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“‘जब भी मुझसे मिलने आएंगे. प्रेमानंद जी महाराज से मुलाक़ात पर बोले रामभद्राचार्य, धीरेन्द्र शास्त्री को लेकर कही ये बड़ी बात”

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“‘जब भी मुझसे मिलने आएंगे. प्रेमानंद जी महाराज से मुलाक़ात पर बोले रामभद्राचार्य, धीरेन्द्र शास्त्री को लेकर कही ये बड़ी बात”

तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य एक साक्षात्कार के बाद फैले आक्रोश को शांत करने के लिए आगे आए हैं। उन्होंने एक वीडियो जारी कर कहा है कि विधर्मी ताकतें सनातन धर्म को विकृत करके उसे कमजोर करती हैं, संतों में मतभेद पैदा करती हैं।उन्होंने कहा कि सभी को एकजुट होकर हिंदू धर्म की रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिए।

मेरे बारे में जो भ्रम फैलाया जा रहा है, वह गलत है। मैंने प्रेमानंद जी या किसी अन्य संत के बारे में कोई गलत टिप्पणी नहीं की है और न ही कभी करूंगा।

उन्होंने कहा कि अब जब भी प्रेमानंद जी मुझसे मिलने आएंगे, मैं उन्हें आशीर्वाद जरूर दूंगा। मैं उन्हें गले लगाऊंगा और भगवान श्री रामचंद्र जी से उनके स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना भी करूंगा। उनके उत्तराधिकारी ने यह संदेश इंटरनेट मीडिया पर साझा किया है।वीडियो में जगद्गुरु कह रहे हैं कि आज सनातन धर्म पर हर तरफ से आक्रमण हो रहा है, ऐसे में सभी हिंदुओं को आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ आने की जरूरत है। हमने साढ़े पांच सौ साल की लड़ाई जीत ली है। हमें श्री राम मंदिर मिल गया। हमें कृष्ण जन्मभूमि काशी और विश्वनाथ भी मिलेंगे।

अब प्रेमानंद के बारे में। मैंने प्रेमानंद जी के लिए कोई अपमानजनक टिप्पणी नहीं की है। मेरी टिप्पणी बालक के पुत्र के समान है, मेरी आयु भी बढ़ गई है। आचार्य होने के नाते मैं सभी से कहता हूँ कि उन्हें संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए।आज साधारण लोग चोला पहनकर बयान दे रहे हैं, जिन्हें एक अक्षर भी नहीं आता। मैंने अपने उत्तराधिकारी रामचंद्र दास से भी कहा है कि उन्हें संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए। मैं सभी से कह रहा हूँ कि प्रत्येक हिंदू को संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए।

मैं केवल कहता नहीं हूँ, मैं स्वयं 18-18 घंटे अध्ययन करता हूँ और करता रहूँगा। उन्होंने एक बार फिर कहा कि ‘यावत् जीव मन्ते विप्र’। मैंने प्रेमानंद के लिए कोई अपमानजनक टिप्पणी नहीं की है, हाँ, मैं चमत्कारों को प्रणाम नहीं करता।मैंने अपने शिष्य धीरेंद्र शास्त्री से भी यही कहा था, पढ़ो-लिखो। सभी को अध्ययन करना चाहिए। भारत की दो प्रतिष्ठाएँ हैं – संस्कृत और संस्कृति। भारतीय संस्कृति को जानने के लिए संस्कृत का अध्ययन करना नितांत आवश्यक है। मैं किसी के लिए कुछ नहीं कह रहा हूँ, सभी संत मेरे लिए स्नेह के पात्र हैं और रहेंगे।