झारखंड में महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में चारा घोटाले की तर्ज पर गड़बड़ी का खुलासा हुआ है. यह खुलासा आरटीआई के माध्यम से हुआ है. इसके तहत रामगढ़ के पतरातू और गोला प्रखंडों में लाभुकों के ठिकाने पर मोटरसाइकिल से ईंट और बालू पहुंचाये गये. सामाग्री ढोने वाले ट्रैक्टर ने एक दिन में नौ से दस फेरे लगाये. रांची जिले के सोनाहातू प्रखंड से भी यही कहानी सामने आई है.
चारा घोटाले की तरह मनरेगा घोटाला!
मनरेगा का यह घोटाला बिहार के पशुपालन घोटाले की याद दिलाता है. रामगढ़ के पतरातु और गोला प्रखंड के अलावा रांची के सोनाहातू प्रखंड में भी मनरेगा के लाभुको के घर मोटरसाइकिल से ईंट और बालू की सप्लाई की गयी. बिल्कुल वैसे जैसे पशुपालन घोटाले में स्कूटर पर चारा ढोया गया था.
इसका खुलासा आरटीआई से मिली जानकारी और सरकारी दस्तावेज से हुआ है. आरटीए के तहत मिले कागजात में रामगढ जिले के पतरातू प्रखंड के एक लाभुक के घर आपूर्तिकर्ता रविन्द्र कुमार महतो ने ईंट और बालू की आपूर्ति कराई थी. लेकिन इसके लिए जिस वाहन का नंबर कागजात में दर्ज है. वह एक मोटरसाइकिल का है. Jh01L-7296 नंबर की यह मोटरसाइकिल उधप महतो की है. इसका रजिस्ट्रेशन 07 मई 2011 को हुआ था.

कागजात के मुताबिक इसी मोटरसाइकिल से रविन्द्र कुमार ने बालू और ईंट लाभुक के घर पहुंचाया. कागज के मुताबिक इस वाहन से 20 मई 2016 को सामाग्री की आपूर्ति दिखायी गयी है. इस मोटरसाइकिल से तीन से चार बार ईंट और बालू की ढुलाई की गई.
सामाजिक कार्यकर्ता वसंत कुमार कुशवाहा ने आरटीआई के माध्यम से पतरातू और गोला प्रखंड ऑफिस से यह जानकारी हासिल की. उनकी माने तो यह सब बीडीओ, मुखिया, पंचायत सचिव और आपूर्तिकर्ता के नेक्सस से हुआ है. कागजात बताते हैं कि मोटरसाइकिल से ईंट, बालू, छड़ और सीमेंट तक ढोए गये. जानकारी के मुताबिक इस दिशा में कभी जांच तक नहीं की गयी. लिस्ट और कागज आता गया और आपूर्तिकर्ता को राशि की भुगतान होती गई.
सोनाहातू के बीडीओ कुमुद कुमार झा कहते हैं कि इस तरह की शिकायत कभी सामने नहीं आई है. सामने आई है, तो इसकी जांच कराएंगे.
मनरेगा के तहत कुएं, तालाब, मुर्गी शेड, बकरी शेड का निर्माण होता है. इसके तहत लाभुकों को दो बार पैसे मिलते हैं. लेबर कॉस्ट और सामान की राशियां अलग-अलग दी जाती हैं. लेबर कॉस्ट सीधे लाभुकों को दिया जाता है, जबकि सामाग्री के लिए रुपये वेंडर यानी आपूर्तिकर्ता को दिये जाते हैं. आपूर्तिकर्ता को भुगतान से पहले संबंधित पंचायत को काम की पूरी लिस्ट देनी होती है. इसी लिस्ट में चोरी की गुंजाइश होती है.