एसईसीएल ने कोरबा, कोरिया और सूरजपुर जिले के बिश्रामपुर में कोयला खदानों से अरबों रुपए के कोयले का उत्खनन किया है। इसके बाद कंपनी ने बड़े-बड़े गड्ढे खुले छोड़ दिए हैं। इसके कारण उपजाऊ और बेश कीमती भूमि बंजर हो गई है। वहीं बीते कुछ वर्षों में 20 से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। यहां हर साल हादसे में 3-4 लोगों की मौत हो ती है। कोरबा जिले में भू धंसान की घटनाएं भी कभी कभार होती रहती हैं। इसके कारण खेती की जमीन भी खराब हो रही है। कोरबा में 300 एकड़ जमीन खराब हो चुकी है। जिसमें से 90 एकड़ जमीन भू धंसान के कारण खेती करने योग्य ही नहीं रह गई है।
अंबिकापुर/ बिश्रामपुर: सौ से डेढ़ सौ फीट गहरी क्वारी छोड़ी, इनमें पूरे साल भरा रहता है पानी, जिसमें हर साल औसत 5 लोग अपनी जान गंवाते हैं
एसईसीएल बिश्रामपुर की ओसीएम खदान से कोयला निकालने के बाद वहां जानलेवा गड्ढे छोड़ दिए गए हैं। ये ओपन कास्ट माइंस थीं। खदान बंद होने के बाद सुरक्षा के साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए समतलीकरण कर पौधारोपण करना था, लेकिन इस पर कहीं काम ही नहीं किया गया। बंद कोयला खदान क्षेत्रों की बंजर भूमि और जगह-जगह गड्ढे इसके उदाहरण हैं। जहां से कोयला निकाला जा चुका है और खदानें बंद हो चुकी हैं, वहां 100 से 150 फीट गहरी क्वारी में बारहों महीने पानी भरा रहता है। कई जगह लोग निस्तरी में इसका उपयोग करते हैं। वहीं कोयला और कबाड़ चोरी में यहां लोगों की जान जाती रही है। हद तो यह है कि एसईसीएल इस पर ध्यान नहीं देता है। जब-जब घटनाएं हुईं, हर बार आश्वासन ही मिलता रहा कि जहां गड्ढे हैं, वहां फिलिंग कराई जाएगी। हालत बताते हैं कि एसईसीएल को कोयला निकलाने के बाद लोगों की जान से कोई सरोकार नहीं रह गया है। भास्कर ने इन क्षेत्रों की पड़ताल की तो पता चला कि बंद खदानों में जानलेवा गड्ढों के पास सिर्फ बोर्ड लगा कर छोड़ दिए गए हैं, तो कहीं बोर्ड भी नहीं दिखे। ऐसी जगहों पर कहीं फेसिंग नहीं कराई गई है। पिछले वर्षों में यहां कई लोगों की जान चुकी है। 1960 की यह कोयला खदान है, जो कई साल पहले ही बंद हो चुकी है। यही स्थिति एसईसीएल की अमेरा और अमगांव खदान की है। इन खदानों का विस्तार होना है। इन क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च हो गए, लेकिन धरातल पर स्थिति बदहाल है।
इन घटनाओं से जानिए किस तरह से जा रही लोगों की जान
1. बिश्रामपुर ओसीएम की पोखरिया खदान में 21 मई 2015 को नहाने के दौरान दतिमा निवासी 4 दोस्तों की मौत हो गई थी। सभी क्रिकेट खेलने के बाद वहां नहाने गए थे, तभी गहरे पानी में चले गए और चारों की डूबने से मौत हो गई थी। गड्ढे अब भी नहीं भरे।
2. एसईसीएल बिश्रामपुर की बंद पड़ी खदान एक नंबर क्वारी में टीले नुमा स्थल पर खुदाई कर रहे एक दंपती की एकाएक टीले के धंसकने से दबकर मौत हो गई थी। मृतक शिवनंदपुर तालाब पारा के रहने वाले थे। वे कोयला निकालने गए थे।
3. बिश्रामपुर रेलवे स्टेशन के पीछे 6 नंबर क्वारी में 12 से अधिक लोगों की अब तक जान जा चुकी है। कोयला निकालने के बाद गड्ढे को नहीं पाटा गया। यह खुली खदान है। यह नहाने के लिए लोग जाते हैं। वहीं जयनगर, कुंजनगर और तेलईकच्छार का निस्तर क्षेत्र है। कई लोगों की जाने के बाद भी यहां गड्ढे नहीं पाटे गए हैं। वहीं सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है। प्रतिबंधित क्षेत्र का बोर्ड लगा कर छोड़ दिया है।
पहले बैक फिलिंग का नहीं था प्रावधान, कर रहे पहल
एसईसीएल बिश्रामपुर के जीएम बीएन झा ने कहा पहले ओपन कास्ट माइंस बैक फिलिंग का प्रावधान नहीं था। अब फिलिंग करना अनिवार्य कर दिया है। राज्य सरकार के अलावा अलावा निजी क्षेत्रों से फिलिंग के लिए पहल कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई आगे नहीं आया है। ऐसे क्षेत्रों में प्लांटेशन इतना अधिक है कि डोजर चलाने में दिक्कत आ रही है। ऐसे क्षेत्रों में सुरक्षा के बाउंड्रीवाल के लिए बिलासपुर से 5 करोड़ का टेंडर निकल रहा है।
