भारत और रूस के संबंध हर कसौटी में खरे उतरे हैं. जिन्होंने हमेशा उस वक्त एक दूसरे की मदद की, जब सारी दुनिया दुश्मन नजर आ रही थी.
आज आपको ये भी जानना चाहिए.भारत के रक्षा मित्र यानि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत में किस मकसद के साथ आए हैं. आज आपको समझना चाहिए कि रूस को अपने दोस्त भारत की जरूरत क्यों है और रूस से भारत क्या क्या हासिल करना चाहता है. सबसे पहले आपको भारत के सबसे बड़े हथियार सप्लायर और यूक्रेन वॉर के बाद प्रमुख उर्जा सहयोगी रूस की उन जरूरतों के बारे में जानना चाहिए . जो भारत पूरी कर सकता है.
दोनों देशों को एक दूसरे से क्या चाहिए
भारत को रूस से क्या चाहिए और रूस को भारत से क्या चाहिए..इसे समझने के लिए आज आपको भारत रूस दोस्ती की एक महत्वपूर्ण तस्वीर देखनी चाहिए. पुतिन के भारत में कदम रखने से पहले भारत और रूस के रक्षा मंत्रियों के बीच महत्वपूर्ण बैठक हुई. इस बैठक में हथियारों को लेकर भी बात हुई. फिलहाल रूस…भारत के जरिए अपने रक्षा उद्योग को फिर से जीवित करना चाहता है. इसीलिए अपने सबसे खतरनाक और आधुनिक हथियार भारत को देने के लिए तैयार है.
यूक्रेन वॉर की वजह से लगे प्रतिबंधों के बाद रूस का रक्षा निर्यात यूरोप और दुनिया के दूसरे देशों को लगभग समाप्त हो गया है. ऐसे में सिर्फ भारत ही रूस को संभाल सकता है. भारत अभी भी अपने 38 फीसदी हथियार रूस से खरीदता है.
पुतिन चाहते हैं कि भारत रूस के पांचवी पीढ़ी के विमान Su-57 में साझेदारी करे. इसके लिए रूस ने भारत में निर्माण और तकनीक ट्रांसफर का भी ऑफर दिया है. रूस चाहता है कि भारत..दुनिया के सबसे अचूक माने जाने वाले S-500 एयर डिफेंस सिस्टम को खरीदने का समझौता करे.
एक-दूसरे की जरूरत महसूस कर रहे दोनों देश
इसके अलावा ब्रह्मोस के नए संस्करण यानि सुपर ब्रह्मोस को बनाने के लिए रूस और भारत मिलकर काम करें.यानि रूस सिर्फ भारत से डील नहीं चाहता, वह भारत के साथ ऐसा सहयोग मॉडल चाहता है जिससे उसका पूरा रक्षा उद्योग जीवित रह सके.
सच्चाई ये है कि अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के बाद रूस के लिए सबसे बड़ा और विश्वसनीय ग्राहक भारत ही बचा है. लेकिन ऐसा नहीं इस ऱिश्ते में जरूरत सिर्फ रूस की है. आज भारत के सामने चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की चुनौती खड़ी है. चीन के पास पांचवी पीढ़ी के विमान जे-35 मौजूद हैं और पाकिस्तान को भी चीन से जे-35 मिलने वाले हैं. इसलिए भारत को भी जल्द से जल्द पांचवी पीढ़ी के स्टेल्थ लड़ाकू विमान की जरूरत है..जिस पर रूस का सुखोई 57 फिट बैठता है.
इसके अलावा आपरेशन सिंदूर में एस 400 का प्रदर्शन भी भारत के भरोसे को बढ़ाने वाला रहा है. भारत चाहता है कि एस 400 की बची हुई बैटरियां रूस से जल्दी आ जाएं और हाइपरसोनिक खतरे को रोकने के लिए S-500 भी भारत की जरूरत है. यानि भारत और रूस की जरुरतें एक दूसरे की पूरक हैं . फिर चाहें रक्षा क्षेत्र हो या फिर ऊर्जा क्षेत्र. अमेरिका के प्रतिबंधों के बाद पुतिन भारत से मदद चाहते हैं.
भारत दौरे से पाकिस्तान को क्या होगा फायदा
इसके लिए पुतिन भारत के साथ दीर्घकालिक तेल-गैस खरीद समझौते करना चाहते हैं. रूस चाहता है कि भारत केवल स्पॉट मार्केट से तेल न खरीदे बल्कि 10-20 साल की लंबी अवधि वाले कॉन्ट्रैक्ट साइन करे. ठीक वैसे ही जैसे चीन करता है. इससे रूस की तेल उत्पादक कंपनियां सुरक्षित रहेंगी. उन पर प्रतिबंधों का असर कम होगा और भारत में रूस को स्थायी बाज़ार मिल जाएगा.
सच्चाई ये है अगर रूस को भारत जैसा ऑयल कंज्यूमर स्थायी तौर पर मिल जाएगा तो यूरोपीय देश जो रूस से गैस और तेल खरीदना बंद करके उसे घुटनों पर लाना चाहते हैं. उनके मंसूबे धरे के धरे रह जाएंगे और रूस का सस्ता तेल भारत की इकोनॉमी को भी सूट करता है. लेकिन यहां पर भारत को रूस के साथ व्यापार में असमानता को भी देखना पड़ेगा और प्रधानमंत्री मोदी के लिए रूस से व्यापार असमानता दूर करना सबसे बड़ी जरूरत है.
