छत्तीसगढ़ के बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्रों में गैर-आदिवासी व्यापारियों द्वारा जंगल की जमीन पर कब्जा जमाने की होड़ मची हुई है। ये कब्जे आमतौर पर लीज़ के बहाने किए जा रहे हैं, जहां आदिवासियों से उनकी जमीन खरीदने के एवज में मामूली रकम देकर स्थायी ढांचे खड़े किए जा रहे हैं।
इसके बाद फॉरेस्ट राइट एक्ट (Forest Rights Act) के तहत भूमि अधिकार के दावे किए जाते हैं। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ पूरे देश में सबसे अधिक वन भूमि अधिकार दावे दर्ज कराने वाला राज्य बन गया है।
गैर-आदिवासी भी कर रहे आदिवासी नाम से दावे
हालांकि कानूनन आदिवासी भूमि केवल किसी अन्य आदिवासी द्वारा ही खरीदी जा सकती है, फिर भी कई गैर-आदिवासी व्यापारी और लोग फर्जीवाड़े के जरिए आदिवासी नाम पर जमीन खरीदने और कब्जा करने में लगे हैं। जब ये दावे जिला प्रशासन के पास पहुंचते हैं, तो जांच के बाद बड़ी संख्या में इन्हें खारिज भी किया जा रहा है।
आधे से ज्यादा दावे खारिज
वन भूमि अधिकार के तहत अब तक छत्तीसगढ़ में कुल 9 लाख 47 हजार 479 दावे किए जा चुके हैं। इनमें से अब तक 4 लाख 4 हजार 129 लोगों के दावे खारिज कर दिए गए हैं। इसके साथ ही 3 हजार 658 संगठनों के दावे भी अमान्य करार दिए गए हैं।
देश भर में 31 मई 2025 तक कुल 36.3% दावों को खारिज किया गया है, जबकि अकेले छत्तीसगढ़ में खारिजी दर इससे कहीं अधिक रही है।
ग्रामसभा के माध्यम से होते हैं दावे
वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आदिवासी समुदाय और मान्यता प्राप्त संगठनों को जंगल की जमीन पर अधिकार देने की व्यवस्था है। इसके लिए ग्रामसभाएं दावे करती हैं, जिनका सत्यापन जिला प्रशासन द्वारा किया जाता है। जांच के बाद ही पट्टे जारी किए जाते हैं।
संसद में पेश हुई रिपोर्ट से खुलासा
संसद में भूमि अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन पर पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ में कुल दावे 9,47,479 थे जिनमें 4,04,129+ खारिज हो गए. ओडिशा में 7,36,172 दावे थे जिनमें 1,40,000 खारिज हो गए और मध्य प्रदेश में 6,27,513 दावे थे जिनमें खारिज होने वाले दावे अभी स्पष्ट नहीं हैं.