Home News चीन-ईरान के 25 वर्षीय समझौते से भारत की बढ़ सकती है टेंशन,...

चीन-ईरान के 25 वर्षीय समझौते से भारत की बढ़ सकती है टेंशन, जानें क्या है वजह

495
0

चीन और ईरान (China And Iran) के बीच 25 सालों के आर्थिक सहयोग के लिए एक समझौता साइन हुआ है. इस समझौते से भारत (India) को कई कारणों से चिंतित होना चाहिए और उसे क्षेत्र के देशों के प्रति अपनी नीतियों पर पुनर्विचार भी करना चाहिए. ईरान के साथ चीन का, तेहरान में 24 मार्च को हस्ताक्षरित 400 बिलियन डॉलर का समझौता दोनों सर्वसत्तावादी देशों के बीच दोस्ताना संबंधों के विस्तार की नींव साबित होगा. विशेषज्ञों की मानें तो इस समझौते के बाद भारत को ईरान की तरफ अपनी नीतियों को फिर से देखने की जरूरत है. जानिए क्‍या है यह समझौता और क्‍यों भारत की चिंताएं इसके बाद बढ़ने वाली है.

24 मार्च को जो समझौता हुआ है उसे ‘स्‍ट्रैटेजिक को-ऑपरेशन पैक्‍ट’ नाम दिया गया है. चीनी विदेश मंत्री वांग वाई ने पिछले दिनों 6 दिवसीय दौरे पर ईरान गए थे. वांग वाई ने इसी दौरान अपने ईरानी समकक्ष के साथ इस डील को साइन किया है. ईरान के विदेश मंत्रालय की तरफ से बताया गया है कि इस डील में ‘राजनीति, रणनीति और अर्थव्‍यवस्‍था’ से जुड़े सभी तत्‍व मौजूद हैं. यह समझौता ट्रांसपोर्ट, बंदरगाहों, ऊर्जा, उद्योग और सेवाओं के क्षेत्र में जरूरी निवेश का एक ब्‍लूप्रिंट तैयार करने में मदद करेगा.

भारत को इस डील से ज्‍यादा परेशान होने की जरूरत है क्‍योंकि ईरान ने कभी भी चीन के बेल्‍ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) का विरोध नहीं किया है. उसने हमेशा ही इसमें शामिल होने की इच्‍छा जताई है. सिर्फ इतना ही नहीं ईरान की अथॉरिटीज की तरफ से पाकिस्‍तान के ग्‍वादर को चाबहार से जोड़ने का प्रस्‍ताव पहले ही चीन को दिया जा चुका है. भारत हमेशा से चाबहार को एक ऐसे बंदरगाह के तौर पर देखता है जहां से वो ग्‍वादर बंदरगाह को प्रभाव कम कर सकता है. भारत हमेशा से बीआरआई का विरोध करता आया है.

अब तक कम से कम 18 अरब देश चीन के बीआरआई प्रोजेक्‍ट का हिस्‍सा बन चुके हैं. चीन आधे से ज्‍यादा कच्‍चा तेल ईरान से आयात करता है. इसके अलावा इस क्षेत्र के 11 देशों के लिए चीन सबसे बड़ा व्‍यापारिक साझीदार है. ईरान के साथ हुए समझौते के बाद पश्चिम एशिया में चीन को ताकतवर होने से कोई नहीं रोक पाएगा. ईरान वह देश है जहां पर रणनीतिक अहमियत वाला स्‍ट्रैट ऑफ होरमुज स्थित है. चीन ने डील के साथ एक बड़े खिलाड़ी के तौर पर इस क्षेत्र में एंट्री कर ली है. यहां से चीन न सिर्फ सेंट्रल एशिया में खुद की जगह बनाएगा बल्कि वह यूरेशिया क्षेत्र में भी दबादबा कायम करने वाला देश बन सकेगा.