पुतिन के भारत दौरे का एक महत्वपूर्ण एजेंडा व्यापार है. पुतिन का ये दौरा उस समय हो रहा है जब भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील पर बात अटकी हुई है और अमेरिका ने भारत के ख़िलाफ़ 50 प्रतिशत टैरिफ लगा रखा है.
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इसमें से 25 प्रतिशत टैरिफ तो रूस की वजह से है क्योंकि भारत, रूस से तेल ख़रीदता है. ऐसे में जब दोनों देशों के बीच व्यापार पर बात होगी तो अमेरिका का मुद्दा भी ज़रूर उठेगा. भारत और रूस के बीच संभावित व्यापार समझौते को डिकोड करने से पहले मौजूदा व्यापार संबंधों के बारे में जानना चाहिए.
2024-25 में भारत और रूस के बीच 68.72 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. लेकिन ये व्यापार पूरी तरह रूस के पक्ष में झुका हुआ है. रूस से भारत को 63.84 अरब डॉलर का निर्यात किया गया जबकि भारत ने रूस को सिर्फ़ 4.88 अरब डॉलर का निर्यात किया. यानी भारत रूस को जितना निर्यात करता है, उसका लगभग 13 गुना रूस से आयात करता है.
3 साल पहले के आंकड़े से तुलना करें तो 2021-22 में दोनों देशों के बीच 13.22 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था जिसमें रूस का निर्यात 9.87 अरब डॉलर का था जबकि भारत का निर्यात 3.25 अरब डॉलर का था.
अपना निर्यात बढ़ाना चाहता है भारत
यूक्रेन युद्ध के बाद व्यापार असंतुलन बढ़ने का सबसे बड़ा कारण रूस से भारत को तेल का निर्यात है. सस्ते तेल की वजह से रूस का निर्यात काफ़ी बढ़ गया है. हालांकि सस्ते तेल की वजह से भारत ने पिछले 3 वर्षों में 17 अरब डॉलर की बचत भी की है लेकिन इसके बावजूद भारत के लिए व्यापार असंतुलन दूर होना ज़रूरी है. अगले 5 वर्षों यानी 2030 तक दोनों देश व्यापार 100 अरब डॉलर बढ़ाना चाहते हैं और इसमें भारतीय निर्यात का बड़ा हिस्सा हो सकता है.
अमेरिकी टैरिफ के बाद भारत अपना निर्यात बढ़ाने के लिए नए देश चाहता है और इसमें रूस उसकी मदद कर सकता है. रूस भी इस बात को समझता है कि भारत पर अमेरिका के भारी टैरिफ का सबसे बड़ा कारण रूसी तेल है. यही वजह है कि खुद पुतिन भी भारत से आयात बढ़ाने का भरोसा दे चुके हैं. वो भारत के लिए रूसी बाज़ार खोलने की बात भी कर चुके हैं.
मौजूदा समय में रूस मुख्य रूप से भारत से दवाइयां, कृषि उत्पाद, रसायन, मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उत्पाद आयात करता है. आने वाले समय में भारत ऑटोमोबाइल, डेटा-प्रोसेसिंग इक्विपमेंट, और कपड़ों का निर्यात भी बढ़ाना चाहता है. इसके अलावा रूस, भारत से झींगा, चावल और फलों का आयात भी बढ़ाना चाहता है.
2030 के रोडमैप को मंजूरी देंगे दोनों देश
साथ ही दोनों देश अपनी मुद्रा में व्यापार बढ़ाने की कोशिश भी करेंगे. पुतिन के इस दौरे में 15 व्यावसायिक समझौतों की उम्मीद है. इस दौरे में पुतिन के साथ रूस के सात मंत्री और एक बड़ा बिज़नेस डेलिगेशन भी है. कई बड़ी कंपनियों के CEO भी पुतिन के साथ हैं. रूस के साथ होने वाले भारत के व्यापार समझौतों के बारे में भी आपको जानना चाहिए.
दोनों देश आर्थिक सहयोग के 2030 के रोडमैप को मंज़ूरी देंगे जो व्यापार बढ़ाने का मुख्य दस्तावेज़ होगा. कृषि और उर्वरक आपूर्ति पर समझौता होगा जिससे किसानों को लाभ मिलेगा. स्वास्थ्य और फार्मास्युटिकल के क्षेत्र में समझौता होगा जिससे भारतीय दवाओं का रूस में निर्यात बढ़ेगा. लेबर मोबिलिटी एग्रीमेंट से कुशल भारतीय कामगार रूस जाकर काम कर सकेंगे.
इसके अलावा रूस के नेतृत्व वाले यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट भी रफ्तार पकड़ेगा. दिल्ली में होने वाले ये समझौते 5 साल में 100 अरब डॉलर के व्यापार की बुनियाद बनने वाले हैं. साथ ही ये ट्रंप के टैरिफ का भी जवाब होगा.



