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आपातकाल के काले दौर की भूली-बिसरी चंद यादें

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मुझे उस काले दौर की याद आ रही है जब 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया था। उस दिन मैं लाला जी के साथ था जब हमें अंबाला के निकट देश में आपातकाल लगाए जाने का समाचार मिला। हम तत्काल वापस जालंधर लौट आए और इसके अगले दिन लाला जी को गिरफ्तार कर लिया गया।

उन्हें पहले जालंधर जेल ले जाया गया। वहां लाला जी का पेट खराब होने की जानकारी मिलने पर जेल अधीक्षक ने उनके प्रति आदर भाव से उनकी सेहत का ध्यान रखा। बाद में जब मैं व रमेश जी उनसे जेल में मिलने गए तो हम अपने साथ एमरजैंसी के विरुद्ध पर्चे, पम्फलैट आदि ले गए जिन्हें लाला जी ने बाद में राजनीतिक बंदियों में बांट दिया जिन्हें पढ़ कर उनका समय अच्छा बीत जाता।

इसी कारण सी.आई.डी. द्वारा जेल में लाला जी के साथ वहां के स्टाफ द्वारा अच्छा व्यवहार करने और एमरजैंसी संबंधी लिट्रेचर पहुंचने की रिपोर्ट पर उन्हें वहां से ट्रांसफर करके फिरोजपुर जेल में भेज दिया गया। वहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों तथा जनता पार्टी के नेताओं के अतिरिक्त ज. गुरचरण सिंह टोहरा सहित बड़ी संख्या में अकाली नेता भी कैद थे।

वहां भी जेल के कर्मचारियों व अधिकारियों के सहयोग से समाचारपत्र, पत्रिकाएं एवं गुप्त साहित्य पहुंचाने का इंतजाम हो गया और परिवार के सदस्य उन्हें जो लिट्रेचर देकर आते उसे वहां राजनीतिक कैदियों में बांट देते थे। उन दिनों वहां के जेल अधीक्षक के पिता ने अपने सुपुत्र को पत्र लिखा था कि ”लाला जी तेरी जेल में हैं तो समझो तुम्हारा पिता ही जेल में हैं। इसलिए उनकी सेवा में कोई कमी नहीं करना।”

जिन दिनों लाला जी फिरोजपुर जेल में थे बंदियों में पैरोल पर जाने का आवेदन करने की चर्चा होने लगी तो लाला जी ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी तथा कहा कि बाहर जाते ही पुलिस उन्हें फिर गिरफ्तार कर लेगी। अकाली तो मान गए पर जनता पार्टी के कुछ सदस्य न माने और बाहर आने पर वे अभी अपने घर भी नहीं पहुंचे थे कि उन्हें फिर गिर तार कर लिया गया। फिरोजपुर जेल में लाला जी द्वारा एमरजैंसी लिट्रेचर बांटने की शिकायत पर उन्हें नाभा जेल भेज दिया गया और नाभा जाने पर वहां के जेलर ने भी उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया और सदैव उनसे सहयोग किया।

कुछ ही दिनों के बाद लाला जी को पटियाला जेल भेज दिया गया। वहां पहुंचने के चंद दिन बाद ही पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी वहां आ गए। उनके काल कोठरी में होने के बावजूद लाला जी को इसका पता चल गया और लाला जी ने उन्हें एमरजैंसी विरोधी पत्रिकाएं व पम्फलैट आदि भेजने शुरू कर दिए। बाद में जब चंद्रशेखर जी लाला जी की हत्या के बाद एक स्मृति समारोह में जालन्धर आए तो उन्होंने कहा था कि ”जब जेल में मुझे किसी ने नहीं पूछा तो लाला जी ने ही मुझे पत्र-पत्रिकाएं पढऩे के लिए भेजीं।” जब लाला जी को लगा कि उन्हें इस तरह एक जेल से दूसरी जेल में बदला जाता रहेगा तो उन्होंने वहीं अपनी आंखों, प्रोस्टेट व हाथ का आप्रेशन भी राजेन्द्रा अस्पताल में डा. सारोवाल की देखरेख में करवाया।

