Home News यूपी चुनाव में छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन करने को क्यों लालायित...

यूपी चुनाव में छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन करने को क्यों लालायित हैं बड़े दल.

11
0

कुछ दशक पहले जर्मनी के अर्थशास्त्री ई. एफ. शूमाकर ने ‘बड़ा बेहतर है’ की धारणा को चुनौती देते हुए कहा था कि ‘छोटा सुंदर है’. हालांकि शूमाकर की दलीलें अर्थव्यवस्था और उसमें टेक्नोलॉजी के उपयोग को लेकर थीं, लेकिन ये वाक्यांश उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के संदर्भ में भी बेहद प्रासंगिक है. उत्तर प्रदेश की प्रत्येक बड़ी राजनीतिक पार्टी छोटे दलों के साथ गठबंधन को आतुर है. लेकिन क्यों? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें भारत में पिछड़ी जातियों की यात्रा को खंगालना होगा. दरअसल मंडल कमीशन (Mandal Commission) की रिपोर्ट को लागू किया जाना हिंदुस्तान की राजनीति में निर्णायक मोड़ है. इसने सामाजिक न्याय की राजनीति (Social Justice Politics) को उभार दिया. साथ ही पिछड़े और शोषित समाज को राजनीतिक ताकत बनने के लिए प्रेरित किया.

लोकतंत्र में संख्या बल ही असली ताकत होता है और इसीलिए अच्छी खासी जनसंख्या वाली जातियों और समुदायों ने पिछले तीन दशक से भारत में सामाजिक न्याय की राजनीति में दबदबा रखा है. अन्य पिछड़े समुदायों में यादव और कुर्मी जैसी जातियां लोकतांत्रिक राजनीति में बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरी हैं. इनके अलावा, कुछ अन्य पिछड़ी जातियां और अति पिछड़ी जातियां, जिनके पास एक बड़ा संख्या बल है. धीरे-धीरे खुद को राजनीतिक ताकत के तौर पर उभारने की क्षमता हासिल कर रही हैं. राजनीतिक दबदबे की बात करें तो वे अभी भी यादवों या कुर्मियों की तरह ताकतवर नहीं हैं. लेकिन, उनके अंदर दबदबा हासिल करने की प्रेरणा लंबे समय तक राजनीतिक में शोषित और हाशिए पर रहने की वजह से आते हैं.

हालांकि सामाजिक और आर्थिक विकास भी काफी मायने रखता है. इन जातियों में निषाद, कोरी, राजभर अन्य शामिल हैं. समय के साथ इन समुदायों के नेताओं ने अपने लोगों को एकजुट किया है और इतनी ताकत हासिल कर ली है कि वे अब राजनीतिक मंच पर बड़ी पार्टियों के साथ डील करने लगे हैं. ये तथ्य यूपी और बिहार में जातियों पर आधारित छोटी-छोटी पार्टियों के उभार को परिभाषित करता है.
सियासत में ये छोटी-छोटी पार्टियां बड़ी पार्टियों के लिए अपनी जात और बिरादरी के वोट को सुनिश्चित करती हैं. मसलन ये छोटी पार्टियां बीजेपी, सपा और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियों के साथ चुनावों के दौरान गठबंधन करके उन्हें अपना सपोर्ट देती हैं. हालांकि दिलचस्प ये है कि मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी ने यूपी में ऐसे किसी भी दल के साथ अभी तक गठबंधन नहीं किया है.

ये छोटी पार्टियां सहायक जाति के तौर पर अपनी जातियों और समुदायों के वोट सवर्ण जातियों को ट्रांसफर करती हैं, जोकि बड़ी राजनीतिक पार्टियों का प्रतिनिधित्व करती हैं. ये पार्टियां चुनावी जोड़तोड़ में अपने लिए रणनीतिक सीटों की मांग करती हैं और सत्ता में आने पर मंत्री पद की भी मांग करती हैं. इसके साथ ही वे अपने लोगों और समुदायों के लिए लोकतांत्रिक लाभ, विकास परियोजनाओं में भी हिस्सेदारी चाहती हैं.

इस तरह इन छोटी पार्टियां का वोट बड़ी पार्टियों के लिए स्टेपनी वोट के तौर पर काम करता है- क्योंकि अकेले दम पर ये पार्टियां उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित नहीं कर सकती हैं, लेकिन जब वे एक बड़ी पार्टी के साथ सपोर्ट में होती हैं तो वे कुछ सीटें जीतने में मदद कर सकती हैं. आम तौर पर इन छोटी पार्टियों के नेता और समर्थक खुद को ‘किंगमेकर’ कहते हैं.