Home Government Scheme नये आरक्षण विधेयक पर एक नजरिया यह भी:आधार बदलकर ही सरकार पलट...

नये आरक्षण विधेयक पर एक नजरिया यह भी:आधार बदलकर ही सरकार पलट सकती है न्यायालय का फैसला,छत्तीसगढ़ के नये कानूनों ने यही नहीं किया

2
0

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा 19 सितम्बर को दिए ऐतिहासिक फैसले के बाद छत्तीसगढ़ में सामाजिक-राजनीतिक बेचैनी अब भी जारी है। इस फैसले से बनी परिस्थितियों से निकलने के लिए राज्य सरकार को नया कानून बनाना ज्यादा सही लगा। वह नया विधेयक ले आई है। लेकिन उसके साथ कई चुनौतियां जुड़ी हुई हैं। सबसे बड़ी बात यह कि सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने कह चुकी है कि सरकार फैसले का आधार बदलकर ही किसी न्यायालय के फैसले को बदल सकती है। इन दोनों विधेयकों में छत्तीसगढ़ की सरकार ने यही नहीं किया है।

छत्तीसगढ़ की विधान सभा ने बिलासपुर उच्च न्यायालय के गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में 19 सितंबर को दिए फैसले को पलट दिया है। इस फैसले में साफ शब्दों में कहा गया है कि सिर्फ जनसंख्या में हिस्सेदारी के आधार पर, मात्रा पर बिना किसी व्याख्या अथवा फॉर्मुले के आरक्षण अवैध है। यह तब हुआ है जब उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ की ओर से पृथ्वी कॉटन मिल्स बनाम भरूच म्यूनिसिपालिटी मामले का न्याय दृष्टांत सरकार के सामने है। इसमें कहा गया है, विधायिका, किसी भी न्यायालय का फैसला सिर्फ उसका आधार हटाकर ही बदल सकती है।

बिलासपुर उच्च न्यायालय का 19 सितम्बर को आया फैसला उच्चतम न्यायालय के फैसलों पर आधारित था जिनकी प्रकृति अनुच्छेद 16(4) और तर्क-विस्तार से 15(4) की व्याख्या स्वरूप है, न कि किन्ही तथ्यों अथवा विधि पर आधारित। संसद संविधान संशोधन करके इन अनुच्छेदों में स्पष्टीकरण जोड़ने के एकमात्र तरीके से ही इस व्याख्या को शून्य कर सकती है। ध्यान रहे कि इंद्रा साहनी और मंडल आयोग फैसले के खिलाफ अब तक सात संविधान संशोधन हो चुके हैं लेकिन इन तीस सालों में इस व्याख्या को हटाने या पलटने का कोई प्रस्ताव तक राजनैतिक मंचों पर पेश नहीं किया गया है। इसका सीधा सा मतलब यह हुआ कि न्यायालय में जाते ही इन विधेयकों पर रोक लग सकती है और छत्तीसगढ़ में आरक्षण लटक सकता है।

आरक्षण का 76% करने का औचित्य साबित करना बड़ी चुनौती

कुल आरक्षण का 50% की सीमा से बहुत अधिक होने को उच्चतम न्यायालय भी असंवैधानिक बता चुका है। छत्तीसगढ़ के संशोधन अधिनियमों की प्रस्तावना में SC-ST-OBC की भारी जनसंख्या का हवाला दिया गया है। इस तर्क को उच्चतम न्यायालय कई बार 50% की सीमा लांघने के लिए नाकाफी ठहरा चुका है।

इस विधेयक में “भौगोलिक क्षेत्र में परिवर्तन” और “असाधारण स्थिति” शब्दों से अप्रत्यक्ष तौर पर अनुसूचित क्षेत्र को विशिष्ट परिस्थिति के तौर पर पेश करने की कोशिश हुई है। लेकिन राज्य स्तर पर आरक्षण का अनुपात तय करते समय अनुसूचित क्षेत्रों की कोई अलग हिस्सेदारी ही नहीं दी गई है। अनुसूचित क्षेत्रों का बहाना बना कर ओबीसी के लिए 50% की सीमा लांघना अवैध है। यह मंडल फ़ैसला, 1992, पैरा-810, 860.4, 552.4 और मराठा आरक्षण फ़ैसला, 2021, पैरा-444 का उल्लंघन है।

प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता पर राय बनाने का आधार भी नहीं

प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को लेकर राज्य सरकार के पास अपनी राय बनाने का कोई आधार ही नहीं था। छबिलाल पटेल क्वांटीफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट न तो विधान सभा में पेश की गई और न ही मंत्रीमंडल के सदस्यों को इसकी प्रतियां उपलब्ध कराई गईं। यह मंडल फैसला, 1992, पैरा-798, 860.4, 552.4 का उल्लंघन है। न्यायालय यह आपत्ति भी ले सकता है कि सरकार ने संशोधन अधिनियमों के पुर:स्थापन के स्पष्टीकरण में भारी गलतबयानी की है।

दावा किया गया है कि उच्च न्यायालय के फैसले से मार्च 2012 के पूर्व की स्थिति यानी SC-ST_OBC के लिए 15-18-14 और 16-20-14 का आरक्षण अनुपात बन गई है। इंडियन एक्सप्रेस बनाम भारत संघ फैसले जिसमें संविधान पीठ के बी.एन.तिवारी बनाम भारत संघ मामले की व्याख्या ली गई है के मुताबिक 19 सितंबर के बाद से राज्य में SC-ST-OBC का आरक्षण शून्य हो गया है।

अदालती फैसलों से ही इन कानूनों पर कई आपत्तियां

  • ओबीसी को 27% आरक्षण देने का फ़ैसला 42 साल पुरानी मंडल आयोग की केंद्र शासन अधीन सेवाओं पर दी गई अनुशंषा पर आधारित है। यह मराठा आरक्षण फैसला, 2021, पैरा-548-549 का उल्लंघन है। – अधिनियमों में सिर्फ जनसंख्या में हिस्सेदारी के आधार पर आरक्षण का प्रावधान है। यह मंडल फैसला, 1992, पैरा-807, 552.4 और पत्तली मक्कल काची बनाम ए. माईलेरुम्पेरुमल, 2022 मामले में दिए फैसले के खिलाफ है।
  • संभाग-जिला कॉडर में SC-ST को जनसंख्या हिस्सेदारी के बराबर जबकि OBC को 27% तक और EWS को 10% तक आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया है। चूंकि अनुसूचित क्षेत्रों के जिलों में OBC और EWS की जनसंख्या इस सीमा से काफी कम है इसलिए कुल आरक्षण 100% हो जाता है। यह भी मंडल फैसला, 1992, पैरा-804, 811 और पीजीआईएमईआर, चंडीगढ बनाम फैकल्टी असोशिएसन, 1998 में दिए गए फैसले के खिलाफ जा रहा है।
  • प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आंकड़े विभाग-श्रेणीवार जमा किए गए हैं न कि कॉडर-वार। यह भी मंडल फैसला, 1992 के पैरा-860.4 और जरनैल सिंह फ़ैसला, 2022, पैरा-51 के खिलाफ है।