उपलब्ध है।
अर्द्घ परजीवी होता है इसलिए लिया अरहर का सहारा
कृषि विज्ञानी डॉ. राहंगडाले ने बताया कि चंदन का पौधा अर्द्घ परजीवी होता है, इसलिए मैनपाट में हमने जिस किसान के खेत में से प्रयोग किया है, उसमें अरहर का सहारा दिया है। पौधे के आजू-बाजू और अरहर लगा दिया है ताकि चंदन को सहारा मिल सके और वह मजबूत हो पर हो सके। चंदन आधा जीवन के लिए जरूरत खुद पूरा करता है तो आधे जरूरत के लिए दूसरे पौधे की जड़ों पर निर्भर रहता है, इसलिए जब भी चंदन लगाते हैं तो उसके साथ और भी पेड़ लगाएं जाते हैं। चंदन के साथ वाले पौधों में नीम, मीठी नीम, सहजन(मुनगा)अरहर, लाल चंदा प्रमुख हैं।
देश मे जरूरत आठ हजार टन की उपलब्ध सौ टन
कृषि विज्ञानियों के मुताबिक वर्तमान समय में भारत में करीब आठ हजार टन प्रति वर्ष चंदन की लकड़ी की खपत है, लेकिन उपलब्धता मात्र सौ टन तक ही है, जिसके कारण इसकी कीमत छह हजार से लेकर 12 हजार रुपये प्रति किलो है।