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विश्‍व आदिवासी दिवस: हॉकी के आसमान में चमक रही हैं झारखंड की ये बेटियां….

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हॉकी इंडिया में झारखंड की आदिवासी बेटियों का खासा दबदबा है. अंसुता लकड़ा, सलीमा टेटे, निक्की प्रधान, ब्‍यूटी डुंगडुंग, सुषमा कुमारी, ये ऐसे नाम हैं, जो हॉकी इंडिया में अलग पहचान रखते हैं.

आज विश्‍व आदिवासी दिवस है और झारखंड की पहचान आदिवासी संस्कृति से ही होती है. यहां का आदिवासी समाज आज किसी भी मामले में दूसरों से पीछे नहीं है. बात खेल की करें, तो आदिवासी बेटियां हर स्तर पर अपनी प्रतिभा का ढंका बजा रही हैं. हॉकी के क्षेत्र में तो यहां की बेटियों का खासा दबदबा है. अंसुता लकड़ा, सलीमा टेटे, निक्की प्रधान, ब्‍यूटी डुंगडुंग, सुषमा कुमारी, ये ऐसे नाम हैं, जो हॉकी इंडिया में अलग पहचान रखते हैं अंसुता लकड़ा- झारखंड की बेटी व भारतीय महिला टीम की पूर्व कप्तान असुंता लकड़ा बेहद साधारण परिवार में जन्मी थीं, लेकिन अपनी मेहनत के बल पर उन्होंने हॉकी में बड़ा मुकाम हासिल किया. 2000 से 2014 लगातार 14 वर्षों तक वह भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए खेलती रहीं. वह टीम की कप्तान भी रहीं. झारखंड के लिए ये गर्व की बात है कि हॉकी इंडिया हर वर्ष एक खिलाड़ी को असुंता अवार्ड देती है.

सिमडेगा की सलीमा टेटे वर्तमान में भारतीय महिला टीम का हिस्सा हैं. हाल में ही स्पेन में होने वाले अंतरराष्ट्रीय हॉकी मैचों के लिए उनका चयन महिला हॉकी टीम में हुआ था. सिमडेगा के बरकीछापर की रहने वाली सलीमा टेटे ने युवा ओलंपिक की रजत पदक विजेता टीम की अगुआई की थी. खूंटी की बेटी निक्की प्रधान भारतीय महिला हॉकी टीम की पहचान बन चुकी हैं. निक्की प्रधान रेलवे में कार्यरत हैं. खूंटी के एक बेहद छोटे से गांव हेसल से निकलकर निक्की प्रधान ने ओलंपिक तक का सफर पूरा किया. ओलंपिक में झारखंड की ओर से खेलने वाली निक्की पहली महिला हॉकी खिलाड़ी हैं.

ब्‍यूटी डुंगडुंग- जूनियर नेशनल हॉकी प्रतियोगिता में चैंपियन का खिताब जीतने वाली ब्‍यूटी डुंगडुंग एक बेहद ही गरीब परिवार से आती हैं. सिमडेगा के केरसई प्रखंड में बासने पंचायत की रहने वाली ब्‍यूटी को हॉकी विरासत में मिली. उनके दादा जुएल डुंगडुंग अच्‍छे हॉकी खिलाड़ी थे. ब्‍यूटी ने उन्‍हें ही अपना आदर्श मानकर हॉकी स्टिक थामा और मेहनत शुरू की. अपने जुनून के दम पर ब्यूटी का 2014 में आवासीय प्रशिक्षण केंद्र में चयन हो गया. बेहतर प्रशिक्षकों के मार्गदर्शन में ब्‍यूटी का खेल निखरता गया. 2017 में नेशनल जूनियर हॉकी में ब्‍यूटी ने गोल्‍ड मेडल हासिल किया. इसके बाद 2018 में जूनियर नेशनल में गोल्‍ड जीता. 2018-19 में खेलो इंडिया में ब्‍यूटी को सिल्‍वर मेडल प्राप्‍त हुआ. 2019 में एकबार फिर जूनियर नेशनल में गोल्‍ड मेडल मिला. संगीता कुमारी- सिमडेगा को हॉकी हाउस कहा जाता है. यहां से कई खिलाड़ी देश को मिला है. संगीता कुमारी उनमें से एक है. हॉकी इंडिया में स्‍ट्राइकर की भूमिका निभाने वाली संगीता ने अपने खेल से सबको चौंकाया है. 50 साल बाद हॉकी इंडिया को झारखंड से सुनीता के रूप में स्‍ट्राइकर मिला है. संगीता कुमारी केरसई प्रखंड की करंगागुड़ी गांव की रहने वाली है. 2012 में मात्र 11 साल की उम्र में उसने पहली बार हॉकी टूर्नामेंट में भाग लिया. यहीं पर प्रशिक्षकों की नजर उस पर पड़ी. और संगीता का चयन आवासीय प्रशिक्षण केंद्र के लिए हो गया. 2018 में अपने प्रदर्शन के दम पर संगीता ने नेशनल अंडर-18 टीम में जगह बनाई. बैंकॉक में चौथे महिला अंडर-18 एशिया कप हॉकी टूर्नामेंट में कांस्‍य पदक के लिए हुए मुकाबले में संगीता ने दो गोल दागकर हॉकी इंडिया को जीत दिलायी थी.

सुषमा कुमारी- जूनियर हॉकी टीम की खिलाड़ी सुषमा कुमारी को पेनाल्‍टी शूटआउट का स्‍पेशलिस्‍ट माना जाता है. जूनियर नेशनल हॉकी चैंपियनशिप में सुषमा के स्टिक का जादू चला और टीम इंडिया विजेता बनकर उभरी. सिमडेगा जिले के करसई प्रखंड के कारवारजोर गांव की रहने वाली सुषमा कुमारी भी गरीब आदिवासी परिवार से आती हैं. बचपन से ही उसे हॉकी का शौक चढ़ा, जिसको 2016 में एक मुकाम मिला. सुषमा का चयन सीनियर झारखंड हॉकी महिला टीम में हुआ. यूपी के सैफई में आयोजित 5वीं हॉकी इंडिया सीनियर नेशनल हॉकी चैंपियनशिप में सेमीफाइनल में गोल दागकर सुषमा ने पहली बार अपनी टीम को फाइनल में पहुंचाया था.

हॉकी के अलावा तीरंदाजी और फुटबॉल में भी झारखंड की आदिवासी बेटियां कमाल कर रही हैं.