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COVID-19: कोरोना के खिलाफ ‘रामबाण’ बनेगा ऑक्सफोर्ड-ऐस्ट्राजेनेका वैक्सीन का बीटा वर्जन, जानें सबकुछ

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Doctor holding a wooden tongue depressor spatula, performing examination of mouth and throat, physician in her office doing a routine patient check up to determine general health condition, prevention

ऑक्सफोर्ड-ऐस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के एक नए वर्जन (Beta version of Oxford Astrazeneca) का ट्रायल चल रहा है. ये ट्रायल खासतौर पर दक्षिण अफ्रीका में मिले कोरोना वायरस के बीटा वेरिएंट (Beta Variants) को ध्यान में रखकर किया जा रहा है. भारत में ऑक्सफोर्ड-ऐस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने कोविशील्ड (Covishield) के नाम से विकसित किया है और टीकाकरण कार्यक्रम में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. आइए आपको बताते हैं कि वैक्सीन का बीटा वर्जन ट्रायल क्यों महत्वपूर्ण है, चाहे वह बूस्टर डोज के लिए हो या खुराकों के मिश्रण के लिए –

ऐस्ट्राजेनेका के नए वर्जन का ट्रायल क्यों? पिछले साल दिसंबर में जब ब्रिटेन ने सबसे पहले ऐस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को टीकाकरण के लिए मंजूरी दी, उस समय कोरोना वायरस के कई सारे वेरिएंट्स सामने नहीं आए थे, या उनकी पहचान नहीं हो पाई थी. लेकिन अब कोरोना वायरस के कई वेरिएंट्स सामने आने के बाद वैक्सीन के प्रभावी होने पर सवाल उठ रहे हैं, बावजूद इसके कि कई सारे देश अपने यहां टीकाकरण कार्यक्रम को तेजी से चला रहे हैं. मेडिकल एक्सपर्ट्स कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन के खिलाफ वैक्सीन के प्रतिरोधी होने को लेकर अध्ययन कर रहे हैं. इन अध्ययनों में यह देखने को मिला है कि कोरोना वायरस का नया वेरिएंट मानव शरीर में मौजूद एंटीबॉडीज को गच्चा दे सकता है, हालांकि वैक्सीन संक्रमण के गंभीर होने के खतरे से बचाती है.

दक्षिण अफ्रीकी प्रशासन ने कहा है कि देश में मिले कोरोना के बीटा स्ट्रेन के खिलाफ वे ऑक्सफोर्ड-ऐस्ट्राजेनेका वैक्सीन का इस्तेमाल नहीं करेंगे, क्योंकि यह वैक्सीन बीटा वेरिएंट के खिलाफ प्रतिरोधी नहीं है. कोरोना का बीटा वेरिएंट सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में पाया गया था. ऑक्सफोर्ड-ऐस्ट्राजेनेका वैक्सीन का नया वर्जन कोरोना के बीटा वेरिएंट को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है.

पहले के मुकाबले अलग कैसे है वैक्सीन की खुराक?
दुनिया भर में टीकाकरण के लिए इस्तेमाल की जा रही ऑक्सफोर्ड-ऐस्ट्राजेनेका वैक्सीन का क्लिनिकल नाम AZD1222 है और इसे वायरल वेक्टर प्लेटफॉर्म का प्रयोग करते हुए बनाया गया है. वैक्सीन में गैर-हानिकारक वायरस का प्रयोग किया गया है. ऑक्सफोर्ड-ऐस्ट्राजेनेका वैक्सीन के लिए चिम्पैंजी के एडेनोवायरस का प्रयोग किया गया है. इस वायरस के जरिए कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को मानव शरीर में इंजेक्ट किया जाता है, जिससे शरीर में इम्यून रिएक्शन पैदा होता है और यह इम्यून सिस्टम को भविष्य में होने वाले वायरस के किसी भी हमले से बचाव के लिए तैयार करता है.

