Bhoot preth: हिन्दू धर्मग्रंथों और ज्योतिष शास्त्र में भूत-प्रेत, पिशाच और अदृश्य शक्तियों का उल्लेख मिलता है. सवाल यह है कि क्या ये वास्तव में अस्तित्व में हैं या फिर केवल मन का भ्रम है?
शास्त्र इस विषय पर गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं. शास्त्रों में भूत-प्रेत का उल्लेख गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे ग्रंथ बताते हैं कि जब आत्मा शरीर त्याग देती है और उचित कर्मों के कारण उसे तुरंत मोक्ष या अगला जन्म नहीं मिलता, तब वह बीच की स्थिति में भटकती है. ऐसी आत्माओं को भूत-प्रेत कहा गया है. वे अपनी अधूरी इच्छाओं, क्रोध या आसक्ति के कारण संसार में विचरण करते रहते हैं.
ज्योतिष दृष्टि से भूत-प्रेत ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, राहु और केतु की दशा, शनि की साढ़ेसाती, चंद्रमा का नीच राशि में होना या अष्टम भाव की अशुभ स्थिति इंसान के मन को भ्रमित करती है. ऐसे समय व्यक्ति को अक्सर अदृश्य छाया, डरावने सपने और मानसिक अस्थिरता का अनुभव होता है. शास्त्र इसे “भूत बाधा” भी कहते हैं. हालांकि कई बार यह केवल मानसिक भ्रम भी हो सकता है, जिसे ज्योतिषीय ग्रह-स्थितियां और अधिक बढ़ा देती हैं. भ्रम और वास्तविकता शास्त्र कहते हैं कि हर आत्मा एक ऊर्जा है. सकारात्मक आत्माएं पूर्वज या पितृ रूप में आशीर्वाद देती हैं, जबकि नकारात्मक आत्माएं भय का कारण बनती हैं. लेकिन अधिकतर मामलों में जो लोग “भूत-प्रेत” महसूस करते हैं, वे वास्तव में अपने ही मन के डर और अशुभ ग्रहों के प्रभाव से ग्रसित होते हैं. यह भ्रम धीरे-धीरे वास्तविक अनुभव जैसा प्रतीत होता है.
उपाय और शांति
शास्त्रों में भूत-प्रेत या भ्रम से मुक्ति पाने के लिए मंत्रजप, हनुमान चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र और गीता पाठ का उल्लेख है. इसके साथ ही गायत्री मंत्र और पितृ तर्पण करने से भी आत्मिक शांति मिलती है. ज्योतिषी राहु-केतु शांति या शनि शांति अनुष्ठान की भी सलाह देते हैं.