झारखंड विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है. हाल ही में महाराष्ट्र (Maharashtra) और हरियाणा (Haryana) के चुनाव में झटका खाने के बाद अब झारखंड चुनाव में बीजेपी (BJP) की असली परीक्षा होगी. बीजेपी को उन मुद्दों पर गौर करना होगा, जिसकी वजह से महाराष्ट्र और हरियाणा में उसे कम सीटें मिलीं.
इनदोनों राज्यों के चुनाव में स्थानीय मुद्दों की बजाय कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खात्मे, राष्ट्रवाद और आंतरिक सुरक्षा जैसे मसलों को जोर-शोर से उठाया गया था. लेकिन दोनों ही राज्यों में बीजेपी को अपने मनमुताबिक नतीजे नहीं मिले. महाराष्ट्र और हरियाणा में बीजेपी को स्थानीय मुद्दों की अनदेखी करना भारी पड़ गया. अब झारखंड में वो इस गलती को नहीं दुहराएगी. उम्मीद की जा रही है कि झारखंड में वहां के लोकल मुद्दों को तरजीह दी जाएगी.
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 81 सदस्यीय विधानसभा में 65 सीटों का लक्ष्य रखा है. हालांकि ये आसान नहीं है. लेकिन रघुवर दास को उम्मीद है कि वो इस लक्ष्य को हासिल कर लेंगे. इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए रघुवर दास ने कहा कि ‘महाराष्ट्र और हरियाणा से यहां की स्थिति अलग है. महाराष्ट्र और हरियाणा में 26 फीसदी आदिवासी आबादी नहीं है. ये झारखंड में है. हम निश्चित ही जीतेंगे’
झारखंड में बीजेपी को अपनी रणनीति बदलनी होगी रघुवर दास खुद गैर आदिवासी हैं. लेकिन उन्हें अपने आदिवासी वोटर्स और अपनी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर भरोसा है. हालांकि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वहां के आदिवासी इलाकों से आए चुनावी नतीजे बीजेपी के लिए निराशाजनक रहे हैं.

जानकार बताते हैं कि झारखंड के आदिवासी और अल्पसंख्यक (मुस्लिम और ईसाई) बीजेपी के खिलाफ जा सकते हैं. झारखंड की कुल आबादी में अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी करीब 20 फीसदी है. अगर ऐसा होता है तो ये बीजेपी के लिए चिंताजनक बात होगी.
बीजेपी के पास स्थिर सरकार देने की उपलब्धि
झारखंड में पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया है. बीजेपी के लिए ये बड़ी उपलब्धि है. एक गैरआदिवासी को सीएम बनाकर भी पार्टी ने 5 साल तक सरकार चला ली. झारखंड में सरकार चलाने का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत खराब है. यहां पिछले 19 साल में 10 मुख्यमंत्री हुए हैं. बीजेपी के 5 साल इसमें बाहर निकाल दिए जाएं तो 14 साल में राज्य ने 9 मुख्यमंत्री देखे हैं. बीजेपी झारखंड में एक स्थिर सरकार देने के मुद्दे को भुनाना चाहेगी.
झारखंड की चुनावी रणनीति बनाने में बीजेपी को सावधानी बरतनी होगी. पिछले दिनों बीजेपी में कुछ दूसरे दल के विधायक शामिल हुए हैं. इससे बीजेपी का आत्मविश्वास तो बढ़ा है. जानकार मानते हैं कि बीजेपी को टिकट बंटवारे पर ध्यान देना होगा.
विपक्षी पार्टियां ताकतवर विकल्प देने में नाकाम
झारखंड में विपक्षी पार्टियां बीजेपी का ताकतवर विकल्प देने में नाकाम रही हैं. ये बीजेपी के पक्ष में जाता है. उसके बाद बीजेपी को राज्य में अपनी सरकार के चलाए जा रहे कल्याणकारी योजनाओं पर भरोसा है. बीजेपी केंद्र सरकार के पीएम किसान, पीएम आवास योजना और उज्ज्वला योजना के राज्य में सफल क्रियान्वयन पर भरोसा जता रही है. बीजेपी को लगता है कि इन योजनाओं के अमल में लाने के बाद वोटर्स उनके साथ मजबूती से जुड़ा है. चुनावों में ये उनके पक्ष में काम करेगा.

2014 में बीजेपी को नहीं मिला था बहुमत का आंकड़ा
2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 81 में से 37 सीटें हासिल हुई थी. बीजेपी बहुमत से 4 सीटें कम लेकर आई थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी की जबरदस्त लहर के बावजूद विधानसभा चुनाव में बीजेपी बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा पाई थी. बीजेपी को बहुमत हासिल करने के लिए आजसू का सहारा लेना पड़ा था. आजसू के 5 विधायकों ने बीजेपी सरकार का समर्थन किया था. इसके बाद जेवीएम के 6 विधायक भी बीजेपी सरकार के पक्ष में आ गए. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 14 में से 12 सीटों पर कब्जा किया था.
इस बार बीजेपी आजसू का गठबंधन चुनाव मैदान में है. विपक्षी पार्टियों में जेएमएम, कांग्रेस, आरजेडी और लेफ्ट पार्टियों ने मिलकर गठबंधन बनाया है. हालांकि विपक्ष के गठबंधन में अभी तक जेवीएम नहीं है. ये बीजेपी के लिए अच्छी बात है. पिछली बार जेवीएम ने 8 सीटों पर जीत हासिल की थी.