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CG: 127 साल से पोरा पर्व की अलग और अनोखी परंपरा आज भी निभाई जा रही है। यहां रोटी के बदले खिलौने खरीदे जाते हैं, वो भी पैसे के बिना।

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CG: 127 साल से पोरा पर्व की अलग और अनोखी परंपरा आज भी निभाई जा रही है। यहां रोटी के बदले खिलौने खरीदे जाते हैं, वो भी पैसे के बिना।

छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति और परंपराएं आज भी गांवों में जीवंत हैं। इसका अनोखा उदाहरण बलौदाबाजार जिले में लवन तहसील अंतर्गत कोरदा गांव में देखने मिलता है। यहां 127 साल से पोरा पर्व की अलग और अनोखी परंपरा आज भी निभाई जा रही है। यहां रोटी के बदले खिलौने खरीदे जाते हैं, वो भी पैसे के बिना।

कोरदा में पोरा पर बाजार सजता है, लेकिन यहां न कोई नगद भुगतान होता है, न कोई डिजिटल पेमेंट। महिलाएं और लड़कियां अपने हाथों से बनाए गए रोटी, ठेठरी, खुरमी, पुड़ी, बड़ा, भजिया जैसे पकवानों के बदले में मिट्टी, कागज और लकड़ी से बने पारंपरिक खिलौने खरीदती हैं। यह लेन-देन शुद्ध रूप से परंपरा और आपसी विश्वास पर आधारित है। पोरा के दिन दोपहर 2 बजे से लेकर रात 8 बजे तक पोरा मेले का आयोजन होता है। गांव की महिलाएं और लड़कियां तालाब पार बने घर घुंदिया में बैठती हैं।

यह घर 6 फीट लंबा-चौड़ा होता है, जिसमें महिलाएं अपने पकवान लेकर आती हैं। फिर बाजार में जाकर खिलौने खरीदती हैं। यह दृश्य न केवल अनोखा होता है बल्कि गांव की एकता और महिला सशक्तिकरण का प्रतीक भी है। इस साल भी लगातार हो रही बारिश पोरा पर्व की तैयारियों में कोई बाधा नहीं बनी। आसपास के गांवों लवन, डोंगरा, अहिल्दा, बरदा, कोलिहा, मुंडा आदि जगहों से हजारों की संख्या में ग्रामीण मेले में शामिल हुए। भीड़ इतनी थी कि लोगों के खड़े होने तक की जगह नहीं थी।
करारोपण अधिकारी मनहरण लाल वर्मा ने अपने माता-पिता की स्मृति में होनहार विद्यार्थियों को सम्मानित किया। इनमें कक्षा पांचवी के आदित्य रात्रे पिता फागूलाल रात्रे, 8वीं की तुलजा वर्मा पिता हरिशंकर वर्मा, 10वीं की तिलोत्तमा वर्मा पिता ओमप्रकाश वर्मा और 12वीं के युवराज वर्मा पिता शैलेन्द्र वर्मा शामिल रहे। इन सभी को प्रतीक चिन्ह, नकद राशि और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। मुख्य अतिथि जिला पंचायत उपाध्यक्ष पवन साहू थे। उन्होंने कहा, कोरदा का पोरा छत्तीसगढ़ी संस्कृति की धरोहर है। यहां की माताएं-बहनें इसे पूरी श्रद्धा और उमंग से निभाती हैं। हमें मिलकर इसे आगे बढ़ाना है। कार्यक्रम की अध्यक्षता सरपंच अनुपा बाई अश्वनी वर्मा ने की।
गांव के पुरुष वर्ग मिट्टी और कागज से खिलौने, फूल और अन्य कलाकृतियां बनाते हैं। महिलाएं घर घुंदिया तैयार करती हैं। यह आयोजन सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव बन गया है, जिसमें गांव का हर वर्ग, हर उम्र का व्यक्ति शामिल होता है। पोरा को और भी रोचक बनाने के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। इसमें बच्चों और युवाओं ने मिट्टी व कागज से बैल, बैला, घर, कोठा, कलात्मक मूर्तियां बनाईं। 100 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।