“क्या हिमालय की ऊंचाइयों में आज भी मौजूद है संजीवनी? जानें क्या हैं सच”
संजीवनी बूटी यह नाम सुनते ही मन में रामायण की वह घटना जीवंत हो उठती है, जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो जाते हैं और हनुमान संजीवनी बूटी लाकर उन्हें जीवनदान देते हैं।
यह प्रसंग मात्र एक धार्मिक कथा भर नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति की चेतना में रचा-बसा एक प्रेरणास्पद प्रतीक बन चुका है। हालांकि आज के वैज्ञानिक युग में यह प्रश्न उठता है कि संजीवनी बूटी कोई वास्तविक जड़ी-बूटी थी या फिर सिर्फ एक आध्यात्मिक प्रतीक जिसे रूपक के तौर पर प्रस्तुत किया गया है।
शास्त्रों में संजीवनी बूटी का उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड में संजीवनी बूटी का उल्लेख तब होता है जब रावण का पुत्र मेघनाद (इंद्रजीत) लक्ष्मण पर शक्तिबाण से प्रहार करता है और वे मूर्छित हो जाते हैं। जीवन की डोर कमजोर पड़ते देख, हनुमान को हिमालय के पश्चिम में स्थित द्रोणगिरि पर्वत से संजीवनी सहित चार प्रकार की दिव्य औषधियां लाने का आदेश दिया जाता है।
संजीवनी का शाब्दिक अर्थ है – “जीवन देने वाली”। यही कारण है कि इस औषधि को अमृत तुल्य माना गया है।
विज्ञान की नजर में संजीवनी बूटी आधुनिक विज्ञान ने भी इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश की है। देहरादून स्थित भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (FRI) ने एक विशेष वनस्पति Selaginella bryopteris को संजीवनी बूटी का संभावित रूप माना है। इस पौधे को “Resurrection Plant” भी कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी तरह सूखने के बाद भी जल मिलते ही पुनः हरा-भरा हो उठता है। यह गुण इसे जीवनदायिनी बनाता है।
इसमें मौजूद एंटीऑक्सिडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और ऊर्जा बढ़ाने वाले गुण इसे आयुर्वेद में भी खास बनाते हैं। प्राचीन ग्रंथों में इसे प्राणवर्धक, बलवर्धक और रोगनाशक बताया गया है।
कहां मिलती है यह रहस्यमयी बूटी? लोक मान्यताओं के अनुसार, उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित द्रोणगिरि पर्वत ही वह स्थान है जहां से हनुमान जी ने संजीवनी बूटी प्राप्त की थी। यह पर्वतीय इलाका आज भी शोधकर्ताओं और आयुर्वेदाचार्यों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यह बूटी आमतौर पर 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले ठंडे क्षेत्रों में पाई जाती है, जहां वनस्पति विज्ञानियों को कई दुर्लभ औषधियां मिलती हैं।
क्या संजीवनी बूटी एक प्रतीक मात्र है? कई आधुनिक विचारकों का मानना है कि संजीवनी बूटी सिर्फ एक विशिष्ट पौधा नहीं, बल्कि जीवन की रक्षा करने वाली चिकित्सा प्रणाली या शक्ति का प्रतीक है। हो सकता है यह किसी खास औषधीय मिश्रण या आयुर्वेदिक ज्ञान का रूप हो, जिसे रूपक के ज़रिए जनमानस में प्रस्तुत किया गया हो।
आयुर्वेद में ‘संजीवनी’ शब्द का महत्व आयुर्वेद में संजीवनी वटी नामक एक प्रसिद्ध औषधि भी है, जो बुखार, थकान, विष या गंभीर रोगों के इलाज में उपयोगी मानी जाती है। यह दवा अनेक औषधीय भस्मों और जड़ी-बूटियों के संयोजन से बनाई जाती है। इससे यह संकेत मिलता है कि संजीवनी न सिर्फ एक वनस्पति, बल्कि एक उन्नत आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली का भी हिस्सा रही होगी।
संजीवनी बूटी का रहस्य आज भी विज्ञान और आस्था के बीच एक सेतु बना हुआ है। एक ओर Selaginella bryopteris जैसे पौधों को इसके वैज्ञानिक स्वरूप से जोड़ा जाता है, तो दूसरी ओर धार्मिक आख्यान और लोकमान्यताएं इसे जीवनदायिनी आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक मानती हैं। यह भी संभव है कि यह बूटी अब भी हिमालय की दुर्गम चोटियों में कहीं छिपी हो, या फिर यह हमारे प्राचीन आयुर्वेदिक ज्ञान की एक अनुपम धरोहर रही हो।