ऑक्सफोर्ड-ऐस्ट्राजेनेका वैक्सीन के नए वर्जन को AZD2816 नाम दिया गया है. इस वैक्सीन को एडेनोवायरल वेक्टर प्लेटफॉर्म का प्रयोग करते हुए विकसित किया गया है. हालांकि इस वर्जन में स्पाइक प्रोटीन का इस्तेमाल कोरोना के बीटा स्ट्रेन या B.1.351 का किया गया है. ऐस्ट्राजेनेका ने कहा कि वैक्सीन के नए वर्जन में यही एकमात्र छोटा सा बदलाव है, बाकी दोनों वैक्सीन एक जैसी हैं. कंपनी के मुताबिक, “कोरोना के बीटा वेरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में 10 बदलाव हैं. इनमें से कई सारे बदलाव अन्य वेरिएंट्स में भी देखे गए हैं. इन बदलावों की वजह से एंटीबॉडीज की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हुई है. साथ ही मूल वायरस के मुकाबले नए वेरिएंट्स की संक्रामक क्षमता भी बढ़ी है.”

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना के बीटा वेरिएंट्स को चिंताजनक (variant of concern) बताया है, लेकिन हाल के महीनों में डेल्टा वेरिएंट्स के चलते भारत सहित दुनिया भर में संक्रमण के मामले बढ़े हैं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि वैक्सीन कोरोना के डेल्टा वेरिएंट्स के खिलाफ प्रभावी है और यह हाल ही में सामने आए डेल्टा प्लस वेरिएंट्स के खिलाफ भी प्रतिरोधी है.

वैक्सीन का नया वर्जन बूस्टर डोज बनेगा?
अब यह स्पष्ट है कि महामारी के खिलाफ जीत इस बात पर निर्भर है कि भविष्य में इंसान कोरोना के नए वेरिएंट्स से कैसे निपटता है. महत्वपूर्ण ये है कि कोरोना के किसी भी वेरिएंट्स के खिलाफ प्रतिरोधक वैक्सीन हमारे पास मौजूद हो. इन स्थितियों में ऐस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का नया वर्जन भविष्य में बूस्टर शॉट के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.

ऑक्सफोर्ड-ऐस्ट्राजेनेका के शीर्ष अधिकारी मेने पन्गलोस ने कहा, “ये महत्वपूर्ण है कि हम कोरोना वायरस के वेरिएंट्स के खिलाफ जेनेटिक रूप से बढ़त बनाए रखें. वैक्सीन का AZD2816 वर्जन कोरोना के नए वेरिएंट्स के खिलाफ व्यक्तिगत स्तर पर इम्यून सिस्टम को व्यापक बनाएगा. AZD2816 के दूसरे और तीसरे स्तर के ट्रायल के शुरू होने का आशय ये है कि भविष्य में हमारे पास वेरिएंट वैक्सीन की भी तैयारी होगी.”

कंपनी को उम्मीद है कि इस साल के अंत तक वैक्सीन का ट्रायल डाटा सामने आ जाएगा और इसके निर्माता ‘नेक्सट जनरेशन बूस्टर’ शॉट के तौर पर इसके लिए अनुमति मांगेंगे.

वैक्सीन की खुराक को मिक्स करना?
कंपनी की ओर से किए जा रहे ट्रायल में 2,250 प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं. ये ट्रायल ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और पोलैंड में किए जा रहे हैं. ट्रायल में उन लोगों को भी शामिल किया गया है, जिन्होंने कम से कम तीन महीने पहले ऐस्ट्राजेनेका वैक्सीन या mRNA वैक्सीन की दोनों खुराक ले रखी है. ट्रायल का ये विवरण दिलचस्प है, क्योंकि इससे वैक्सीन को मिक्स करने के विकल्प खुलेंगे. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि बिना प्रभावी डाटा के ऐसा नहीं किया जाना चाहिए.

ज्यादातर पश्चिमी और यूरोपीय देशों में कोरोना वायरस टीकाकरण के लिए फाइजर बायोएनटेक और मॉडर्ना वैक्सीन का प्रयोग किया जा रहा है, ये दोनों वैक्सीन mRNA वैक्सीन हैं. AZD2816 के ट्रायल में इस बात का भी ध्यान रखा जाएगा कि ऐस्ट्राजेनेका वैक्सीन के पहले वर्जन के साथ बीटा वर्जन को मिक्स किया जा सकता है, या नहीं.