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असम में 40 लाख लोगों को भारत की नागरिकता नहीं

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असम में एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के दूसरे और अंतिम मसौदे को आज कड़ी सुरक्षा के बीच जारी कर दिया गया है.

रजिस्टर के मुताबिक 2 करोड़ 89 लाख लोग असम के नागरिक हैं जबकि यहां रह रहे 40 लाख लोगों का नाम इस सूची में नहीं है.

यानी 40 लाख लोगों को भारतीय नागरिक नहीं माना गया है. अब इन लोगों के पास अपने दावे पेश करने का मौका होगा.

मार्च 1971 से पहले से रह रहे लोगों को रजिस्टर में जगह मिली है जबकि उसके बाद से आए लोगों के नागरिकता दावों को संदिग्ध माना गया है.

रजिस्टर को राज्य के सभी एनआरसी केंद्रों पर आवेदकों के नाम, पता और तस्वीर के साथ प्रकाशित भी किया जाएगा. आवेदक अपने नामों की सूची इसमें देख सकते हैं. इसके अलावा एनआरसी की वेबसाइट पर भी इसे देखा जा सकता है.

अभी कार्रवाई नहीं

जिन लोगों के नाम रजिस्टर में नहीं हैं उन पर सरकार तुरंत कोई कार्रवाई नहीं करेगी.

गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने रजिस्टर जारी होने के बाद दिए एक बयान में कहा, “अंतिम एनआरसी में किसी का नाम नहीं होने के बावजूद भी ट्राइब्यूनल का रास्ता खुला रहेगा. किसी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी, अतः किसी को अनावश्यक परेशान होने की ज़रूरत नहीं है.”

उन्होंने कहा, “एनआरसी की प्रक्रिया पूरी तरह से निष्पक्षता के साथ की गई है. आगे भी पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ पूरी की जाएगी. ये पूरी प्रक्रिया माननीय सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में संपन्न हुई है.”

इस सूची के जारी किए जाने के मद्देनज़र असम में शांति और क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए अर्धसैनिक बलों की तैनाती भी की गई है. गृह मंत्रालय के मुताबिक असम और आसपास के राज्यों में क़रीब 22 हज़ार अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है.

एनआरसी ड्राफ्ट का पहला भाग रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया ने 1 जनवरी 2018 को प्रकाशित किया था, तब 1.9 करोड़ लोगों के नाम को इस सूची में शामिल किया गया था. आज इस सूची के आने के साथ ही असम के सभी 3.29 करोड़ आवेदनकर्ताओं के भाग्य का फ़ैसला हुआ है.

रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़नशिन एक ऐसी सूची है जिसमें असम में रहनेवाले उन सभी लोगों के नाम दर्ज हैं जिनके पास 24 मार्च 1971 तक या उसके पहले अपने परिवार के असम में होने के सबूत मौजूद हैं.

असम देश का इकलौता राज्य है जहां के लिए इस तरह के सिटिज़नशिप रजिस्टर की व्यवस्था है. इस तरह का पहला रजिस्ट्रेशन साल 1951 में किया गया था.

असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह

राजनाथ सिंह ने किया आश्वस्त

इससे पहले एनआरसी की अंतिम सूची का प्रकाशन 30 जून को ही किया जाना था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी के राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला की रिपोर्ट के आधार पर राज्य में बाढ़ की स्थिति को देखते हुए एक महीने के लिए बढ़ा दिया था.

एनआरसी को लेकर असम के कुछ हलकों में गहरी चिंता है. ऐसी शिकायतें भी आ रही हैं कि बंगाली भाषी और धर्म विशेष से जुड़े लोगों के मामले में गड़बड़ियां हो रही हैं.

हालांकि दूसरे भाग के जारी होने से क़रीब एक हफ्ते पहले केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि 30 जुलाई को जो लिस्ट जारी होनी है वो महज़ एक ड्राफ्ट होगा और फ़ाइनल ड्राफ्ट को जारी करने से पहले सभी भारतीयों को अपनी नागरिकता साबित करने का मौक़ा दिया जाएगा.

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के जारी होने के बाद प्रभावित लोगों को अपने दावे और आपत्तियां दर्ज कराने के पर्याप्त मौका मिलेगा और उन्होंने कहा कि “चिंता की कोई बात नहीं है.”

इसके साथ ही गृह मंत्रालय ने असम सरकार को यह स्पष्ट निर्देश दे दिया है कि वो उन लोगों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं करे जिनके नाम एनआरसी की सूची में नहीं हैं.

क्या है एनआरसी, क्यों पड़ी ज़रूरत?

1947 में बंटवारे के समय कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी ज़मीन-जायदाद असम में थी और लोगों का दोनों और से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा.

