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तेरा शहर तुझे मुबारक….अनगिनत दिक्कतों के बावजूद, उम्मीद से गांव की ओर बढ़ रहे हैं मजदूरों के कदम…

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झांसी 24 अप्रैल – कोरोना महामारी के कारण देश में बढ़ती लॉकडाउन की समय सीमा के मद्देनजर बड़े बड़े शहरों में भूखमरी के कागार पर पहुंचे मजदूरों और कामगारों के सामने अपने घर वापसी के अलावा कोई चारा नहीं रह गया है और इसी बेबसी में उन्होंने दूर दूर से अपने गांवों को लौटने का सफर शुरू कर दिया है जिसके बीच उन्हें अनगिनत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन उनकी गांव पहुंचने की उम्मीद ही उनका संबल बनी हुई हैं।

ऐसे ही करीब 100 से 150 मजदूर और कामगार शुक्रवार को झांसी से निकलकर दिगारा बाईपास के पास पहुंचे तो उन्हें रोक लिया गया।पुलिस उन्हें वही पर घंटों से बैठाए है। पुलिस का कहना है कि उच्चाधिकारियों ने उन्हें किसी को भी वहां से निकलने के लिए मना किया है अतःवे आगे नहीं भेजे जा सकते। उनमें से कुछ तो सुबह करीब 9 बजे से बैठे हुए उच्चाधिकारियों के फरमान का इंतजार कर रहे थे और बार-बार पुलिस के लोगों से पूछने आ रहे थे कि साहब कोई आदेश आया क्या ? उनकी मांग भी सिर्फ इतनी थी कि उनकी कोई सहायता भले ही न हो सके किन्तु उन्हें अपने घर अपने गांव पहुंचने से पहले कहीं रोका न जाए।

यहां फंसे और आगे जाने की इजाजत मिलने की बांट जोह रहे हर व्यक्ति की अपनी अलग कहानी है लेकिन इनमें से ज्यादातर ने इस महामारी के बावजूद उन्हीं जगहों पर रूकने का फैसला किया था जहां वह रोजगार की तलाश में गये थे। उन्हें उम्मीद थी कि जल्द ही स्थिति ठीक हो जायेगी लेकिन उनकी आशाएं दूसरे लाॅकडाउन के बाद हताशा में बदलने लगीं, जिसके बाद उन्होंने हौसले को नहीं छोड़ा और वे चल पड़े अपनी मंजिल अपने गांव की ओर। उन्होंने बताया कि वह प्रतिदिन 40 से 45 किलोमीटर पैदल चलकर आसमान से बरसती गर्मी को मात देते हुए अपने गन्तव्य की ओर चल रहे हैं। बीच-बीच में उन्हें कहीं पुलिसिया रौब झेलना पड़ता है तो कहीं स्नेह का घूंट पीने को मिल रहा है। कोई घंटों बैठाकर गालियाें से उनका स्वागत करता है तो कहीं उन्हें भोजन और पानी देकर उनका हाल चाल भी पूछा जा रहा है। ऐसे अनुभवों के साथ सभी प्राचीन भारत की तर्ज सामान सिर पर बांधे पैदल यात्रा करते हुए अपने अपने घर पहुंचना चाहते हैं। उनकी केवल इतनी सी मांग है कि भले ही उनकी सहायता न हो सके पर उन्हें उनके गंतव्य तक जाने से रोका न जाए।

कोई हैदराबाद से निकलकर आ रहा है तो कोई महाराष्ट्र और कोई सूरत से लेकिन सभी का एक सा हाल है। सभी मजदूरी कर अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। किसी के घर में माता-पिता,दो बहनें उनका इंतजार कर रही हैं तो किसी की पत्नी और बच्चे भी उनकी इस पदयात्रा में उनके साथ भटकने को मजबूर हैं। किसी के पास जब मात्र 16 रुपए जेब में रह गए तब वह यह सोचकर चल पड़ा कि अब गुजारा संभव न होगा। तो कोई एक माह तक रखे हुए रुपयों से खर्च चलाकर दूसरा लाॅकडाउन शुरु होते ही महाराष्ट्र के उल्लास नगर से निकल पड़ा कि अब खाने के भी लाले पड़ जाएंगे।

