जगदलपुर : बस्तर समेत समूचे दंडकारण्य के इलाके में पाए जाने वाले सल्फी वृक्षों को आदिवासी कमाऊ पूत मानते हैं। सल्फी ताड़ कुल का पुष्पधारी वृक्ष है जिसका वैज्ञानिक नाम केरियोटा यूरेनस है। इस पेड़ से निकलने वाले रस में एल्कोहल की मात्रा होती है। यह बियर की तरह हल्का नशा करता है। यही वजह है कि इसकी बहुत मांग है। सल्फी के एक पेड़ को एक एकड़ खेत के बराबर माना जाता है। बस्तरिया बियर के नाम से प्रसिद्ध सल्फी के पेड़ों को आदिवासी अपनी बेटियों को दहेज में देते हैं।
सल्फी का वृक्ष करीब 40 फीट ऊंचा होता है और दस साल में रस देने लगता है। एक वृक्ष दिनभर में 50 लीटर तक रस दे देता है। ठंड के मौसम में इससे रस निकलना शुरू होता है और छह-सात महीने तक निकलता रहता है। एक पेड़ से सालाना 50 हजार तक की कमाई होती है। यानी किसी के पास पांच-छह सल्फी के पेड़ हैं तो सालाना तीन लाख की अतिरिक्त आय होगी।
सल्फी को संस्कृत में मोकाहारी कहा जाता है। गोंडी में इसे गोरगा कहते हैं तो बस्तर के कुछ हिस्सों में आकाश पानी के नाम से भी जाना जाता है। इसमें गुच्छेदार फल लगते हैं जिन्हें पोंगा कहा जाता है। पोंगा को काटकर वहां हांडी बांध देते हैं जिसमें रस टपकता रहता है। हांडी टांगने के लिए कम से कम तीस फीट चढ़ना होता है जो आसान काम नहीं है।
रस निकालने का काम एक ही व्यक्ति करता है, ऐसा नहीं है कि कोई भी निकाल ले। रस निकालने से पहले देवता का विशेष अनुष्ठान भी किया जाता है। आदिवासी खेत की मेड़ पर या घर के आंगन में इसे उगाते हैं। माना जाता है कि यह वृक्ष बेहद संवेदनशील होता है। इसके नीचे खड़े होकर तेज आवाज में बात करने तक की मनाही होती है।
हाट बाजार में बिकता है रस
सल्फी का रस बस्तर के हाट बाजार में 20 रुपये गिलास के दाम पर बिकता है। ताजा रस को स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है। इससे पेट ठीक रहता है। बासी होने पर रस में खमीर उठने लगता है और इसका स्वाद कुछ खट्टा हो जाता है। बासी रस ज्यादा नशा करता है और उसका सेवन उचित नहीं माना जाता है। सल्फी रस को हिलाने पर इसमें बियर की तरह झाग उठता है।
उत्तराधिकार की परंपरा
आदिवासी इस वृक्ष को बेटे की तरह पालते हैं। अगर इसे बेटी को दहेज में दिया गया तो उसकी कमाई पर आजीवन बेटी का हक होता है। अगर बेटी न हो तो भांजे को भी वृक्ष का उत्तराधिकार दिया जा सकता है।
पूर्वजों की मृत्यु पर उनकी स्मृति में यह वृक्ष लगाया जाता है। शादी या जन्म के मौके पर भी यादगार के लिए सल्फी का वृक्ष लगाने की परंपरा है। बस्तर के सल्फी के पेड़ अब आसपास के दूसरों जिलों में भी किसानों की कमाई का जरिया बन रहे हैं। कुछ वर्षों से आक्सीफोरम फंगस के संक्रमण से इन वृक्षों को काफी नुकसान हो रहा है।