Home News दंतेवाड़ा में पितृ पक्ष के दौरान आदिवासी अपने पूर्वजों को ऐसे करते...

दंतेवाड़ा में पितृ पक्ष के दौरान आदिवासी अपने पूर्वजों को ऐसे करते हैं याद…

17
0

दंतेवाड़ा । हिंदू धर्म में भाद्र माह का पितृ पक्ष पूर्वजों को याद करने का होता है। नदी-तालाबों में सुबह स्नान के बाद पूर्वजों की याद में पूजा-अनुष्ठान और दान-पुण्य करते हैं। इस दौरान कौए, ब्राह्मण, परिजन और मित्रों को घर बुलाकर भोज कराया जाता है पर दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा में आदिवासी ऐसा नहीं करते बल्कि इसी पितृ पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों को याद करते लघु धान्य (चिकमा) और खट्टा भाजी के नई फसल को पकाकर पूर्वजों को अर्पित करते हैं।

इसके बाद ही इन फसलों का उपभोग समाज सदस्य करते हैं। यह दिवस विशेष उनके लिए पितरों के नाम पर उत्सव जैसा होता है क्योंकि इस दिवस एक कुल-समुदाय के लोग एकत्र होकर या फिर अपने घरों पर पितरों के नाम पर परंपरानुसार पूजा और फिर सामूहिक भोज का आनंद लेते हैं।

सात हिस्से में होता है पिंड दान

सामान्य तौर पर पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को दान के साथ कौओं को भोजन कराया जाता है। आदिवासी समुदाय ब्राह्मणों की बजाए अपने परिजनों के साथ सामूहिक भोज का आनंद लेते हैं। इस दौरान लघु धान्य से तैयार भोज के अलावा लघु धान्य के भूसे को भी पितरों के नाम अर्पित और पिंडदान करने की परंपरा है, जिसे महुए के पत्ते या कल्लेआक पर दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिवस विशेष पर परिजनों द्वारा भोज ग्रहण करने से सीधे पितरों को मिलता है। इसके अलावा चिकमा और खट्टा भाजी से तैयार भोजन को गाय-बैल को खिलाते हैं। यह पूर्वजों के साथ कृषि कार्य के साथी मवेशियों के प्रति कृतज्ञता जाहिर करने भी तरीका है।

पितृपक्ष में होता है चिकमा कोड़ता

आदिवासी समाज के बल्लू भवानी बताते हैं कि आदिवासी अपने पितरों के लिए श्रद्धाभाव रखते हैं। आदिवासी समाज पितृ पक्ष में पूरे 15 दिवस उन्हें तर्पण नहीं करते बल्कि किसी एक दिवस को पूर्वजों के नाम समर्पित करते हैं। चिकमा लघु धान्य के पहले अन्न का खीर या खिचड़ी तैयार कर चढ़ाया जाता है। इस मौके पर घर के मवेशियों को भी खिलाया जाता है। दक्षिण बस्तर के कोया आदिवासियों का यह पर्व चिकमा कोड़ता अर्थात नवाखाई के रुप में भी जाना जाता है। पर्व के लिए बनने वाले भोजन अर्थात चिकमा-भाजी व्यंजन पितर गुड़ी में पितर हांडी (मिट्टी के नए पात्र) पर तैयार किया जाता है।