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एक साल में जगदलपुर के मेडिकल कॉलेज में 804 बच्चों की माैत, 6 जिलों में नवजात के इलाज की सुविधा नहीं…

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मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग में पिछले एक साल में 804 बच्चों ने दम तोड़ा है। मरने वाले इन बच्चों में 575 की उम्र तो महज एक दिन से लेकर 30 दिन तक की थी वहीं 235 बच्चे ऐसे थे जिनकी उम्र 30 दिन से लेकर 9 साल तक है। बच्चों के मरने की यह संख्या अपने तीन साल के सारे रिकार्डों को तोड़ रही है। वर्ष 2019-20 में इतनी संख्या में मासूमों की मौत के पीछे का कारण सरकारी अस्पतालों और जहां अस्पताल हैं वहां सुविधाओं में कमी तो है ही इसके अलावा बच्चों की मौतों का एक कारण यह भी कि बीजापुर, कोंडागांव, नारायणपुर, दंतेवाड़ा और सुकमा के नवजात बच्चों को  इलाज के लिए यहीं लाया जाता है। 


छह जिलों में किसी भी सरकारी हास्पिटल में नवजात बच्चों के इलाज की पूरी व्यवस्था नहीं है। ऐसे में क्रिटिकल कंडीशन में बच्चों को छह-छह घंटों का असुरक्षित सफर करवा कर हास्पिटल पहुंचाया जाता है और यहां आने के कुछ ही समय बाद बच्चे दम तोड़ जाते है। हालांकि मेकाज में अभी बच्चो के इलाज के लिए डाक्टर तो पर्याप्त है लेकिन स्टाफ नर्सों की भारी कमी बनी हुई है। अकेले एनआईसीयू में 72 नर्सों की जरूरत है जबकि इसके मुकाबले यहां सिर्फ 15 नर्सें ही मोर्चा संभाले हुए है। वहीं पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट में एक भी सीनियर रेसीडेंट नहीं है। आठ सौ बच्चों की मौतों की रिपोर्ट के बाद मरने वाले एक-एक बच्चे की हिस्ट्री निकाली। भास्कर ने पूरे आठ सौ बच्चों के नाम,पते उनके माता-पिता के

नाम ढूंढ़े और फिर मौत के कारणों को जाना।
डाक्टरों की माने तो ऐसे कई मामले सामने जिनमें बच्चे की समय से पहले डिलवरी या बच्चे के सीरियस होने के मामलों में तो डिलवरी के एक दिन पहले तक संबंध बनाए रखने के मामले सामने आए। इसके चलते पैदा होने वाले बच्चों के शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो गई और बच्चों की मौत हो गई। 

सभी को मिलकर लड़ना होगा 

इधर मेकाॅज के पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ अनुरूप साहू ने बच्चों को मौतों से बचाने के लिए सभी को मिलकर लड़ने की बात कही है, सामाजिक,पारिवारिक,प्रशासनिक स्तर पर प्रयास करने होगें। डॉ. अनुरूप साहू के मुताबिक नवजात शिशु की गंभीर स्थिति तीन बड़े व्यक्ति के हार्ट अटैक की क्रिटिकल कंडीशन के बराबर होती है। बच्चे बाेल नहीं पाते, अपनी तकलीफ नहीं बता पाते है। ऐसे में डिलिवरी से पहले ही गर्भ में बच्चे की जांच हो जाये तो काफी हद तक मृत्यु पर नियंत्रण हो सकता है।

ज्यादातर नवजात का वजन 5 सौ से 8 सौ ग्राम

मेकाॅज के एनआईसीयू में ज्यादातर ऐसे ही न्यू बाेर्न बेबी भर्ती हुए जिनका वजन पैदा होने के बाद पांच सौ से आठ सौ ग्राम रहा। बच्चों के वजन कम होने का प्रमुख कारण समय पूर्व प्रसव बताया गया है। इसका कारण यह कि ज्यादातर गर्भवती महिलाएं कुपोषित और एनेमिक है। ज्यादातर मामलों में बच्चों की कोई प्लानिंग नहीं होती, माता-पिता एक के बाद एक लगातार बच्चे पैदा करते रहते हैं। ऐसे में समय पूर्व डिलिवरी हो रही है। 

50 फीसदी महिलाएं नहीं करातीं 3 बार जांच
मेकाॅज में बच्चों के मौत के कारणों के पीछे का एक बड़ा कारण यह भी है कि संभाग के छह जिलो में गर्भवती माताएं नियमित जांच और दवाओं का सेवन नहीं करती है। डाक्टरों की माने तो डिलिवरी के लिए हास्पिटल तक पहुंचने वाली 50 फीसदी महिलाएं ऐसी होती है जो गर्भधारण करने के बाद डाक्टर के पास जाती ही नहीं है और सीधे प्रसव के लिए आती है। जबकि गर्भधारण के बाद कम से कम तीन बार जांच जरूरी है।