धन और सत्ता से उत्पन्न मद का निवारण कर पाना हर किसी के वश में नहीं। मनुष्य धन के मद में यह भूल जाता है कि अधिक संचय कर वह अपने अशांति और बढ़ रहा है। धन मनुष्य की रक्षा करे तब तक सही है, लेकिन जब मनुष्य ही धन का रक्षक बन जाए तो आत्म शांति दूर हो जाता है। इसलिए धन और सत्ता का मद व्यर्थ है।
यह बात भागवत कथा वाचक तारेंद्र कृष्ण ने व्यास मंच से कही। बृहस्पति बाजार के समीप मनोज कुमार गुप्ता की स्मृति में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान का आयोजन किया जा रहा है। कार्यक्रम के पांचवे दिन कुरूद वाले कथावाचक ने इंद्र के दर्प को किस तरह से भगवान कृष्ण ने तोड़ा इसकी कथा सुनाई। भागवत प्रेमी श्रोता दीर्घा समाज में उन्होंने गोवर्धन पर्वत को माध्यम बनाकर किस तरह से ब्रजवासियों की रक्षा इंद्र के कोप से की इसकी कथा कही। कथा सार के माध्यम से भागवताचार्य ने बताया कि सत्ता का कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए। धन और सत्ता दोनों अविचल स्थिर रहने वाले नहीं हैं। परिवर्तनीय होने के कारण इस पर अभिमान करना व्यर्थ है। कथा वाचन के दौरान स्थानीय ग्रामीणों से सहित आसपास ग्रामीण क्षेत्र के श्रद्धालु भी उपस्थित थे।