आजादी के बाद पहली बार अबुझमाड़ के लोगों को बड़ी सौगात मिलने वाली है। सात दशक बाद माड़िया जनजाति के लोगों का सपना पूरा करने के लिए प्रदेश सरकार के द्वारा विशेष अभियान चलाकर जिला प्रशासन की टीम को लगाया गया है। जिला प्रशासन और अबुझमाड़ के 237 गांव के 9 परगना की अहम बैठक शनिवार को ओरछा के ब्लाक मुख्यालय में की गई।
जिसमे प्रत्येक गांव के मांझी, मुखिया, गायता, पटेल, चालकी के साथ जिला स्तरीय वन अधिकार समिति के अधिकारियों के द्वारा हैबिटेट राइट पर गहन चर्चा किया गया। प्रशासन के साथ हुई पहली बैठक में माड़िया समुदाय के लोगों ने हेबिटेट राइट पर अपनी मंजूरी देते हुए प्रकिया को जल्द पूरा करने की बात कही गई। हेबिटेट राइट के साथ राजस्व अधिकार पत्र (भूस्वामी पट्टा) देने की बात पर सहमति दिया गया है।
जिला प्रशासन की बैठक में शामिल होने के लिए दो दिन का सफर तय पहुँचे थे। महिलाएं भी बड़ी तादाद में नदी, नाला और पहाड़ियों को पार कर बैठक की गवाह बनी। चार घंटे तक चली बैठक में माड़िया समाज के प्रमुख जनप्रतिनिधि के साथ समाज के लोगों ने एक एक कार अपनी बातों को जिला प्रशासन के अधिकारियों के सामने में रखा।लोगों की सभी बातों को सुनने के बाद अधिकारियों के द्वारा हर बातों को विस्तार से बताकर शंकाओं को दूर किया है।
इस मौके पर कलेक्टर पीएस एल्मा ने कहा कि अबुझमाड़ के विकास को लेकर सरकार बहुत गंभीर है। अबुझमाड़ की संस्कृति और सभ्यता को संवारने की जिम्मेदारी हम सभी की है। माड़िया समाज के लोगों की मांग पर ओरछा में स्थायी आधार पंजीयन केन्द्र खोलने की बात कही।
इस दौरान उन्होंने कहा कि वन अधिकार मान्यता पत्र का सर्वे कार्य जल्द शुरू होगा। जिसमें ग्रामीणों को सहभागिता निभाने को कहा। इस मौके पर सहायक आयुक्त केएस मसराम, एसडीएम भूपेंद्र साहू, जनपद पंचायत सीईओ आशीष डे, अबुझमड़िया समाज अध्यक्ष रामजी ध्रुव, मंगड़ू राम नुरेटी, गुड्डू नुरेटी, रजनी गोटा समेत अन्य लोग मौजूद रहे ।
जमीन का अधिकार देकर दिल जीतने की कोशिश
छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार वन अधिकार कानून का इस्तेमाल कर रही है। शासन और प्रशासन के लोगों को उम्मीद है कि इससे मूल निवासी आदिवासियों का दिल जीतने में मदद मिलेगी। नारायणपुर जिले की ओरछा तहसील के अबुझमाड़ में इस योजना को परखने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। सागौन और साल के पेड़ों से ढके 3,905 वर्ग किमी पहाड़ी इलाके में मुख्यत: अबुझमाडिय़ा जनजाति के लोग रहते हैं।
यहां आवाजाही का एकमात्र जरिया पगडंडी या फिर पहाड़ की चढ़ाई है। अबुझमाड़ को माओवादियों की मांद माना जाता है क्योंकि इस बीहड़ इलाके में आना-जाना दुश्वार होने के चलते यह नक्सली कैडर के लिए सुरक्षित पनाहगाह का काम करता है। मैदानी इलाकों के उलट, यहां झोंपड़ों वाले गांवों की बस्तियां पास-पास न होकर फैली होती हैं।
छत्तीसगढ़ का पहला जिला होगा ऐसा
अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी अधिनियम 2006 (वन अधिकारों की मान्यता) या एफआरए की धारा 3 (1) (ई) का उपयोग करते हुए सरकार लोगों को आवास अधिकार मुहैया करने का इरादा रखती है। ऐसे अधिकार विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) को ही दिए जा सकते हैं। छत्तीसगढ़ में उनमें से पांच जनजातियां हैं—पहाड़ी कोरवा, अबुझमाडिय़ा, बैगा, कमर और बिरहोर।
निवास अधिकार न केवल पीवीटीजी की भूमि और आजीविका की रक्षा करते हैं, बल्कि उनकी संस्कृति और जीवनशैली को भी संरक्षित रखते हैं। अब तक मध्य प्रदेश की बैगा ही एकमात्र जनजाति है जिसने 2,300 एकड़ क्षेत्र में अपना निवास अधिकार प्राप्त किया है। अबुझमाड़ में यह लागू हो जाने से छत्तीसगढ़ का पहला जिला होगा।