इसमें 1950 में हुए नेहरू-लियाक़त पैक्ट की भी भूमिका थी.

तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और बाद के बांग्लादेश से असम में लोगों के अवैध तरीके से आने का सिलसिला शुरू हो गया और उससे राज्य की आबादी का चेहरा बदलने लगा. इसके बाद असम में विदेशियों का मुद्दा तूल पकड़ने लगा.

इन्हीं हालात में साल 1979 से 1985 के दरम्यान छह सालों तक असम में एक आंदोलन चला. सवाल ये पैदा हुआ कि कौन विदेशी है और कौन नहीं, ये कैसे तय किया जाए? विदेशियों के ख़िलाफ़ मुहिम में ये विवाद की एक बड़ी वजह थी.

असम समझौता

15 अगस्त 1985 को आसू (ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन) और दूसरे संगठनों के साथ भारत सरकार का समझौता हो गया. इसे असम समझौते के नाम से जाना जाता है.

समझौते के तहत 25 मार्च 1971 के बाद असम आए हिंदू-मुसलमानों की पहचान की जानी थी और उन्हें राज्य से बाहर किया जाना था.

आसू ने 1979 में असम में अवैध तरीक़े से रह रहे लोगों की पहचान और उन्हें वापस भेजे जाने के लिए एक आंदोलन की शुरुआत की थी.

असम समझौते के बाद आंदोलन से जुड़े नेताओं ने असम गण परिषद नाम के राजनीतिक दल का गठन कर लिया जिसने राज्य में दो बार सरकार बनाई.

साल 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय साल 1951 के नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजनशिप को अपडेट करने का फ़ैसला किया गया.

ये तय हुआ कि असम समझौते के तहत 25 मार्च 1971 से पहले असम में अवैध तरीके से भी दाखिल हो गए लोगों का नाम नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप में जोड़ा जाएगा. लेकिन विवाद यहीं नहीं रुका.

मामला कोर्ट तक पहुंचा और फिर साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में आईएएस अधिकारी प्रतीक हजेला को एनआरसी अपडेट करने का काम दे दिया गया.

प्रतीक हजेला को एनआरसी का कोऑर्डिनेटर बनाया गया था और उन्हें एनआरसी अपडेट करने का काम तय समय सीमा के भीतर ख़त्म करना था.

एनआरसी के लिए कैसे किया गया वेरिफ़िकेशन?

असम के नागिरकों के सत्यापन का काम सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मई 2015 में शुरू हुआ. इसके लिए रजिस्ट्रार जनरल ने समूचे राज्य में कई एनआरसी केंद्र खोले.

एनआरसी में शामिल होने की योग्यता के अनुसार उन लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा जिनके पूर्वजों के नाम 1951 के एनआरसी में या 24 मार्च 1971 तक के किसी वोटर लिस्ट में मौजूद हों.

इसके अलावा 12 दूसरे तरह के सर्टिफ़िकेट या काग़ज़ात जैसे जन्म प्रमाण पत्र, ज़मीन के काग़ज़, पट्टेदारी के दस्तावेज़, शरणार्थी प्रमाण पत्र, स्कूल-कॉलेज के सर्टिफ़िकेट, पासपोर्ट, अदालत के पेपर्स भी अपनी नागरिकता प्रमाणित करने के लिए पेश किए जा सकते हैं.

अगर किसी व्यक्ति का नाम 1971 तक के किसी भी वोटर लिस्ट में मौजूद नहीं है, लेकिन किसी दस्तावेज़ में उसके किसी पूर्वज का नाम है तो उसे पूर्वज से रिश्तेदारी साबित करनी होती है.

कई मामलों में बॉर्डर पुलिस लोगों को इस सिलसिले में नोटिस भेजती है जिसके बाद उन्हें फ़ॉरेनर्स ट्राइब्यूनल में अपनी नागरिकता के सबूत देने होते हैं.

सूची में नाम नहीं होने पर क्या करें?

एनआरसी के कोऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने कहा है कि ड्राफ्ट में जिनके नाम मौजूद नहीं होंगे उनके दावों की पर्याप्त गुंजाइश होगी.

उन्होंने कहा कि जिनके नाम नहीं है वो घबराएं नहीं बल्कि संबंधित सेवा केंद्रों में एक फ़ॉर्म को भरना होगा. ये फ़ॉर्म 7 अगस्त से 28 सितंबर के बीच उपलब्ध होंगे और अधिकारियों को उन्हें इसका कारण बताना होगा कि ड्राफ्ट में उनके नाम क्यों छूटे.

इसके बाद लोगों को उनके दावों को दर्ज कराने के लिए एक अन्य फ़ॉर्म भरना होगा जो 30 अगस्त से 28 सितंबर तक उपलब्ध होगा.

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