भारत इस समय दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जिसकी जनसंख्या लगभग 1.46 अरब तक पहुंच चुकी है.
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की 2025 रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले चार दशकों में यह संख्या 1.7 अरब तक जाएगी और फिर धीरे-धीरे गिरावट शुरू होगी.
रिपोर्ट बताती है कि भारत का Total Fertility Rate (TFR) अब 1.9 पर आ गया है, जो रिप्लेसमेंट लेवल 2.1 से नीचे है. इसका अर्थ है कि हर पीढ़ी खुद को पूरी तरह से रिप्लेस नहीं कर पा रही. यह स्थिति भले जनसंख्या वृद्धि को कंट्रोल करती दिखे, लेकिन इसके पीछे छिपा बड़ा मुद्दा यह है कि लोग अपनी इच्छानुसार परिवार नहीं बना पा रहे. खासकर शहरी क्षेत्रों में आर्थिक दबाव, बदलती लाइफस्टाइल और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों ने बच्चों के जन्म को टालने या छोड़ने का चलन बढ़ा दिया है. यही वजह है कि बढ़ती आबादी के बावजूद इन्फर्टिलिटी का खतरा तेजी से बढ़ रहा है.
भारत का फर्टिलिटी रेट में गिरावट के कई कारण हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी परिवार बड़े हैं, लेकिन शहरी इलाकों में स्थिति बिल्कुल अलग है. यहां एडुकेटेड मिडल-क्लास कपल्स आर्थिक असुरक्षा, नौकरी की अस्थिरता और महंगे मकानों के कारण बच्चा पैदा करने से हिचक रहे हैं. इसके अलावा देर से शादी करना, लगातार काम का दबाव और बढ़ती उम्र में मां पिता बनने की जिम्मेदारी लेना भी एक बड़ा कारण है.
लाइफस्टाइल से जुड़ी आदतें जैसे तनाव, अनहेल्दी खानपान, धूम्रपान और शराब का सेवन फर्टिलिटी रेट पर बुरा असर डाल रही हैं. वहीं, महिलाओं में पीसीओएस, थायरॉइड और हॉर्मोनल इम्बैलेंस जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे गर्भधारण की समस्या और कठिन होती जा रही है. इस तरह, आबादी बढ़ने के बावजूद समाज के कई लोग अपने इच्छित बच्चे प्राप्त करने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.
इन्फर्टिलिटी और आबादी की समस्या UNFPA की रिपोर्ट में स्पष्ट है कि समस्या केवल जनसंख्या कंट्रोल की नहीं है, बल्कि बच्चे पैदा करने से जुड़े फैसले की स्वतंत्रता की है. सर्वे के अनुसार, कई लोग अनचाही गर्भधारण का सामना करते हैं, जबकि उतने ही लोग अपनी इच्छित संतान नहीं पा पाते हैं. शहरी भारत में फर्टिलिटी रेट 1.6 से 1.7 तक गिर चुका है, जो गंभीर चिंता का विषय है. अगर यही स्थिति बनी रही, तो साल 2100 तक भारत की आबादी करीब 93 करोड़ तक गिर सकती है. इससे सिर्फ आबादी से मिलने वाला आर्थिक फायदा ही प्रभावित नहीं होगा, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था और समाज पर भी असर पड़ेगा.
इन्फर्टिलिटी का एक कारण यह भी है कि आज के लाइफस्टाइल ने प्राकृतिक गर्भधारण प्रक्रिया पर दबाव बढ़ा दिया है. देर से गर्भधारण करने पर महिलाओं में समस्याएं बढ़ जाती हैं और पुरुषों में स्पर्म क्वालिटी घटती है. इसके अलावा, आईवीएफ (IVF), आईयूआई (IUI) जैसे फर्टिलिटी ट्रीटमेंट महंगे होने के कारण सभी के लिए उपलब्ध नहीं हैं. इसीलिए, यह चुनौती केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य का बड़ा मुद्दा बन चुकी है. अगर अभी से सही कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में आबादी का संतुलन गड़बड़ हो सकता है और गंभीर मुश्किलें आ सकती हैं.
समाधान और सुझाव फर्टिलिटी से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं को सभी के लिए आसान और सस्ती बनाना जरूरी है. युवाओं को स्वस्थ लाइफस्टाइल और अच्छी डाइट के प्रति जानकारी देना आवश्यक है. देर से विवाह या माता-पिता बनने पर विचार करते समय चिकित्सकीय सलाह लेना फायदेमंद हो सकता है. महिलाओं में पीसीओएस, थायरॉइड और हॉर्मोनल समस्याओं की समय पर जांच और उपचार करना जरूरी है. समाज और सरकारी संस्थाओं को मिलकर फर्टिलिटी जागरूकता बढ़ाने के उपाय करने चाहिए.