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सोमवंशी राजाओं ने बनवाए थे महानदी तट पर ज्यादातर मंदिर

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रायपुर। भुवनेश्वर समेत महानदी के तट पर स्थित ओडिशा के अधिकांश मंदिर सोमवंशी राजाओं ने बनवाए थे। उस समय सिरपुर ही उनकी राजधानी हुआ करती थी। ये जानकारी संस्कृति विभाग के नेतृत्व में ‘छत्तीसगढ़ के पुरातत्व और पड़ोसी राज्यों से संबंध’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य वक्ता प्रो.एससी पण्डा संबलपुर ने दी।

छत्तीसगढ़-ओडिशा की संस्कृति में समानता

महंत घासीदास संग्रहालय सभागार में उन्होंने कहा कि प्राचीन दक्षिण कोसल को ही छत्तीसगढ़ कहा जाता है। इसमें पश्चिमी ओडिशा के कई क्षेत्र समाहित होने से दोनों राज्यों की संस्कृति में विशेष अंतर दिखाई नहीं देता। जो पर्व, त्योहार ओडिशा में मनाए जाते हैं, वही छत्तीसगढ़ में भी धूमधाम से मनाते हैं।

उत्कल विश्वविद्यालय भुवनेश्वर के कुलपति प्रो.ब्योमकेश त्रिपाठी ने छत्तीसगढ़ और ओडिशा के संबंध में कहा कि इन दोनों राज्यों की संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत साझे में है। दक्षिण कोसल में पाए जाने वाले ताराकृत मंदिर और रिपोजे सिक्के शेष भारत में नहीं मिलते। भारत के हृदय स्थल पर स्थित छत्तीसगढ़ के पुरातत्व और उसका अन्य पड़ोसी राज्यों से संबंधों का अध्ययन एक सामयिक और महत्वपूर्ण विषय है।

18 शोध पत्रों का वाचन

संस्कृति विभाग के सचिव अन्बलगन पी. ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि पुरातत्व के क्षेत्र में अधिकाधिक कार्य किए जाने की आवश्यकता है। संगोष्ठी में 18 शोधपत्रों का वाचन किया गया। वाराणसी के प्रो.डीपी शर्मा ने गुंगेरिया के ताम्राश्म निधि और अन्य पड़ोसी राज्यों के समकक्ष उदाहरणों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया। डॉ. प्रबाश साहू ने शैलचित्रों और पड़ोसी राज्यों के शैलचित्रों पर शोध प्रस्तुत किया।

जेआर भगत और दीप्ति गोस्वामी ने पाटन तहसील के तरीघाट उत्खनन से प्राप्त सिक्कों के बारे में बताया। कांकेर की शोध छात्रा भेनु ने गोंड़ी वेशभूषा में घोटुल विषय पर शोध प्रस्तुत किया। संगोष्ठी में संस्कृति मंत्री के विशेष सहायक डॉ.अजय शंकर कन्नौजे, पुरातत्ववेत्ता अरुण कुमार शर्मा, डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र, प्रो.एलएस निगम, अशोक तिवारी, डॉ.आरके बेहार, जीएल रायकवार, डॉ शम्पा चौबे, प्रो. एसके सुल्लेरे जबलपुर, डॉ.चंद्रशेखर गुप्त नागपुर, डॉ.आरएन विश्वकर्मा खैरागढ़, डॉ. शंभुनाथ यादव आदि मौजूद थे।