कोलकाता नगर निगम (KMC) चुनाव परिणामों में तृणमूल कांग्रेस भारी जीत की ओर बढ़ रही है. कोलकाता नगर निगम में कुल 144 वार्ड हैं, जिसमें से ममता की पार्टी TMC 134 सीटों पर आगे चल रही है. जबकि बीजेपी, कांग्रेस, लेफ्ट के खाते में 2-3 सीट ही मिल रही हैं. ममता बनर्जी ने 2015 में हुए KMC चुनाव से भी बड़ी जीत हासिल की है.
ममता की जीत के क्या है मायने?
1929 में महान आर्थिक मंदी के दौरान अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड केन्स ने ब्रिटिश और यूरोपिय देशों की सरकार को सार्वजनिक खर्च बढ़ाने की सलाह दी थी. सार्वजनिक खर्च जैसे ही बढ़ा उसका असर अर्थव्यवस्था पर देखा गया था और लोगों के हाथों में पैसा आने से अर्थव्यवस्था फिरसे धीरे धीरे मजबूत होने लगा था. अर्थशास्त्र में इसको केनेशियान थ्योरी के नाम से जाना जाता है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ हद तक यही थ्योरी नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत विनायक बनर्जी ने भी कोरोना काल में बंगाल में अपनाने के लिए ममता बनर्जी को दी थी. उनकी सलाह भी सर्वसनिक खर्च बढ़ाने की तरफ ही थी. बंगाल सरकार की तरफ से कोरोना काल में आर्थिक सलाहकार बोर्ड बनाया गया है उसमें अभिजीत विनायक बनर्जी को भी रखा गया है.
विधानसभा चुनाव से पहले ही ममता सरकार सार्वजनिक खर्च बढ़ाने की घोषणा अलग अलग योजनायों के जरिए किया था. चुनाव में जीतने के बाद ममता सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े बर्ग में परिवार प्रति एक महिला के हाथ मे महीने में 500 रुपये दिए जाने का योजना शुरू कर दी थी. इस योजना का नाम रखा गया है ‘लक्ष्मी भंडार’.
अब नगर निगम चुनाव में TMC के वोट प्रतिशत 70 फीसदी के पार पहुंचने के बाद ऐसा ही माना जा रहा है कि इस योजना को लागू करने का फायदा तृणमूल कांग्रेस को मिला है. इससे पहले विधानसभा चुनाव से पहले भी TMC ने ‘दुआरे सरकार’ योजना शुरू की थी और उसके तहत हर मुहल्ले में सरकार के अधिकारी पहुंचकर आधार कार्ड, स्वास्थ्य साथी कार्ड से लेकर अलग-अलग सेवा लोगों को प्रदान किए थे. इसका भी असर विधानसभा चुनावों के वोट बैंक में देखने को मिला था. ये तो हो गयी TMC के वोट प्रतिशत बढ़ने की बात और कैसे ये संभव हुआ. अब कोलकाता नगर निगम चुनाव में विरोधी पार्टियों के लिए इस चुनाव का फायदा या नुक्सान क्या रहा इसपर भी बात करते है