भारत की संसद और लोकतंत्र पर कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी ने जो टिप्पणी की, उसको लेकर वो लगातार बीजेपी के निशाने पर हैं. बीजेपी चाहती है कि राहुल गांधी विदेश में दिए गए अपने बयानों के लिए माफी मांगें.
पहले कानून मंत्री किरण रिजिजू ने राहुल गांधी पर सख्त टिप्पणी की और अब बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने राहुल गांधी के खिलाफ विशेष समिति बनाने की मांग की है. कहा जा रहा है कि राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता पर खतरा हो सकता है.
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने संसद, लोकतंत्र और संस्थानों का अपमान करने वाले बयानों के लिए राहुल के खिलाफ विशेष समिति बनाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि 2005 में ‘कैश फॉर क्वेरी’ स्कैंडल में भी संसद की विशेष समिति ने संसद की गरिमा को चोट पहुंचाने के आरोप में 11 सांसदों की सदस्यता खत्म कर दी थी और इसे सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया था.
निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम 223 के तहत लोकसभा स्पीकर को पत्र लिखा है. पत्र में उन्होंने राहुल गांधी की ‘अपमानजनक’ टिप्पणी की जांच के लिए और उन्हें सदन से निष्कासित करने पर विचार करने के लिए विशेष संसदीय समिति की मांग की है. दुबे ने दलील दी है कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर आभार प्रस्ताव में भाषण के दौरान तीन विशेषाधिकारों का उल्लंघन किया है.बता दें कि नियम 223 (संसदीय) विशेषाधिकार की व्याख्या करता है. इसके बारे में थोड़ा विस्तार से जान लेते हैं.
क्या है संसदीय विशेषाधिकार?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 105 उन छूट और विशेषाधिकारों को परिभाषित करता है] जो संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को प्राप्त होते हैं. यह प्रावधान सांसदों को उनके नागरिक दायित्व से छूट देता है, जो आपराधिक नहीं कहलाते. इन्हें संसदीय विशेषाधिकारों के रूप में जाना जाता है.
सांसदों को प्राप्त विशेषाधिकारों में चार प्रमुख हैं- संसद में भाषण की स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से स्वतंत्रता, कार्यवाही के प्रकाशन पर रोक लगाने का अधिकार और अजनबियों (जो सदन के सदस्य नहीं हैं) को बाहर करने का अधिकार. इन विशेषाधिकारों का उल्लंघन या अनैतिक फायदा उठाने पर किसी भी सांसद को गंभीरता के आधार पर चेतावनी दी जा सकती है, कार्रवाई की अनुशंसा की जा सकती है और यहां तक कि उन्हें कारावास तक भी झेलना पड़ सकता है.
नियम 223 क्या कहता है?
यह नियम किसी सदस्य को किसी सदस्य या समिति द्वारा किए गए विशेषाधिकार के उल्लंघन के मामले में संसद में अध्यक्ष की सहमति (नियम 222 के तहत) के साथ सवाल उठाने की अनुमति देता है. ऐसे मामलों पर विचार-विमर्श करने के लिए और आगे की जांच के लिए इसे विशेषाधिकार समिति के पास भेज सकते हैं. यह समिति पूरे मामले पर दोनों पक्षों को सुनने के बाद रिपोर्ट तैयार करती है और जरूरी लगे तो कार्रवाई की अनुशंसा करती है.
क्या राहुल गांधी की सदस्यता जा सकती है?
भारतीय संसद के इतिहास में झांकें तो 1976 में तत्कालीन राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी को यूके, यूएस और कनाडा में भारत के संबंध में कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए सदन से निष्कासित कर दिया गया था.
निशिकांत दुबे ने बिना पूर्व सूचना के संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ टिप्पणी कर नियम 352 तोड़ने का भी तर्क दिया है. वहीं केंद्रीय मंत्री रिजिजू ने राहुल गांधी पर लंदन में ‘झूठ बोलने’ का आरोप लगाया और कहा कि उन्होंने देश का ‘अपमान’ किया है. उन्होंने इसे भारत विरोधी ताकतों को हवा देने वाला बताया है. रिजिजू ने कहा, “राष्ट्र से जुड़ी कोई भी चीज सभी के लिए चिंता का विषय है और अगर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता देश का अपमान करते हैं तो हम चुप नहीं रह सकते हैं.”
बीजेपी नेता और मंत्री के इस तरह के दावे आईपीसी की धारा 124 A के अधीन भी लाई जा सकती है. यह धारा राजद्रोह को परिभाषित करती है. जानकारों के अनुसार, मामले ने अगर तूल पकड़ा और विशेषाधिकार समिति ने अनुशंसा की तो राहुल गांधी की सदस्यता पर खतरा हो सकता है.