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डीएपी गायब, नकली खाद से फसलों को नुकसान

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किसान अपने खेतों की जुताई और रबी फसल की बुआई में जुट गए हैं। यहां करीब 15 हजार हेक्टेयर जमीन पर रबी फसल की बुआई की तैयारी है। इस बीच बाजर से डीएपी नामक उर्वरक गायब है। इस वजह से किसान परेशान हैं। कई किसान खाद नहीं मिलने की वजह से गेहूं की बुआई नहीं कर पा रहे हैं

जागरण संवाददाता, साहिबगंज : नवंबर और दिसंबर का महीना रबी फसल की बुआई के अनुकूल है। इसके बीज के साथ किसानों को खाद (यूरिया व डीएपी) की जरूरत होती है। साहिबगंज में बीज किसानों को मिल रहा है पर फसलों को मजबूती देनेवाला डीएपी खाद नहीं मिल रहा है। इस वजह जिले के किसान काफी मायूस है। साथ ही जो डीएपी बाजार में मिल रहा है, वह मिलावटी है। इससे वे और भी सहमे हैं।

बता दें कि जिले में गंगा का जलस्तर घटने के साथ ही किसान अपने खेतों की जुताई जुट गए हैं। यहां करीब 15 हजार हेक्टेयर जमीन पर रबी फसल की बुआई की तैयारी है। बाजर से डीएपी गायब होने से किसान गेहूं की बुआई नहीं कर पा रहे हैं। 

डीएपी की इस किल्लत का लाभ कुछ खाद कारोबारी उठा रहे हैं। वे डीएपी के बोरे में मिक्सचर खाद पैक कर बेच रहे हैं। यह मिलावट बंगाल में की जा रही है। वहीं से दुकानदार इसे लाकर बेच रहे हैं। बंगाल के सीमावर्ती जिलों में इस खाद की बिक्री धड़ल्ले से की जा रही है। मिक्सचर की कीमत करीब सात सौ रुपये प्रति बोरा है, जबकि डीएपी के नाम पर वह 1400 से 1500 रुपये में आसानी से बिक जाता है। डीएपी और मिक्चर का दाना एक समान ही रहता है। इस वजह से उसकी पहचान मुश्किल है। दुकानदार पढ़े लिखे किसानों को डीएपी देने से परहेज भी कर रहे हैं। वे कम पढ़े लिखे लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। जिला कृषि विभाग इस मामले में मौन है। 

पिछले दिनों देवघर में इस प्रकार की जालसाजी पकड़ी गई थी। इस मामले में कुछ लोगों पर मुकदमा भी हुआ था। खरीफ फसल के सीजन में दुमका से आए पदाधिकारियों ने खाद की कालाबाजारी की सूचना पर जिले की कुछ दुकानों में छापेमारी भी की थी। इस क्रम में गड़बड़ी पाए जाने पर जिले के तीन खाद विक्रेता का लाइसेंस रद कर दिया गया था। इसके बाद भी हालात में सुधार नहीं है।