छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के हमले में पुलिस के डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड यानी DRG के 10 जवान मारे गए। इस दौरान एक ड्राइवर की भी मौत हो गई। कहा जा रहा है कि नक्सलियों ने IED के जरिए बुधवार को जवानों को निशाना बनाया था।
इस घटना के साथ ही सवाल फिर खड़ा हो गया है कि आखिर छत्तीसगढ़ बार-बार माओवादियों का निशाना क्यों बन रहा है। अप्रैल 2021 में भी राज्य के बीजापुर जिले में सुरक्षाबलों के 22 जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
छत्तीसगढ़ और माओवाद
माना जाता है कि छत्तीसगढ़ एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां माओवादी भारी संख्या में मौजूद हैं। ये बड़े हमलों को भी अंजाम देने की क्षमता रखते हैं। सरकार की तरफ से जारी आंकड़े बताते हैं कि 2018 से 2022 के बीच वामपंथी चरमपंथी घटनाओं के चलते हुईं 1132 हिंसक घटनाओं में सुरक्षाबलों के 168 और 335 आम नागरिकों की मौत हुई।
खास बात है कि इस दौरान कुल घटनाओं के एक तिहाई से ज्यादा मामले छत्तीसगढ़ में दर्ज किए गए। साथ ही यहां ही 70-90 फीसदी मौतें हुईं।
क्यों छत्तीसगढ़ ही बनता है निशाना?
कहा जाता है कि माओवादियों के खिलाफ युद्ध केवल राज्य की पुलिस के बल पर ही जीता जा सकता है। इस मामले में इस सिद्धांत को माना जाता है। अब इसकी वजह पुलिस के पास स्थानीय जानकारी, भाषा की समझ और नेटवर्क होता है। स्थानीय पुलिस की सक्रियता को ही आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड में माओवाद की समस्या कम करने का श्रेय दिया जाता है।
इन सभी राज्यों में पुलिस बलों में स्पेशल यूनिट्स बनाई गई हैं। इन्हें खास ट्रेनिंग दी जाती है। एक मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि यह प्रक्रिया छत्तीसगढ़ में देरी से शुरू हुई। इधर, पड़ोसी राज्यों की पुलिस ने भी माओवादियों को खदेड़ कर छत्तीसगढ़ पहुंचा दिया था। कुछ सालों पहले ही डीआरजी का गठन हुआ है, जिसमें स्थानीय आबादी शामिल है। यह यूनिट हाल के समय में खासी सक्रिय हई है।
इसके अलावा बस्तर के आंतरिक इलाकों में सड़कें नहीं होने के चलते भी सुरक्षाबलों को परेशानी का सामना करना पड़ा है। वहीं, दक्षिण बस्तर में प्रशासन की सीमित मौजूदगी के चलते भी नक्सलियों का प्रभाव बना हुआ है।