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कृषि कानून पर PM मोदी के फैसले से एकजुट होगा विपक्ष, एक्सपर्ट्स ने जताई इस बात की आशंका

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किसान संगठनों (Farmer Union) के भारी विरोध को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया है. भूमि अधिग्रहण कानून के बाद यह दूसरी बार है जब केंद्र की बीजेपी सरकार ने संसद द्वारा पारित किसी कानून को वापस लिया है. इन तीनों कृषि कानूनों के वापस लेने के ऐलान को पीएम मोदी का सबसे बड़ा यूटर्न माना जा रहा है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान से उनके राजनीतिक विरोधियों को फिर से एकजुट होने का मौका मिल गया है, लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या इससे विरोधी दल राजनीतिक लाभ उठा पाएंगे.

हालांकि अब तक, विपक्ष ने एकजुट होकर बीजेपी की इस गलती का विरोध नहीं किया है. पिछले महीने यूपी में भी विपक्षी दलों के बीच बिखराव देखने को मिला, जब लखीमपुर खीरी में मोदी कैबिनेट के मंत्री के काफिले की गाड़ी से कथित तौर पर किसानों को कुचल दिया गया और इसका आरोप मंत्री के बेटे पर लगा. इस हादसे में 8 लोगों की मौत हो गई थी.
इस घटना को लेकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Wadra) ही पहली नेता थीं जो कि विरोध के लिए घटनास्थल पर पहुंचीं. हालांकि उत्तर प्रदेश में सक्रिय अन्य राजनीतिक दलों ने भी इस घटना पर विरोध जताया. हालांकि बावजूद इसके सभी दलों ने मिलकर इस घटना को लेकर बीजेपी को नहीं घेरा. सभी राजनीतिक दलों ने विरोध में अलग-अलग रैलियां कीं. विपक्ष में बिखराव और एकजुटता की कमी से यह संकेत मिलता है कि पीएम मोदी भारतीय राजनीति में अपने विरोधियों पर हावी रहेंगे.

किसान बीजेपी से नाराज हैं
हालांकि बीजेपी को लेकर किसानों के मन में नाराजगी है. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार, लखीमपुर में हादसे के समय मौजूद रहे 30 वर्षीय बलजीत सिंह, जो कि पेशे से किसान हैं. जिन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट दिया था. लेकिन अब बलजीत सिंह का कहना है कि वह बीजेपी को छोड़कर किसी अन्य दल को वोट देंगे. भले ही पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया है. लेकिन बलजीत सिंह इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं है कि वे किसी पार्टी को वोट देंगे.

बलजीत सिंह ने कहा कि “विभिन्न विपक्षी दलों को देख रहा हूं और मैं उनमें से किसी एक पार्टी को वोट दूंगा, लेकिन बीजेपी को नहीं.”

19 नवंबर को पीएम मोदी ने एक साल से चले आ रहे किसानों के प्रदर्शन को देखते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी. यूपी में कम सीटे मिलने के अनुमान के बावजूद बीजेपी राज्य में अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थी. लेकिन उत्तर प्रदेश में देश की एक बड़ी आबादी रहती है इसलिए बीजेपी 2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 77 फीसदी सीटें जीती थीं.

वहीं पंजाब में भी भारतीय जनता पार्टी चुनावी ओपिनियन पोल में पीछे चल रही है, जहां प्रदर्शनकारी किसान एक अहम चुनावी फैक्टर है. इसी वजह से पीएम मोदी ने किसानों से माफी मांगते हुए गुरुनानक जयंती पर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था.

भोपाल स्थित, जागरण लैकसिटी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर संदीप शास्त्री ने कहा कि, यह साफ था कि आने वाले चुनावों में कृषि कानून परेशानी की बड़ी वजह बनने वाले थे.

विपक्ष की निष्क्रियता

पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान के तुरंत बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने ट्वीट किया और लिखा कि देश के अन्नदाता की जीत हुई और शांतिपूर्ण प्रदर्शन से अहंकार को हार दिया. यूपी में समाजवादी पार्टी ने भी इस किसानों की जीत बताई. लेकिन फिर भी इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों में एकजुटता की कमी देखने को मिली, जिससे कि बीजेपी को घेरा जा सके.

देश में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है और अन्य क्षेत्रीय पार्टियां भी विपक्षी दलों में शामिल है लेकिन कांग्रेस और इन क्षेत्रीय पार्टियों में तालमेल की कमी देखने को मिली है. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने पिछले महीने कांग्रेस पर हमला बोला था और कहा कि कांग्रेस राजनीति को गंभीरता से नहीं ले रही है.

वहीं बिहार में विधानसभा के उपचुनावों में हार के बाद लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav)ने कहा था कि बीजेपी को हराने के लिए सभी विपक्षी दलों को एकजुट होकर कांग्रेस के साथ आना चाहिए. राज्य में कांग्रेस और लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी अहम राजनीतिक साझेदार हैं.

कृषि कानूनों के विरोध का देशभर में व्यापक असर देखने को मिला है. हालांकि अब जब कि सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया. लेकिन किसान संगठन फिर भी कुछ मांगों को लेकर अपना आंदोलन जारी रखने की बात कह रहे हैं.

पंजाब से आने वाले, बलविंदर सिंह का कहना है कि कृषि कानूनों को वापस लेना पीएम मोदी का सही फैसला है लेकिन इस निर्णय को पहले ही लिया जाना चाहिए था.

‘मोदी विरोध नहीं, विजन की जरुरत’
क्रनेजिई एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में, साउथ एशिया प्रोग्राम के डायरेक्टर और सीनियर फैलो मिलन वैष्णव कहते हैं कि भारत की विपक्षी पार्टियों में बिखराव की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे अभी तक यह तय नहीं कर पाई है कि पीएम मोदी के खिलाफ उनका क्या स्टैंड है.