महाराष्ट्र के कल्यान से चलकर बिहार के पटना जा रहे नीतेश ने बताया कि वह आठ दिन पहले कल्याण से चला था। रास्ते में उसे कभी पुलिस की गालियां मिली तो कहीं पुलिस और समाजसेवियों ने खाना भी खिलाया यही नहीं उसे और उसके साथियों को कहीं-कहीं तो वाहनों में भी बैठा दिया गया। लेकिन पिछले दो दिन से वह और उसके साथी भूखे थे, आज झांसी में आने के बाद उसे खाना खाने को मिला है। वहीं महाराष्ट्र में कारपेंटरी करने वाले बिहार के गोपाल ने बताया कि उसके साथ उसके 40 अन्य साथी भी पैदल चल रहे है वे सभी चार दिन पहले चले थे। वहां लाॅकडाउन के बाद से करीब एक माह तक सभी ने बैठे-बैठे खाया और लाॅकडाउन के खुलने का इंतजार किया। लेकिन जब 14 अप्रैल के पहले ही दोबारा लाॅकडाउन की अवधि को बढ़ा दिया गया तो फिर उन्होंने वहां से निकलने की तैयारी की। इस समय तक उनकी जेब में महज 100 रुपए ही बचे थे।

जौनपुर के बदलापुर निवासी रमाशंकर का कहना है कि वह सूरत में साड़ी की फैक्ट्री में ड्राइंग का कार्य करता था, उसे प्रतिदिन 400 रुपए मिलते थे। पिछले एक माह से उसके पास लाॅकडाउन के बाद से कोई कार्य नहीं रह गया था। उसने और उसके मित्र फतेहपुर निवासी रंजीत ने एक माह तक लाॅकडाउन में बैठकर खाया। लेकिन जब उसके पास महज 16 रुपए रह गए तो उसकी मजबूरी थी कि वह पैदल ही सही अपने गांव के लिए निकले। जब पारा 38 और 42 पर पहुंचकर सड़कों को बुरी तरह से तपा रहा है। लोग अपने घरों में बैठकर पंखे,कूलर आदि में समय बिता रहे हैं। तब उस तपती हुई सड़क पर हैदराबाद में काम करने वाले मजदूर उदय नारायण, नितेश, फूलचंद, रजनीश, संतोष जैसे सैकड़ों उनके साथी बीती 14 अप्रैल से लगातार पैदल चल रहे हैं।

हैदराबाद से भीषण गर्मी में अपने गृह प्रांत बिहार के गृह नगर सीतामढ़ी की ओर चल दिए ये मजदूर 40-40 किमी प्रतिदिन चल रहे हैं। इसी तरह महाराष्ट्र के उल्लासनगर और कल्याण से रिजवान, गोपाल, बृजकिशोर, रितेश, सहित सैकड़ों मजदूर अपने गृह जनपद गोरखपुर जाने के लिए पैदल चल पड़े। रास्ते में अगर किसी वाहन ने खासतौर पर ट्रक आदि ने यदि बैठा लिया तो ठीक है वरना यह सारे मजदूर अपने हौसले और घर पहुंचने की तीव्र इच्छा के चलते भीषण गर्मी मात देने में जुटे हुए हैं।

दिगारा के समीप सुबह से ही रुककर अपने गंतव्य की ओर निकलने की आस लगाए मजदूरों का कहना था कि हम तेलंगाना,आंध्र प्रदेश,मध्य प्रदेश आदि तमाम प्रदेशों से तो निकल आए। लेकिन अब हमें उप्र के झांसी शहर में रोक लिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ जिनके जिले के हम हैं प्रदेश और दूसरे प्रदेश के मजदूरो को उनके प्रदेश पहुचाने के आदेश अधिकारियो को लगातार दे रहे हैं। यह बात हम अखबार ,और मोबाइल पर न्यूज चेनलों पर देख रहे हैं। कई मजदूर गहरी सांसे लेकर बोले कि अब देखिए हम कब गोरखपुर और बिहार पहुचते हैं।

वहीं अपने उच्चाधिकारियों के आदेशों का पालन करते हुए दिगारा में ड्यूटी पर तैनात दरोगाओं ने बताया कि इस मामले में उन्होंने उच्चाधिकारियों को जानकारी दे दी है। उनके आदेश तक इन्हें आगे नहीं जाने दिया जा सकता। इसलिए इन्हें रोका है। आदेश आने के बाद ही किसी प्रकार की व्यवस्था के बारे में सोचा जा सकता है। हालांकि देर शाम तक मजदूरों की कोई व्यवस्था नहीं हो सकी थी।