उन्हीं दिनों लोकसभा अध्यक्ष गुरदयाल सिंह ढिल्लों ‘पंजाब केसरी’ के कार्यालय में आए और उन्होंने मुझसे लाला जी का कुशल-क्षेम पूछा। उस समय रमेश जी सरकार द्वारा हम पर किए हुए मुकद्दमों के सिलसिले में चंडीगढ़ गए हुए थे। मैंने ढिल्लों साहब से कहा, ”आपातकाल लगा है। ऐसे में आपने क्यों ‘पंजाब केसरी’ कार्यालय आने का जोखिम उठाया?” इस पर वह तुरन्त बोले, ”सरकार मेरा क्या बिगाड़ लेगी। लाला जी मेरे मित्र हैं चूंकि वह बीमार हैं इसलिए उनके पास परिवार के सदस्यों का रहना जरूरी है। मैं अमृतसर जाकर जैल सिंह को फोन करता हूं।”

उन्होंने उसी दिन पंजाब के मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह से लाला जी की देखभाल हेतु पटियाला के राजेन्द्रा अस्पताल में हमारे परिवार के एक पुरुष व एक महिला को रहने की स्वीकृति देने को कह दिया। इसके बाद मेरे भाभी जी और मेरी पत्नी नियमित रूप से बारी-बारी अस्पताल में रहने लगीं। मैं भी रोज शाम साढ़े 5 बजे जालन्धर से पटियाला जाता और रात का भोजन लाला जी के साथ ही करता। रात को वहां उनके साथ रह कर अगले दिन सुबह 10 बजे जालन्धर पहुंच जाता।

श्री ढिल्लों के कहने पर पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने अस्पताल आकर लाला जी से मिलने की योजना बनाई। पटियाला के उपायुक्त जोगिन्द्र सिंह कौमी ने इसकी सूचना लाला जी को अस्पताल में जाकर दी तो उन्होंने कहा, ”वह अस्पताल में मुझसे मिलने कभी नहीं आएंगे।” हुआ भी ऐसा ही। वह लाला जी से मिलने पटियाला पहुंचे परन्तु उनके साथ कार में बैठे उनके एक कांग्रेसी दोस्त ने उन्हें बार-बार समझाया कि लाला जी से भेंट की खबर मिलने पर इंदिरा नाराज होकर उन्हें मु यमंत्री के पद से हटा देंगी। अंतत: वह लाला जी से मिले बिना राजेन्द्रा अस्पताल से थोड़ी दूर पहले ठीकरीवाला चौक से ही वापस लौट गए।

अस्पताल में जब लाला जी का स्वास्थ्य कुछ खराब होना शुरू हुआ तो उन्हें 4 जनवरी, 1977 को बिना शर्त रिहा कर दिया गया। इसके 14 दिन बाद 18 जनवरी को इंदिरा गांधी ने देश भर में संसदीय चुनाव करवाने की घोषणा कर दी और लगभग 2 लाख भारतवासी जिन्हें 19 महीने तक बगैर मुकद्दमा चलाए और कोई जुर्म बताए ही नजरबंद कर दिया गया था, जेलों से बाहर आ गए। इस जेल यात्रा के दौरान लाला जी को जेल के अधिकारियों, पुलिस कर्मचारियों और डा. सारोवाल सहित सभी सरकारी डाक्टरों तथा अन्य स्टाफ ने अत्यधिक स्नेह और स मान दिया।

यहां मैं इस बात का विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगा कि आपातकाल के दौर में बंदी बनाए गए लोगों के साथ पुलिस तथा अन्य सभी संबंधित विभागों के स्टाफ का व्यवहार अत्यंत सहानुभूतिपूर्ण था तथा मन से वे आपातकाल से सहमत नहीं थे।