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पीतल की सीढ़ी से लेकर दरबार में लगे कॉल बेल तक…सरगुजा के महल में 6 दिनों तक मनता दशहरा

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बुराई पर अच्छाई की जीत यानी दशहरा वर्षों से मनाया जा रहा है वहीं सरगुजा में भी रियासत काल से जुड़ी परम्परा का राज घराना दशहरा के दिन निर्वहन किया जाता है क्या खास मान्यता है देखिए ग्राउंड रिपोर्ट…

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में दशहरा पर्व आज भी रियासतकालीन परंपराओं के साथ मनाया जाता है. सरगुजा रियासत में यह दिन खास महत्व रखता था, जब राजदरबार सजता था और आम जनता घंटों इंतजार के बाद राजा के दर्शन करती थी. कचहरी में राजा स्वयं बैठकर जनता की समस्याएं सुनते थे. ढोल-नगाड़ों और राजशाही अंदाज में दशहरा मनाया जाता था, जहां लोग राजा को नजराना भेंट करते और शस्त्र पूजा की जाती थी. समय के साथ भले ही बहुत कुछ बदला हो, लेकिन दशहरा मनाने की परंपरा अब भी रघुनाथ पैलेस में जीवंत है. आज भी इस अवसर पर आम जनता के लिए महल के द्वार खोले जाते हैं और लोग वर्तमान उत्‍तराधिकारी टी.एस. सिंहदेव (टीएस बाबा) से मुलाकात करते हैं.
रियासत काल से जुड़ी पारंपरिक पूजा के बारे में जानिए
सरगुजा राजपरिवार द्वारा प्रत्येक वर्ष दशहरा के लिए फाटक, अश्व, गज, शस्त्र, नगाड़ा, नवग्रह, ध्वज, निशान सहित अन्य पूजा परंपरा अनुसार राजपरिवार के मुखिया व 117 वे उतरा अधिकारी टीएस सिंहदेव सहित उनके उत्तराधिकारी आदित्येश्वर शरण सिंहदेव ने की। पूर्वजों से चली आ रही परंपरा का राजपरिवार ने निर्वहन किया. दशहरा का पर्व राज रियासत के प्रति एक मान्यता का प्रतीक है जिसमें दशहरा के दिन आकर राजपरिवार से जुड़े लोग एवं आमजन राजा के प्रति अपना विश्वास प्रकट करते हैं. नज़राना पेश करते हैं.
कैसे तैयार होता था रघुनाथ पैलेस जानिए
इस पैलेस को बनाने और इसमें बेहतरीन साज सज्जा का श्रेय महारानी विजेश्वरी को जाता है महारानी विजेश्वरी नेपाल राजघराने से थी. जिनका विवाह सरगुज़ा राजपरिवार में हुआ था महारानी विजेश्वरी ने नेपाल के पैलेस की तर्ज पर नक्शा तैयार किया और इंजीनियर की टीम को पैलेस निर्माण का जिमा सौंपा गया पैलेस के आंगन में बचपन से रहने वाले और राजपरिवार के करीबी गोविंद शर्मा बताते हैं कि, यह पैलेस 11 एकड़ जमीन में फैला हुआ था. जिसमे बॉटनिकल गार्डन भी शामिल था. पैलेस में 7 आंगन हैं मुख्य द्वार के बगल में एक कुंआ है.
इस पैलेस के हर आंगन, हर चीज की अपनी एक कहानी है, बेहद खास है यहां की हर चीज. पैलेस के अंदर जाते ही पहला आंगन है. जिसमे शीशे के दरवाजे लगे हैं. इस दरवाजे के पीछे पीतल की सीढ़ी है. पीतल सीढ़ी भी बेहद खास मकसद से बनवाई गई थी. असल में जब महाराज दरबार में होते थे तो उन्हें खाना खाने या अन्य किसी काम से महारानी के कक्ष के क्षेत्र में आना होता था तो लंबा रास्ता तय करना पड़ता था. महाराज समय के बड़े पाबंद थे जिसे देखते हुए पीतल की सीढ़ी बनाई गई यह सीढ़ी महाराज के दरबार और महारानी के कक्ष का एक शॉर्ट कट रास्ता था. जब भी महारानी को महाराज से कोई काम होता वो इसी रास्ते से आकर अपनी बात कह देतीं. दरबार में महाराज को सूचना देने के लिए कॉल बेल लगाई गई थी

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