हर साल जाती है 3-4 लोगों की जान: बंद खदानों से कोयला और कबाड़ चोरी के दौरान मिट्टी धंसकने से दबकर लोगों की मौत होने का सिलसिला वर्षों से चल रहा है। पिछले कई साल से कई लोग अपनी जान गवां चुके हैं। 60 के दशक से संचालित ओसीएम खदान में भी रोजाना सैकड़ों महिला-पुरुष कोयला चोरी के लिए खदान क्षेत्र में जाते हैं, जहां घटनाएं होती हैं।
कोरबा: भू-धंसान के कारण कारण खेतों में दरार और बन गए गड्डे, 300 एकड़ जमीन खराब, इसमें से 90 एकड़ जमीन खेती करने योग्य ही नहीं रही
जिले में 4 खुली खदानों के अलावा 7 भूमिगत खदानों से कोयला उत्पादन हो रहा है। खुली खदानों में जहां हैवी ब्लास्टिंग से आसपास रहने वाले गांव के लोगों में दहशत है तो वहीं दूसरी तरफ भूमिगत कोयला खदानों से प्रभावित गांवों में भू-धंसान के कारण कई जगह बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हैं। भूमिगत खदानों से 300 एकड़ जमीन प्रभावित है। जिसमें अधिकांश असिंचित कृषि क्षेत्र हैं। जहां ग्रामीण किसी तरह फसल, सब्जी लगाते हैं। इसमें से 90 एकड़ से ज्यादा जमीन भू-धंसान की वजह से गड्ढे व खेतों में दरारों के कारण खेती करने लायक ही नहीं रह गए हैं। खदानों के चलते ग्राम मोंगरा में 120 एकड़, बांकी – 2 क्षेत्र में 35 एकड़, बलगी में 30 एकड़, डबरीपारा-घुड़देवा में 40 एकड़, मड़वाढोढ़ा- पुरैना में 38 एकड़, सुराकछार क्षेत्र में 40 एकड़ भूमि प्रभावित है। इन क्षेत्रों में भू-धंसान की वजह से कहीं आशिंक तो कहीं व्यापक नुकसान हुआ है। इस तरह इसकी वजह से 90 एकड़ से ज्यादा भूमि खराब हो चुकी है।
ग्रामीण बोले- हमारी समस्याएं दूर होनी चाहिए
1. बांकी-2 खदान से प्रभावित गांव के महेंद्र कंवर ने बताया कि भू-धंसान की वजह से एक तरफ जहां जमीन का नुकसान हो रहा है। वहीं खदानों के चलते आने वाले दरारों के कारण पानी का ठहराव जमीन पर नहीं हो पाता है। इसके कारण पानी की समस्या भी रहती है।
2. भेजीनारा निवासी नारायण राज ने बताया कि खदान प्रभावित गांवों में भू-धंसान की घटनाएं अक्सर होती है। इससे ग्रामीणों को जानमाल के नुकसान का डर बना रहता है। लेकिन एसईसीएल प्रबंधन का ध्यान सिर्फ कोयला उत्पादन करने पर रहता है। भू-धंसान के कारण बने गड्ढों व दरारों के कारण कई तरह की परेशानी से जूझना पड़ रहा है।
समस्या का निराकरण किया जाएगा: सिंह
एसईसीएल कोरबा एरिया के महाप्रबंधक एनके सिंह ने कहा कि वर्तमान में कहीं भू-धंसान नहीं हुआ है। पूर्व में जहां इसके चलते ग्रामीणों की जमीन प्रभावित हुई है। उनको फसल नुकसान के लिए नियमानुसार मुआवजा देने कार्रवाई कर रहे हैं। जहां शिकायतें व समस्या होगी वहां प्रबंधन निराकरण करेगा।
बैकुंठपुर: एसईसीएल ने उपजाऊ जमीन से कोयला निकालकर बंजर कर छोड़ा

एसईसीएल ने उपजाऊ जमीन से कोयला खनन कर बंजर कर जमीन को ऊबड़ खाबड़ बनाकर छोड़ दिया है। जिसमें निगम न तो इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप कर पा रही है और दूसरे प्रकार की गतिविधि भी उक्त जमीन पर नहीं हो पा रही हैं। चिरमिरी में कुरासिया ओपन कास्ट माइंस से कोयला निकालने के बाद इसे समतल नहीं किया गया है। कुरासिया की 9.826 हेक्टेयर जमीन एसईसीएल ने सरकार को वापस लौटाने के लिए कलेक्टर को पत्र लिखा है लेकिन कोयला निकालने के बाद जमीन पर कहीं गहरे गड्ढें तो कहीं ओवरबर्डन (मिट्टी) के ऊंचा पहाड़ बना दिया हैं। गेल्हापानी, पोड़ी, कोरिया, डोमनहिल, कुरासिया की बंद हो चुकी अंडर ग्राउंड खदानों में रेत फिलिंग नहीं गई।
मिट्टी में दबकर महिला की हो गई थी मौत
कुरासिया ओपन कास्ट में दो साल पहले इंद्रा नगर के पीछे महिला की मिट्टी से दबने से मौत हो गई थी। वहीं कोयला खदानों के भीतर बनने वाली गैस से डोमनहिल, बरतुंगा, हल्दीबाड़ी, गोदरीपारा, बड़ा बाजार में जगह-जगह जमीनों पर बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हैं। गैस रिसाव होने के साथ खदानों में लगी आग से धुंआ निकल रहा है।