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छत्तीसगढ़ : गोंदला घास पर टिकी ग्रामीण गरीबों की आस

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 घास अगर किसानों के खेत में दिख जाए तो उसे अपनी फसल की चिंता सताने लगती है। अब आइए आज आपको हम एक ऐसी घास की जानकारी देने जा रहे हैं, जिसके ऊपर कई गांवों के गरीबों की आस टिकी हुई है। इसको स्थानीय भाषा में गोंदला घास कहते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम साइपरस डिस्टैंस है जिसे स्लेंडर साइपरस के रूप में भी जाना जाता है।

बनती है चटाई और अगरबत्ती:

गोंदला घास महानदी और उसकी सहायक नदियों में पाई जाने वाली विशेष प्रकार की घास है। इसके तने से जहां चटाई बनती है, तो वहीं इसकी जड़ों से हवन सामग्री और अगरबत्ती भी बनाई जाती है। ये घास हजारों गरीबों की रोजी-रोटी का जरिया बनी हुई है।

कितने में बिकती है जड़:

12 महीने नदी में  मिलने वाली इस घास से चटाई बनाने के साथ ही इसकी जड़ से आयुर्वेदिक औषधि, अगरबत्ती और हवन सामग्री बनाई जाती है। ग्रामीण दिन भर जुटकर नदी से गोंदला निकाल रहे हैं और इसे 13 सौ रुपये क्विंटल की दर से व्यापारियों को बेच रहे हैं। व्यापारी खुद ही यह घास लेने यहां आते हैं।

क्या है गोंदला?

गोंदला एक बारहमासी पौधा है, जो 140 सेमी (55 इंच) तक की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। इसे प्राचीन मिस्र, माइसेनियन ग्रीस और अन्य जगहों पर एक सुगंधित घास के रूप में और पानी को शुद्घ करने के लिए उपयोग किया जाता था। इसके इत्र का उपयोग प्राचीन यूनानी चिकित्सा में किया जाता है।

चरक संहिता में भी मिलता है उल्लेख :

इस घास का उल्लेख प्राचीन भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा की पुस्तक चरक संहिता (लगभग 100 ईस्वी) में भी किया गया है। इससे आधुनिक आयुर्वेदिक दवा बनाई जाती है जिसे मावे या मुन मूना चूर्ण के रूप में जाना जाता है। यह बुखार, पाचन तंत्र के विकार, कष्टार्तव और अन्य विकृतियों के लिए लाभकारी है।

गोंदला घास पर टिकी ग्रामीण गरीबों की आस 

जानिए गोंदला के गुण:

कंद के जीवाणुरोधी गुणों के चलते इसे 2000 साल पहले सूडान में रहने वाले लोगों ने दांतों के क्षय को रोकने के लिए उपयोग किया था और वे आज भी इसका उपयोग करते हैं। इसमें कई रासायनिक पदार्थों की पहचान की गई है। इसके कंद का उपयोग अगरब्त्ती और हवन सामग्री बनाने में भी हो रहा है। इसके साथ ही घास से आकर्षक चटाइयां बनाई जाती हैं।

नदी से हो रही कमाई:

ग्रामीणों और व्यापारियों को मुताबिक प्रतिदिन करीब 4 टन गोंदला घास नदी से निकाली जाती है। इसे ग्रामीण 13 रुपए प्रति किलो की दर से व्यापारियों को बेचते हैं। शिवनाथ नदी महानदी की प्रमुख सहायक नदी है।

यह राजनांदगांव जिले की अंबागढ़ तहसील की 625 मीटर ऊंची पानाबरस पहाड़ी क्षेत्र से निकलकर शिवरीनारायण (जिला जांजगीर चांपा) के पास महानदी में मिल जाती है। इसकी कुल लम्बाई 290 किमी है। यह नदी राजनांदगांव जिले से लेकर दुर्ग, बालोद, महासमुंद, जांजगीर-चांपा जैसे जिलों से होकर गुजरती है।

जहां-जहां से नदी गुजरती है, उसके किनारे के गांवों के ग्रामीण गोंदला संग्रह करते हैं। शिवनाथ की सहायक नदियों इसकी प्रमुख सहायक नदियां लीलागर, मनियारी, आगर, हांप, खारून, अरपा, आमनेर, सकरी, खरखरा, तांदुला और जमुनिया में भी गोंदला घास पाई जाती है। इस तरह नदी अपनी इस पैदावार के चलते लोगों के लिए आय का बड़ा जरिया बनी हुई है।

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