ट्रायल में सफलता मिलने के बाद अब गरीबी दूर करने के लिए प्रदेश के आदिवासियों को कड़कनाथ के चूजे बांटे जाएंगे। छत्तीसगढ़ कामधेनु विश्वविद्यालय दुर्ग अंजोरा ने 2020 तक एक लाख चूजे मुफ्त वितरण करने का लक्ष्य रखा है। भारतीय कृषि अनुसंधान (आइसीएआर) की पोषित आदिवासी परियोजना के तहत इसक वितरण होगा। परियोजना का एक मात्र उद्देश्य आदिवासियों, ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगों और स्व सहायता समूह की महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत करना है। विवि के कुलपति डॉ. एनपी दक्षिणकर ने बताया कि कड़कनाथ के वितरण आदिवासी क्षेत्र से गरीबी हटाने में बड़ी भूमिका निभाएगा। इसलिए बड़े स्तर पर वितरण का कार्य शुरू किया जा रहा है।
61 हितग्राहियों को दिये थे पांच हजार चूजे
विवि के कृषि विज्ञान केंद्र से लगभग 5,000 चूजों का वितरण 61 हितग्राहियों में ट्रायल के रूप में किया गया था। मां बम्लेश्वरी देवी स्व सहायता समूह की 50 आदिवासी महिलाओं को कुक्कुट आहार, मुर्गी दाना, पानी के बर्तन, दवा का वितरण किया गया था। यह कड़कनाथ का पालन वृहद रूप ले चुका है। इन्हें इसका लाभ मिलना शुरू हो गया है।
विवि में हेचरी मशीन लगी
विवि के वैज्ञानिकों के अनुसार अंचल के मौसम में कड़कनाथ में पूरी तरह सरवाइव करने की क्षमता है। लक्ष्य के आधार पर किसानों को चूजे देने के लिए विवि में हेचरी मशीन लगाई। इसमें अंडों से चूजे तैयार किये जाते हैं। हर आदिवासी को पांच चूजे दिये जायेंगे। दरअसल कड़कनाथ मुर्गी अंडे देने के बाद उसे सेती नहीं है। यानी उस पर बैठती नहीं है। इससे चूजे तैयार नहीं हो पाते। मशीन से लगभग 21 दिन में अंडे से चूजे तैयार होते हैं।
आमदनी में होगा इजाफा
मध्यप्रदेश के झबुआ सहित प्रदेश के कई स्थानों पर कड़कनाथ का पालन कर किसानों ने आमदनी बढ़ाई है। कड़कनाथ अन्य मुर्गे की तुलना में तिगुने दाम में बिकता है। इसकी कीमत 600 से 700 रुपये प्रति किलो है। पशुचिकित्सा एवं पशुपालन कॉलेज में एक चूजे की कीमत 40 रुपये है। ज्ञात हो कि विवि कड़कनाथ के जीवनचक्र को लेकर आदिवासी लोगों को शिविर के माध्यम से ट्रेनिंग भी देगा। इससे उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी।
आदिवासी क्षेत्रों में आय बढ़ाने के लिए कड़कनाथ का प्रयोग सफल रहा है। अब पोषित आदिवासी परियोजना के तहत कड़कनाथ के चूजों का वितरण होगा। इससे आदिवासियों की आमदनी बढ़ेगी। -डॉ. एनपी दक्षिणकर, कुलपति, छत्तीसगढ़ कामधेनु विश्वविद्यालय, दुर्ग अंजोरा