अक्सर ऐसा कहा जाता है कि महिलाओं को श्मशान घाट नहीं जाना चाहिए लेकिन राजनांदगांव के मठपारा मुक्तिधाम की तस्वीर कुछ अलग ही है. यहां एक महिला संतोषी ठाकुर ही सारा कामकाज संभालती हैं. वे निडर होकर अपने काम को अंजाम देती हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पेश है उनकी ही कहानी
हिंदू धर्म में आम तौर पर महिलाओं का श्मशान में जाना वर्जित माना जाता है,लेकिन राजनांदगांव के श्मशान में एक महिला ही पूरे श्मशान का जिम्मा उठा रही हैं. आप ये जानकर थोड़ा और चौंक जाएंगे कि ये महिला बीते 22 सालों से अपने काम को अनवरत अंजाम दे रही हैं. सामाजिक कुरीतियों को पीछे छोड़ कर अपने काम में जुटी इस महिला का नाम है संतोषी ठाकुर. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आइए जानते हैं संतोषी ठाकुर की कहानी जो समाज की वर्जनाओं को तोड़ कर अपना अलग मुकाम बना चुकी हैं.
शुरुआती दौर में वो श्मशान में छोटा-मोटा काम ही करती थी. शुरू के 10 साल तक तो ऐसा ही चला लेकिन बाद में पूरे श्मशान की जिम्मेदारी उन्होंने उठा ली
आपने अक्सर सुना होगा कि महिलाएं अगर ठान लें तो कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, कठिन से कठिन काम को भी वो आसानी से कर सकती हैं.कुछ ऐसी ही कहानी है संतोषी ठाकुर की
संतोषी बताती हैं कि उनकी शादी के बाद घर की स्थिति अच्छी नहीं थी. बच्चा होने के बाद आर्थिक स्थिति और भी खराब हो गई. पति की कमाई से घर नहीं चलता था. इसी दौरान सास-ससुर ने भी घर से निकाल दिया. जिसके बाद वो पति के साथ किराए के घर में रहने लगी. इसी दौरान पड़ोस की महिला ने बताया था कि श्मशान घाट में सहायक का काम है. संतोषी ने इस काम को करने का ठाना और पति ने भी साथ दिया. उस समय उनका बच्चा इतना छोटा था कि ठीक से चल भी नहीं पाता था. इन परिस्थितियों में उन्होंने काम करना शुरू किया. वे स्वीकारती हैं कि पहले थोड़ा खराब लगता था लेकिन अब आदत हो गई है. अब तो दूसरी महिलाएं उनसे बोलती हैं कि आपकी हिम्मत हमें भी प्रेरणा देती है.